भीम आर्मी (Bhim Army) के मुखिया चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) एक बार फिर चर्चा में हैं। पिछले दिनों सहारनपुर के देवबंद में कार सवार हमलावरों ने आजाद पर गोली चला दी थी, लेकिन वे बाल-बाल बच गए। 3 दिसंबर 1986 को सहारनपुर में ही जन्मे चंद्रशेखर आजाद भीम आर्मी के अलावा आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के भी अध्यक्ष हैं। इस पार्टी की साल 2020 में उन्होंने नींव डाली थी। आजाद साल 2017 में पहली बार सुर्खियों में आए थे, तब सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में हुई जातीय हिंसा में उनका नाम आया था और रासुका के तहत करीब 16 महीने जेल में रहे थे।
चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) देहरादून के डीएवी पीजी कॉलेज से लॉ ग्रैजुएट हैं। उनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई सहारनपुर के ठाकुर छज्जू सिंह पुंडीर एएचपी इंटर कॉलेज से हुई है। एक इंटरव्यू में बताते हैं कि स्कूल में पढ़ाई के दौरान उन्हें काफी भेदभाव का सामना करना पड़ा था। मसलन स्कूल में पीने के पानी का ही एक नल हुआ करता था और वहां दलित समुदाय के बच्चों को लाइन लगानी पड़ती थी। चंद्रशेखर कहते हैं कि कई बार ऊंची जाति से ताल्लुक रखने वाले बच्चे हमारी पिटाई कर दिया करते थे। जब प्रिंसिपल या टीचर से इसकी शिकायत करते थे वे उल्टा हमें ही डांटने लगते थे।
कैसे बनी भीम आर्मी?
आजाद कहते हैं कि ऐसा ही एक वाकया हुआ, जिसमें दलित समुदाय के एक बच्चे का सिर फूट गया। इसके बाद मामला पुलिस तक पहुंचा, लेकिन पुलिस से भी कोई मदद नहीं मिली। हम लोग डीआईओएस से लेकर जिले के तमाम नेताओं के पास भी मदद मांगने गए। कहीं कुछ नहीं हुआ। उल्टा दूसरे पक्ष के लोग हमें ही मारने की तैयारी करने लगे। तभी हमें लगा कि कमजोर आदमी का कोई साथी नहीं होता… ना पुलिस न कोई और। कॉलेज की उसी लड़ाई से भीम आर्मी का जन्म हुआ।
पिता के साथ भेदभाव की कहानी
चंद्रशेखर आजाद (Bhim Army Chief Chandrashekhar Azad) के पिता गोवर्धनदास शिक्षक थे। आजाद के दो भाई हैं- बड़े भाई का नाम भरत सिंह, और छोटे भाई का नाम कमल किशोर है। आजाद बताते हैं कि मेरे पिताजी अध्यापक थे, फिर भी उनको जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ा। पहली बार उनका सवर्ण जाति वाले गांव में ट्रांसफर हुआ। जब स्कूल में पहुंचे तो लोग उनसे कहने लगे कि मास्टर जी आपका ग्लास कहां है? अपना ग्लास नहीं लाए? यहां तो आपको अपना ग्लास अलग रखना पड़ेगा। वह घर लौटे तो मुझे पूरा वाकया सुनाया और कहने लगे कि देश आजाद हो गया है लेकिन अब भी हमारे साथ इस तरह का भेदभाव होता है।
11 जनवरी 2013 को क्या हुआ था?
चंद्रशेखर आजाद आजतक 10 साल पुराना एक वाकया नहीं भूल पाए हैं। एक इंटरव्यू में बताते हैं कि मेरे पिता को कैंसर हो गया था। मैं उन्हें एम्स में भर्ती कराना चाहता था लेकिन न तो मेरी कोई पहुंच थी और न ही सिफारिश। मैंने बहुत भागदौड़ की लेकिन चाह कर भी अपने पिता को एम्स में एडमिट नहीं करा पाया। 11 जनवरी 2013 को देहरादून में उन्होंने मेरे हाथों में दम तोड़ दिया। आज तक उस घटना को मैं भूल नहीं पाया हूं।
बुलेट कै शौकीन, बंदूक वाला चाबी का छल्ला
आजाद को बुलेट का शौक है। हमेशा चश्मे में नजर आते हैं। बुलेट पर आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद की तस्वीर लगा रखी है। चाबी का छल्ला बंदूक वाला है। आजतक पर एक इंटरव्यू में जब उनसे की-रिंग को लेकर सवाल किया गया तो आजाद ने कहा कि ‘कांशीराम कहते थे कि बैलट के साथ बुलेट की तैयारी भी रखनी पड़ेगी, अगर संविधान पर आंच आती है तो हो सकता है बुलेट की जरूरत भी पड़ जाए…लेकिन ये वोट वाली बुलेट है”।
नाम में ‘आजाद’ लगाने और हटाने की कहानी
चंद्रशेखर आजाद कभी अपने नाम के साथ ‘रावण’ भी लगाया करते थे। हालांकि बाद में इसे हटा लिया। नाम के साथ रावण लगाने और फिर हटाने की वजह क्या है? इस सवाल पर कहते हैं कि रावण क्यों लगाया था, यह सिर्फ मेरा परिवार जानता है। पब्लिकली नहीं बताना चाहता हूं। वैसे भी नाम में कुछ नहीं रखा है। लोग अपने काम से जाने जाते हैं।
100 ताकतवर लोगों में नाम
आपको बता दें चंद्रशेखर आजाद को प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन, देश के 100 ताकतवर लोगों की सूची में भी शुमार कर चुकी है। 2022 में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर से चुनाव लड़ने वाले चंद्रशेखर चौथे स्थान पर रहे थे। जमानत भी जब्त हो गई थी। तब आजाद ने अपनी संपत्ति का ब्योरा भी दिया था। (पढ़ें कितनी संपत्ति के मालिक हैं भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद)