‘वारिस पंजाब दे’ प्रमुख अमृतपाल सिंह के खिलाफ कार्रवाई शुरू होने के बाद कई लोगों को 1980 का दशक याद आ रहा है। वह अलग समय था। हालांकि तब जिस तरह भिंडरावाले को पकड़ने के लिए पुलिस को दौड़ लगानी पड़ी थी। अब अमृतपाल सिंह को पकड़ने के लिए भी वही जतन करना पड़ रहा है।

जब भिंडरावाले पर लटकी गिरफ्तारी की तलवार

सितंबर 1981 में पंजाब पुलिस ने सिख मदरसा दमदमी टकसाल के प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरावाले को गिरफ्तार करने का फैसला किया। भिंडरावाले पर सांसद लाला जगत नारायण की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप था। लाला जगत नारायण जालंधर से चलने वाले एक हिंदी न्यूज़ पेपर ग्रुप के मालिक और चीफ एडिटर थे। 9 सितंबर, 1981 को गोली मार उनकी हत्या कर दी गई थी।

गिरफ्तारी का वारंट 12 सितंबर को जारी किया गया। भिंडरावाले गिरफ्तार करने के लिए  डीआईजी डीएस मंगत के नेतृत्व में पंजाब पुलिस की एक टीम को हरियाणा के हिसार स्थित चंदो कलां भेजा रवाना किया गया। सूचना थी कि भिंडरावाले चंदो कला में ही डेरा डाले हुए था। हालांकि पुलिस वहां पहुंचती उससे पहले ही खालिस्तानी लीडर भाग निकला। उसे पहले ही कार्रवाई की भनक लग गई थी।  

हरियाणा पुलिस ने भिंडरावाले को कही भी नहीं रोका। वह रात भर अमृतसर के चौक मेहता स्थित अपने मुख्यालय में वापस जाने में सफल रहा। 200 किलोमीटर तक फ्री रन ने इस अटकल को भी जन्म दिया कि हरियाणा पुलिस ने जानबूझकर भिंडरावाले को जाने दिया क्योंकि वे अपने राज्य में कोई परेशानी नहीं चाहते थे।

अमृतसर स्थित गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जगरूप सिंह सेखों का लंबा अकादमिक करियर है। साथ ही वह पॉलिटिकल ऑब्जर्वर भी हैं। सेखों याद करते हैं, कैसे तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह और पंजाब के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई की पृष्ठभूमि के खिलाफ भिंडरावाले की गिरफ्तारी हुई थी। दोनों नेता कांग्रेस पार्टी से ही थे।

भिंडरावाले ने की ‘शुद्ध’ सिख की मांग

रमेश इंदर सिंह (1984 में अमृतसर के उपायुक्त) ने अपनी किताब Turmoil In Punjab में लिखा है कि कैसे भिंडरावाले ने डीआईजी जेएस आनंद को गिरफ्तारी देने से इनकार कर दिया था। इसकी वजह सिर्फ यह थी कि जेएस आनंद ने अपनी दाढ़ी कटवा ली थी और इसलिए वह ‘शुद्ध’ सिख नहीं थे। दरअसल राज्य सरकार ने पहले जेएस आनंद को ही भिंडरावाले की गिरफ्तारी पर बातचीत के लिए भेजा था।

बाद में राज्य सरकार ने भिंडरावाले की मांग को मानते हुए एसपी-रैंक के एक दूसरे अधिकारी को भेजा, जो भिंडरावाले के मानकों पर खरा उतरते थे। इसके बाद खालिस्तानी नेता 20 सितंबर को आत्मसमर्पण करने के लिए राजी हो गया। हालांकि जिस दिन भिंडरावाले ने आत्मसमर्पण किया, उसी दिन जालंधर में आतंकवादियों द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी का पहला मामला भी देखा गया। गोलीबारी में चार लोग मारे गए।

गिरफ्तारी से पहले भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर जाने और पवित्र सरोवर में डुबकी लगाने की इच्छा जताई। तदनुसार, एक वरिष्ठ डीआईजी-रैंक का पुलिस अधिकारी भिंडरावाले को 20 सितंबर को भोर होने से पहले स्वर्ण मंदिर ले गया और वापस लाया। इधर तब तक दमदमी टकसाल के मुख्यालय (अमृतसर) के पास चौक मेहता में भारी भीड़ जमा हो गई। वहां नेताओं ने पार्टी लाइन से हटकर भिंडरावाले की प्रशंसा करते हुए उग्र भाषण दिए।

भाषणों से पहले ही भड़क चुकी भीड़ भिंडरावाले की गिरफ्तारी पर हिंसक हो गई और पुलिस से भिड़ गई। इसके बाद गोलियां चलीं, जिसमें आठ लोग मारे गए।

रमेश इंदर सिंह लिखते हैं कि तत्कालीन सीएम दरबारा सिंह ने मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र और पश्चिमी कमान दोनों से सेना के लिए मदद की गुहार लगाई थी, लेकिन नहीं मिली।

गिरफ्तार भिंडरावाले का हुआ स्वागत

पंजाब के एक पूर्व नौकरशाह रवि साहनी ने अपनी पुस्तक ‘लिविंग ए लाइफ’ में लिखते हैं कि लुधियाना जिला जेल में रखे जाने की खबर आने के बाद से ही लोग भिंडरावाले के स्वागत के लिए बड़ी संख्या में उमड़ पड़े थे। शहर के प्रवेश द्वार पर उत्सव का माहौल था।

साहनी तब लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर थे। वह लिखते हैं कि उन्होंने फैसला किया था कि वे भिंडरावाले की कार को लुधियाना लाने वाले काफिले से अलग कर लेंगे और उसे एक सुनसान गेस्ट हाउस में रखेंगे। लेकिन भिंडरावाले के आने से आधे घंटे पहले इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

तत्कालीन एसएसपी ने साहनी को बताया कि राज्य के पुलिस प्रमुख का आदेश है कि उपदेशक की कार को पुलिस वाहनों के काफिले के साथ लुधियाना लाया जाए। साहनी लिखते हैं कि कैसे उन्होंने सीएम को फोन किया, जिन्होंने उन्हें बताया कि यह आदेश ज्ञानी जैल सिंह की तरफ से आया है। जैसा कि अपेक्षित था, काफिला एक जुलूस में बदल गया क्योंकि लोगों अपनी-अपनी गाड़ियों के साथ पुलिस काफिले के साथ चलने लगे। इस दौरान भिंडरावाले के समर्थन में नारे भी लगाए जा रहे थे।

उसकी मांग के अनुसार, भिंडरावाले को गुरदासपुर एसएसपी चहल ने एस्कॉर्ट किया था। चहल उपदेशक द्वारा दिए गए निर्देशों की एक सूची के साथ आए थे। साहनी ने अपनी किताब में भिंडरावाले की शर्तों को सूचीबद्ध किया है, जो इस प्रकार है:

  1. भिंडरावाले के साथ उसके दो साथी, एक रसोइया और दूसरा सेवक साथ रहेंगे।
  2. भिंडरावाले से पूछताछ सिर्फ एक अमृतधारी सिख (वह व्यक्ति जो सिख धर्म के सभी पांच सिद्धांतों का पालन करता हो) अधिकारी ही करेगा।
  3. पूछताछ के दौरान भिंडरावाले और अधिकारी एक समान स्तर पर बैठेंगे। भिंडरावाले का स्थान ऊंचा हो तो चलेगा लेकिन पूछताछकर्ता से कम नहीं होनी चाहिए।
  4. यदि भिंडरावाले किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहे, तो थर्ड डिग्री का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

साहनी ने लिखा, “मैं यह सुनकर भौचक्का था। मैंने चहल से चुटकी लेते हुए पूछा ‘कौन गिरफ्तार है, भिंडरावाले या पंजाब सरकार?’ बाद में, पुलिस को भिंडरावाले के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला और उसे 15 अक्टूबर, 1981 को रिहा कर दिया गया।