सिनेमाघरों में इन दिनों ‘120 बहादुर’ फिल्म चल रही है। इस फिल्म को लेकर हाल ही में विवाद तब हुआ जब अहीर समुदाय के लोगों ने इस फिल्म का नाम बदलने की मांग उठाई। उनका कहना था कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में अहीर समुदाय के कई सैनिक शहीद हुए थे और इसलिए इस फिल्म का नाम ‘120 वीर अहीर’ रखा जाना चाहिए था।
अहीर समुदाय के लोगों ने इस संबंध में पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका भी लगाई थी लेकिन अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया था।
‘120 बहादुर’ फिल्म के सामने आते ही एक बार फिर अहीर समुदाय के द्वारा लंबे वक्त से उठाई जा रही अहीर रेजिमेंट की मांग प्रमुखता से सामने आ गई है।
‘जब हम मांग करते हैं तो गुजरात में मेरा पुतला फूंका जाता’
अहीरवाल के अहीर सैनिकों की बहादुरी की चर्चा
हरियाणा के रेवाड़ी, गुड़गांव और महेंद्रगढ़ जिले में अहीर समुदा की बड़ी आबादी रहती है। सघन अहिर आबादी के कारण इस पूरे इलाको को आम लोगों के बीच अहीरवाल भी कहा जाता है। भारत और चीन के बीज 1962 में हुए रेजांग ला में हुई लड़ाई में जिस चार्ली कंपनी ने अभूतपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया उसके अधिकांश सैनिक इसी इलाके के रहने वाले थे।
रेजांग ला की लड़ाई के बाद से ही अहीर समुदाय के सदस्य लंबे वक्त से इस बात की मांग कर रहे हैं कि सेना में अहीर इन्फेंट्री रेजिमेंट बनाई जानी चाहिए। अभी तक उन्हें कुमाऊं रेजिमेंट में सिर्फ दो बटालियन दी गई हैं और बाकी रेजिमेंट्स में उन्हें एक निश्चित प्रतिशत की हिस्सेदारी दी जाती है।
पिछले कुछ सालों में अहीर रेजिमेंट की मांग को लेकर कई बार प्रदर्शन भी किया जा चुका है। कई दलों के नेताओं ने भी अहीर रेजिमेंट बनाए जाने का समर्थन किया है।
हालाँकि भारतीय सेना के किसी रेजिमेंट में केवल समुदाय विशेष को लोग नहीं लिए जाते हैं। भारतीय सेना की अलग-अलग रेजिमेंट में अहीर समुदा के सैनिक और अधिकारी होते हैं। जैसे, कुमाऊं, जाट, राजपूत और बाकी रेजिमेंट्स में अहीर समुदाय के जवान हैं।
दीपेंद्र हुड्डा ने उठाई अहीर रेजिमेंट के गठन की मांग
हरियाणा के इस इलाके से चुने गये सैनिकों को पहले 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट में भर्ती किया गया था। बाद में इस रेजिमेंट का नाम बदलकर कुमाऊं रेजिमेंट कर दिया गया। कुमाऊँ रेजिमेंट में वर्तमान उत्तराखंड और हरियाणा के युवा भर्ती किए जाते हैं।
वर्ष1960 में कुमाऊँ रेजिमेंट में 13 कुमाऊं बटालियन बनायी गयी जिसमें प्रमुखतः अहीर समुदाय के जवान थे। लंबे वक्त से की जा रही मांग के बाद भी अहीर रेजिमेंट का गठन नहीं हुआ।
क्या होती है बटालियन और कंपनी?
आमतौर पर सेना की एक कंपनी में 100 से 150 सैनिक होते हैं। तीन या ज्यादा कंपनियों को मिलाकर एक बटालियन बनती है। एक बटालियन में 500 से 1000 सैनिक होते हैं। कई बटालियन मिलकर एक रेजिमेंट बनती है। भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट में 22 बटालियन हैं।
क्या हुआ था 1962 के भारत-चीन युद्ध में?
1962 की भारत-चीन की जंग लद्दाख के बर्फीले दर्रे रेजांग ला में हुई थी। यह जंग 17000 फीट की ऊंचाई पर लड़ी गई थी। इस जंग में 13 कुमाऊं बटालियन की चार्ली कंपनी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह भाटी कर रहे थे। इस युद्ध में चार्ली कंपनी ने जिस जबरदस्त वीरता और साहस का परिचय दिया था, वह विश्व इतिहास में अमर हो गया।
इस बटालियन के छह जीवित बचे सदस्यों में से एक रामचंद्र यादव ने साल 2018 में मीडिया को दिये इंटरव्यू में याद किया, “मेजर ने कहा कि अगर पीछे हटना है तो हम हट सकते हैं। जवानों ने और जेसीओ ने कहा कि हम रेजांग ला को नहीं छोड़ेंगे। हम पर भगवान श्री कृष्ण की कृपा है। मेजर ने कहा कि मैं तुम लोगों के साथ हूँ। मेरा सरनेम भाटी है तो क्या हुआ, मैं भी यादव हूँ।”
मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 123 सैनिकों की इस टुकड़ी ने नवंबर की बेहद कड़क ठंड में रेजांग ला में करीब पाँच घंटे तक चीनी सैनिकों से बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी। इस टुकड़ी ने 3000 चीनी सैनिकों के दल को आगे बढ़ने से रोक दिया था।। इसके बाद से चीन के सैनिकों ने कभी भी चुशूल घाटी में आने के लिए रेजांग ला को पार करने की हिम्मत नहीं की।
युद्ध में जीवित बचे निहाल सिंह ने क्या बताया था?
इस युद्ध में जीवित बचे निहाल सिंह ने साल 2012 में द इंडियन एक्सप्रेस को युद्ध से जुड़ी बातें बताई थी। वह नायब सूबेदार के पद से रिटायर हुए थे और उन्हें इस बहादुरी के लिए सेना मेडल से सम्मानित किया गया था।
निहाल सिंह ने बताया था कि चीनी सैनिकों ने रात के 3:30 बजे अंधेरे की आड़ में भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया था। चीनी सैनिकों की भारी बमबारी के बाद भी चार्ली कंपनी युद्ध के मैदान में डटी रही और लंबे वक्त तक बमबारी करती रही। इसके बाद उनकी पैदल टुकड़ी ने हमला किया तब निहाल सिंह ने अपनी लाइट मशीन गन से लगातार गोलियां चलाई। वह बताते हैं कि कुछ देर बाद पूरे इलाके में लाशें ही लाशें दिखाई दी थी।
निहाल सिंह रेवाड़ी के चिमनावास गांव के रहने वाले हैं। चीनी सैनिकों ने बंकर में घुसकर निहाल सिंह को दो गोलियां मारी थी। बर्फबारी शुरू होने पर किसी तरह निहाल सिंह वहां से बच निकले और अपनी कंपनी के बेस कैंप में पहुंचे। इस जंग में बहादुरी के लिए मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र दिया गया था।
ऐसे ही रामचंद्र यादव भी हैं जो मेजर शैतान सिंह के रेडियो ऑपरेटर थे और युद्ध में उनके साथ एक चौकी से दूसरी चौकी तक गए थे। इसी तरह अलवर के हरफूल सिंह और उनके जीजा बृजलाल भी रेजांग ला में लड़ते हुए शहीद हो गए थे।
सेना के आधिकारिक रिकॉर्ड की बात करें तो रेजांग ला की लड़ाई में 13 कुमाऊं रेजिमेंट के 109 सैनिकों के शहीद होने की बात कही गई है लेकिन रेवाड़ी में बनाए गए स्मारक में 110 नाम दर्ज हैं। 110वां नाम कुमाऊं रेजिमेंट के सूबेदार मेजर हरि सिंह का है। सूबेदार मेजर हरि सिंह उस ऑपरेशन के इंचार्ज थे जिसमें लड़ाई के मैदान से शहीदों के शवों को लाया गया और उनका अंतिम संस्कार किया गया। कहा जाता है कि अंतिम संस्कार के कुछ मिनट बाद ही उन्हें हार्ट अटैक आ गया था।
कुछ आंकड़ों में यह भी कहा जाता है कि रेजांग ला की इस लड़ाई में 120 जवानों और अफसर शामिल थे और इनमें से 114 शहीद हो गए थे।
कैसे 1962 में अहीरवाल के जवानों ने छुड़ाए थे चीनियों के छक्के
