भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अयोध्या में राम मंदिर चाहते थे, लेकिन वह लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा में शामिल नहीं हुए थे, उन्होंने बाबरी विध्वंस के बाद सार्वजनिक रूप से माफी मांगी थी।
ऐसे में सवाल उठता है कि इस पूरे मामले पर वाजपेयी राय क्या थी? पूर्व प्रधानमंत्री की जीवनी ‘VAJPAYEE: The Ascent of the Hindu Right’ के लेखक अभिषेक चौधरी का मानना है कि वाजपेयी अयोध्या में मंदिर तो चाहते थे लेकिन “हिंसा के बिना”। वह नहीं चाहते थे कि कोई राजनीतिक दल किसी धार्मिक आंदोलन में प्रवेश करे… इसलिए वह रथ यात्रा के लिए कभी सहमत नहीं हुए… उनसे संपर्क किया गया लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया।
मंदिर आंदोलन से लेकर बाबरी विध्वंस तक पर वाजपेयी का स्टैंड अलग-अलग समय पर अलग-अलग रहा। जैसे बाबरी विध्वंस (6 दिसंबर, 1992) से एक दिन पहले 5 दिसंबर, 1992 की शाम वाजपेयी ने लखनऊ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था वहां (अयोध्या) नुकीले पत्थर निकले हैं… जमीन को समतल करना पड़ेगा।
वाजपेयी के इस भाषण को बाबरी विध्वंस से जोड़कर देखा गया। पहले वाजपेयी के उस भाषण का अंश पढ़ लीजिए:
कल कारसेवा करके अयोध्या में सर्वोच्च न्यायालय के किसी निर्णय की अवहेलना नहीं होगी। कारसेवा करके सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान किया जाएगा। ये ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब तक अदालत में वकीलों की बेंच फैसला नहीं करती आपको निर्माण का काम बंद रखना पड़ेगा। मगर सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि आप भजन कर सकते हैं, कीर्तन कर सकते हैं। अब भजन एक व्यक्ति नहीं करता। भजन होता है तो सामूहिक होता है और कीर्तन के लिए तो और भी लोगों की आवश्यकता होती है। भजन और कीर्तन खड़े-खड़े तो नहीं हो सकता। कब तक खड़े रहेंगे? वहां नुकीले पत्थर निकले हैं। उन पर तो कोई नहीं बैठ सकता तो जमीन को समतल करना पड़ेगा, बैठने लायक करना पड़ेगा। यज्ञ का आयोजन होगा तो कुछ निर्माण भी होगा। कम से कम वेदी तो बनेगी। मैं नहीं जानता कल वहां क्या होगा। मेरी अयोध्या जाने की इच्छा है, लेकिन मुझे कहा गया है कि तुम दिल्ली रहो और मैं आदेश का पालन करूंगा।
अटल बिहारी वाजपेयी (लखनऊ/5 दिसंबर, 1992)
वाजपेयी जब यह भाषण दे रहे थे, तो उनके समर्थक जोर-जोर से ‘जय श्रीराम’ के नारे लगा रहे थे। मंच पर लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी भी बैठे थे।
अगले दिन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और साधु-संतों की मौजूदगी में बाबरी को अवैध रूप से ध्वस्त कर दिया गया। जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से यह वादा किया था कि ढांचे को नुकसान नहीं होगा। कई दस्तावेजों के मुताबिक, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने प्रधानमंत्री नरसिंह राव से ढांचे की सुरक्षा का वादा किया था। हालांकि इतिहास यही है कि तमाम वादे झूठे साबित हुए।
बाबरी विध्वंस के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने मांगी माफी
बाबरी विध्वंस के बाद वरिष्ठ पत्रकार प्रणय रॉय से बातचीत में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि 6 दिसंबर को अयोध्या में जो कुछ भी हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण है। वह नहीं होना चाहिए था। हमारी कोशिश थी कि ऐसा न हो लेकिन हम कामयाब न हो सके। हम इसके लिए माफी मांगते हैं।
जब उनसे पूछा गया कि भाजपा इसे क्यों नहीं रोक पायी तो वाजपेयी ने जवाब दिया कि कारसेवकों का एक वर्ग नियंत्रण से बाहर हो गया और उन्होंने वो कर दिया, जो नहीं होना चाहिए था। हमारी तरफ से स्पष्ट आश्वासन दिया गया था कि विवादित ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन हम उस आश्वासन पर खड़े नहीं उतरे, इसलिए हम माफी मांगते हैं।
बाबरी विध्वंस के बाद लोकसभा से इस्तीफा देना चाहते थे वाजपेयी
बाबरी विध्वंस के बाद अटल बिहारी वाजपेयी इस्तीफा देना चाहते थे, ये बात उन्होंने करण थापर को दिए इंटरव्यू में बताई थी। वरिष्ठ पत्रकार करण थापर को जनवरी 1993 में दिए इंटरव्यू में वाजपेयी ने कहा था, “मैंने लोकसभा से इस्तीफा देने के लिए पार्टी से इजाजत मांगी। जब मैं स्पीकर से मिला तो अपना इस्तीफा सौंपने की इच्छा जताई। पार्टी ने मुझे इस्तीफा नहीं देने दिया। स्पीकर मेरा इस्तीफा स्वीकार करने को तैयार नहीं थे।” बता दें कि 1993 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे। कांग्रेस नेता शिवराज पाटिल लोकसभा के स्पीकर थे।
वाजपेयी लोकसभा से इस्तीफा इसलिए देना चाहते थे क्योंकि उन्हें ऐसा लग रहा था कि उन्होंने स्पीकर के आदेश की अवहेलना की है। स्पीकर ने उन्हें बोलने की अनुमति नहीं दी थी लेकिन उन्होंने अपनी बात रख दी थी।
स्पीकर को ही नहीं अपनी पार्टी के उपाध्यक्ष को भी दिया था इस्तीफा
वाजपेयी ने केवल लोकसभा स्पीकर को ही नहीं बल्कि भाजपा के तत्कालीन उपाध्यक्ष सुंदर सिंह भंडारी को भी अपना इस्तीफा सौंपा था। जब करण थापर ने उनसे पूछा कि क्या वो पार्टी से इस्तीफा देना चाहते थे, तो वाजपेयी ने बताया कि “नहीं मैं राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा दे रहा था।”
वाजपेयी ने ऐसा क्यों किया था, यह पूछे जाने पर उन्होंने बताया, “6 दिसंबर को अयोध्या में जो हुआ वह बिल्कुल नहीं होना चाहिए था। यह हमारी विफलता थी। हमने खेद व्यक्त किया है लेकिन मुझे लगा कि देश में धारणा बनाने के लिए मैं भी जिम्मेदार हूं। मैंने लखनऊ में आडवाणी और जोशी जी के साथ संयुक्त रूप से एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया था। मैंने लोगों को स्पष्ट आश्वासन दिया था कि विवादित ढांचा नहीं गिराया जाएगा लेकिन उसे ढहा दिया गया। मैं अपना अफसोस, पीड़ा, व्यथा व्यक्त करना चाहता था। इसलिए मैंने इस्तीफा पेश किया था।”
लिब्रहान आयोग ने वाजपेयी को माना था बाबरी विध्वंस का दोषी
बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच के लिए भारत सरकार ने लिब्रहान आयोग का गठन किया था। न्यायमूर्ति एमएस लिब्रहान इस आयोग का नेतृत्व कर रहे थे। आयोग ने 17 वर्षों की जांच के बाद अपनी रिपोर्ट जून 2009 में केंद्र सरकार को सौंपी थी। आयोग ने बाबरी विध्वंस को पूर्व नियोजित माना था।
रिपोर्ट में कुल 68 लोगों को विध्वंस के लिए व्यक्तिगत रूप से दोषी ठहराया गया था, जिनमें से अधिकांश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और भाजपा सहित अन्य हिंदुत्ववादी समूह के सदस्य थे। भाजपा से न केवल लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं का नाम शामिल था, बल्कि पार्टी का उदारवादी चेहरे के रूप में चर्चित अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भी शामिल था।
जस्टिस लिब्रहान ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, “एक पल के लिए भी यह नहीं माना जा सकता कि लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी या मुरली मनोहर जोशी को संघ परिवार के मंसूबों की जानकारी नहीं थी। भले ही इन नेताओं को संघ ने सतर्क जनता को आश्वस्त करने के लिए इस्तेमाल किया हो, लेकिन ये सभी वास्तव में लिए गए निर्णयों में शामिल थे।”
प्रधानमंत्री बनने के बाद कहा- काम अधूरा रह गया है
दिसंबर 2000 की बात है। अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। बाबरी विध्वंस की बरसी नजदीक थी। कांग्रेस ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती के इस्तीफे की मांग कि क्योंकि बाबरी विध्वंस मामले में CBI की चार्जशीट में इन तीनों नेताओं का नाम था।
हंगामा बढ़ता जा रहा था। 6 दिसंबर, 2000 को पीएम वाजपेयी ने सदन में कहा, “चूंकि विपक्ष के पास हमारी सरकार के खिलाफ कहने को कुछ है नहीं, इसलिए वे अयोध्या विवाद को फिर से उठा रहे हैं… राम मंदिर के निर्माण की मांग राष्ट्रीय भावनाओं की अभिव्यक्ति है। यह तो अंतिम लक्ष्य है। काम अधूरा रह गया है।”
बता दें कि बाबरी विध्वंस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने 30 सितंबर, 2020 को सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया था। अदालत ने सभी को क्यों बरी किया था, इस बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:
