बिहार में विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण के जरिए बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की पहचान करने का जो मुद्दा उठा था, वह तब हाशिए पर चला गया, जब चुनाव आयोग यह नहीं बता पाया कि इस कवायद में कितने बांग्लादेशी मतदाता मिले। लेकिन चुनाव हुए कुछ ही दिन बीते थे कि देश के 12 राज्यों में विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण का काम शुरू हो गया और पश्चिम बंगाल इसका केंद्रबिंदु बन गया। खबरें आईं कि बंगाल से बहुत से बांग्लादेशी, जिनका मौजूदा मतदाता सूची में नाम है, उनका हुजूम भारत-बांग्लादेश सीमा पर उमड़ पड़ा है और वे अपने देश वापस जाना चाहते हैं।
इस बीच, घुसपैठियों का मामला उस समय तूल पकड़ गया जब 22 नवंबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिलाधिकारियों को आदेश दिया कि बांग्लादेशियों की पहचान के लिए व्यापक अभियान चालू किया जाए और उन्हें निरुद्ध केंद्रों में भेज दिया जाए। पुनरीक्षण से लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश तक को विपक्ष ने सत्ता पक्ष का चुनावी लाभ उठाने का कदम करार दिया। उसने कहा कि अगर घुसपैठिए मौजूद हैं तो यह मौजूदा सरकारों की नाकामी है। वहीं केंद्र व राज्य में मौजूद सत्ता पक्ष ने इन कवायदों को जायज ठहराया है।
उप्र सरकार के आदेश पर मचे घमासान के दौरान ही मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या मुद्दे पर अपनी राय जताकर घुसपैठ के मुद्दे को नया आयाम दे दिया। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जयमाल्या बागची की खंडपीठ ने रोहिंग्या मुद्दे पर एक मानवाधिकार कार्यकर्ता की याचिका की सुनवाई के दौरान पूछा कि क्या घुसपैठियों का स्वागत लाल कालीन बिछाकर किया जाए? इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि मई महीने में दिल्ली पुलिस ने कुछ रोहिंग्याओं को पकड़ा था और अब उनका कोई पता नहीं है।
सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश ने तल्ख लहजे में कहा, अगर उनके पास भारत में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है और वे घुसपैठिए हैं तो क्या हम यह कहें कि आपको सारी सुविधाएं देंगे? क्या हम कानून को इस हद तक लचीला बना दें?’ न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने गरीब नागरिकों का हवाला देते हुए कहा, हमारे देश में अपने लाखों गरीब लोग हैं। वे नागरिक हैं। क्या उन्हें सुविधाएं और लाभ नहीं मिलने चाहिए? यह सच है कि अवैध घुसपैठिए भी हों तो उन्हें अत्यधिक प्रताड़ित नहीं करना चाहिए, लेकिन याचिकाकर्ता की मांग है कि उन्हें वापस लाओ।
अवैध प्रवासियों पर नकेल कसने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य के सभी 17 नगर निगमों को निर्देश दिए कि वे सफाई या अन्य कार्यों में लगे रोहिंग्या और बांग्लादेशियों की सूची तैयार करें-सीधे या संविदा एजंसियों के माध्यम से। इन सूचियों को संबंधित रेंज के संभागीय आयुक्त और महानिरीक्षक (आइजी) को सौंप दें। उन्होंने सभी 18 संभागों के संभागीय आयुक्तों और सभी 18 रेंजों के पुलिस महानिरीक्षकों को प्रत्येक संभाग में निरोध केंद्र स्थापित करने केभी निर्देश दिए।
23 नवंबर को जारी एक बयान में कहा गया था कि नेपाल सीमा और प्रमुख शहरी केंद्रों पर कार्रवाई में तेजी आई है और केंद्र तथा राज्य सरकारें अवैध विदेशी नागरिकों की पहचान करने के प्रयासों में तेजी ला रही हैं। सरकार ने यह भी कहा था कि उत्तर प्रदेश की भौगोलिक स्थिति आठ राज्यों, एक केंद्र शासित प्रदेश और नेपाल के साथ सीमा साझा करने वाली है। इससे अभियान की तात्कालिकता और बढ़ जाती है।
हाल के वर्षों में, सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ, फर्जी पहचान पत्रों और स्थिरता को प्रभावित करने वाली गतिविधियों की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिसका सीधा असर राज्य पर पड़ रहा है। इसमें आगे कहा गया है कि संसद में साझा की गई जानकारी के अनुसार, पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने साल 2016 में कहा था कि भारत में अनुमानित दो करोड़ अवैध बांग्लादेशी प्रवासी रह रहे हैं। अगस्त 2017 में, उन्होंने संसद को बताया था कि देश में 40,000 से ज्यादा अवैध रोहिंग्या प्रवासी मौजूद हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि अवैध विदेशी नागरिकों की मौजूदगी सरकारी लाभों, रोजगार के अवसरों और संसाधनों के वितरण को प्रभावित करती है क्योंकि कई लोग जाली पहचान के जरिए कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने की कोशिश करते हैं। इससे वास्तविक लाभार्थियों को नुकसान होता है। सरकार के मुताबिक लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद और वाराणसी जैसे तेजी से बढ़ते शहरों पर पहले से ही घनी आबादी और बुनियादी ढांचे की उच्च मांग के कारण सबसे ज्यादा दबाव है।
उप्र में सरकारी भवनों और पुलिस केंद्रों की पहचान की जा रही है, जिन्हें निर्वासन प्रक्रिया पूरी होने तक अस्थायी हिरासत केंद्रों में परिवर्तित किया जाएगा। बागपत में स्थानीय थानों और खुफिया इकाइयों की मदद से संवेदनशील स्थानों की जांच की जा रही है। अब तक किसी भी अवैध अप्रवासी की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन सतर्कता जारी है।
मेरठ में, जिला प्रशासन ने संदिग्ध रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिकों की जांच तेज कर दी है। आगरा में, पुलिस और नगर निगम के अधिकारियों ने व्यापक जांच शुरू की है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां अवैध अप्रवासियों के रहने की संभावना है। निगम ने लगभग 5,000 सफाई कर्मचारियों की सूची जांच के लिए सौंपी है। लखनऊ में कुछ सफाई कर्मचारी संदिग्ध पाए गए थे, इसलिए यहां भी इसी तरह की जांच शुरू की गई है।
साल के शुरू में कई राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की धर-पकड़ के लिए अभियान चलाया गया था।अप्रैल 2025 में, पुलिस ने अहमदाबाद और सूरत में तलाशी अभियान चलाकर महिलाओं और बच्चों सहित 1,000 से ज्यादा संदिग्ध अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को हिरासत में लिया था। देश भर में विभिन्न स्थानों से अवैध प्रवासियों की गिरफ्तारी की नियमित खबरें आती रहती हैं। ये स्पष्ट रूप से इंगित करती हैं कि अवैध घुसपैठिए भारत में लगभग हर जगह फैल गए हैं। मार्च में, दिल्ली पुलिस ने पश्चिम बंगाल में बेनापोल और हकीमपुर सीमाओं को पार करके अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वाले 28 बांग्लादेशियों को गिरफ्तार किया था।
अधिकारियों ने हाल ही में न केवल सीमावर्ती राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में बल्कि दिल्ली, राजस्थान, कर्नाटक में बांग्लादेशी प्रवासियों को गिरफ्तार किया है। केरल में पुलिस ने जनवरी 2025 में कोच्चि में 27 प्रवासियों को गिरफ्तार किया था। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बीएसएफ ने जनवरी 2024 और जनवरी 2025 के बीच भारत-बांग्लादेश सीमा पर 2,601 बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ा है। यह संभावना कम ही है कि उनमें से किसी को भी कभी किसी अन्य देश में निर्वासित किया जाएगा। यहां तक कि असम में भी, जो बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों की आमद से सबसे अधिक प्रभावित हुआ था, जिसने भारी असंतोष और लंबे समय तक चले छात्र आंदोलन को जन्म दिया था, वहां भी शायद ही कोई निर्वासन हुआ हो।
| श्रेणी | संख्या |
|---|
| भारत में यूएनएचसीआर पंजीकृत रोहिंग्या | 16,000 |
| भारत में रोहिंग्या (सरकारी अनुमान) | 40,000 |
| दिल्ली में रोहिंग्या की संख्या | 1,100 |
मार्च 2013 और जुलाई 2020 के बीच, असम केवल 227 बांग्लादेशी नागरिकों को निर्वासित कर सका, जबकि राज्य के विदेशी न्यायाधिकरणों द्वारा 1,36,000 से अधिक व्यक्तियों को विदेशी घोषित किया गया था। वास्तव में भारत का आव्रजन अनुभव जटिल है। पाकिस्तान,तिब्बत, अफगानिस्तान और श्रीलंका से आए शरणार्थियों के साथ सहानुभूति और व्यावहारिकता का मिश्रण रहा है, हालांकि कार्यकारी आदेशों के जरिए यह तदर्थ रहा है।
बांग्लादेश और म्यांमा से आने वाले शरणार्थियों की संख्या, पैमाने और प्रभाव, दोनों के लिहाज से, ज्यादातर अनसुलझी ही रही है। बांग्लादेश से अवैध आव्रजन दशकों पुराना मुद्दा रहा है।
भारत, बांग्लादेश के साथ पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। यह अक्सर खराब प्रबंधन वाली सीमा बड़े पैमाने पर अवैध रूप से सीमा पार करने को बढ़ावा देती है। गरीबी, राजनीतिक अस्थिरता और धार्मिक उत्पीड़न जैसे कारणों ने लाखों लोगों को सुरक्षा और अवसर की तलाश में भारत आने के लिए मजबूर किया है।
हालांकि सटीक आंकड़ा प्राप्त करना कठिन है, लेकिन अनुमान बताते हैं कि लगभग दो करोड़ अवैध बांग्लादेशी अप्रवासी भारत में रह रहे होंगे। यह आंकड़ा साल 2016 में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने संसद में उद्धृत किया था। अवैध प्रवासियों की विशाल संख्या ने विशेष रूप से सीमावर्ती राज्यों में ध्यान देने योग्य जनसांख्यिकीय परिवर्तन किए हैं। इन अवैध बांग्लादेशियों की एक बड़ी संख्या गैर-मुसलिम हैं, जिन्हें अंतत: नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के तहत भारतीय नागरिकता प्राप्त होगी। साल 1985 के असम समझौते के अनुपालन में 31 अगस्त, 2019 को असम में जारी राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) रपट ने असम में 19 लाख से अधिक अवैध प्रवासियों की पहचान की है।
| श्रेणी | संख्या |
|---|---|
| वापस भेजे गए कुल प्रवासी | 2,331 |
| बांग्लादेशी नागरिक | 411 |
| नाइजीरियाई नागरिक | 1,470 |
| यूगांडा के नागरिक | 78 |
देखा जाए तो अवैध आव्रजन भारत के संसाधनों, अर्थव्यवस्था और समाज पर कई स्तरों पर बोझ डालता है विशेषकर जनसांख्यिकीय बदलाव के मामले में। असम, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में प्रवासियों की आमद के कारण महत्त्वपूर्ण जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुए हैं, जिससे स्थानीय असंतोष और पहचान आधारित राजनीति को बढ़ावा मिला है। असंतोष ने सांस्कृतिक क्षरण के भय ने आंदोलन को जन्म दिया है, जिसमें असम आंदोलन भी शामिल है। इसकी परिणति 1985 के असम समझौते के रूप में हुई, जिसे अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है।
म्यांमा में रोहिंग्या संकट एक और आयाम प्रस्तुत करता है। म्यांमा के रखाइन प्रांत में सताए गए राज्यविहीन मुसलिम अल्पसंख्यक के रूप में, कई रोहिंग्या भारत भाग आए हैं। ये लोग बांग्लादेश से होते हुए भारत पहुंचे हैं। तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने अगस्त 2017 में राज्यसभा को सूचित किया था कि भारत में अवैध रोहिंग्याओं की आबादी 40,000 से अधिक हो गई है। अनुमान है कि लगभग 75,000 अवैध रोहिंग्या प्रवासी वर्तमान में भारत में रह रहे हैं, जिनमें से लगभग 22,000 नई दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) कार्यालय में शरणार्थी के रूप में पंजीकृत हैं।
| राज्य / केंद्र | विवरण |
|---|
| राजस्थान | झाड़ोल (उदयपुर), मोड़ता (नागौर), बहरोड़ — कुल निरुद्ध केंद्र |
| ओडिशा | कुल 20 निरुद्ध केंद्र — 2 राज्यस्तर पर, 18 जिलास्तर पर |
| केरल | वर्ष 2022 में पहला ट्रांजिट होम शुरू किया गया |
| कर्नाटक | 2 निरुद्ध केंद्र — जिनमें से एक बेंगलुरु के पास नेलमंगला में है |
| महाराष्ट्र | जुलाई 2024 में नवी मुंबई में स्थायी निरुद्ध केंद्र बनाने को मंजूरी |
| असम | 6 निरुद्ध केंद्र — डिब्रूगढ़, गोलपारा, जोरहाट, कोकराझार, सिलचर, तेजपुर |
| दिल्ली | सेवा सदन शाहज़ादा बाग और लामपुर सेवा सदन |
जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाकों में रोहिंग्याओं की आवाजाही गंभीर सुरक्षा चिंताओं को जन्म देती है। इसके अलावा, उनके कट्टरपंथी बनने की संभावना भी बनी हुई है, खासकर जब से आइएस और अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों ने उनकी दुर्दशा का फायदा उठाने में रुचि दिखाई है। चूंकि ज्यादातर रोहिंग्या बांग्लादेश के रास्ते आए हैं, इसलिए भारत उनका पहला शरणस्थल नहीं है। इस आधार पर उन्हें शरण देने का कोई अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्व शायद भारत पर न हो।
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