मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनाव नतीजे कई संकेत दे रहे हैं। ये संकेत राष्‍ट्रीय राजनीत‍ि की द‍िशा भी बता रहे हैं और मतदाताओं की मनोदशा भी। साथ ही, लोगों, खास कर ह‍िंंदी प्रदेश के लोगों की पसंद का भी इशारा कर रहे हैं। समझते हैं, क्‍या कह रहे ये नतीजे:

ह‍िंंदी प्रदेशों में लोगों के मन में मोदी 

मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ के चुनावी नतीजों से यह बात साफ पता चलती है क‍ि ह‍िंंदी भाषी प्रदेशों के मन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज भी बसे हैं। इन राज्‍यों में बीजेपी का कोई स्‍थानीय चेहरा नहीं था। नरेंद्र मोदी ही चेहरा थे। उन्‍हीं के नाम पर प्रचार हो रहा था और वोट मांगे जा रहे थे। यहां तक की राज्‍य की जनता से क‍िए गए वादों को भी ‘मोदी की गारंटी’ कह कर प्रचार‍ित क‍िया गया। इसल‍िए, यह साफ कहा जा सकता है क‍ि लोगों ने मोदी के नाम पर वोट क‍िया।

2024 में INDIA के ल‍िए क्‍या?

व‍िधानसभा चुनावों के ताजा नतीजों को देखें तो राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कांग्रेस और व‍िपक्षी गठबंधन (INDIA) के ल‍िए 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर संकेत अच्‍छे नहीं हैं। INDIA का नेतृत्‍व करने को लेकर कांग्रेस को अपनी दावेदारी मजबूती से रखने में द‍िक्‍कत आएगी। गठबंधन के दल कांग्रेस को ज्‍यादा गंभीरता से नहीं लेंगे और ऐसे में इनके बीच सहम‍त‍ि बनना आसान नहीं होगा। नतीजा होगा, चुनावी मैदान में NDA के समक्ष ब‍िखरा व‍िपक्ष। ज‍िन सीटों पर भाजपा का कांग्रेस से सीधा मुकाबला होगा, वहां कांग्रेस के ल‍िए लड़ाई अपेक्षाकृत मुश्‍क‍िल होगी।

खड़गे का संकट, कांग्रेस की कमजोरी

ताजा नतीजों के बाद भाजपा की जहां 12 राज्‍यों में अपने दम पर सत्‍ता होगी, वहीं कांग्रेस तीन में सि‍मटी होगी। कांग्रेस अध्‍यक्ष मल्‍ल‍िकार्जुन खड़गे के ल‍िए न केवल अच्‍छे चुनावी नतीजे देना मुश्‍क‍िल होगा, बल्‍क‍ि पार्टी में जान फूंकना भी आसान नहींं रह जाएगा। कर्नाटक में चुनावी जीत के साथ बतौर अध्‍यक्ष अच्‍छी शुरुआत करने वाले खड़गे के नेतृत्‍व के ल‍िहाज से भी यह स्‍थि‍त‍ि अच्छी नहीं होगी। इस तथ्‍य के बावजूद क‍ि अभी देश में INDIA के 1794 (कांग्रेस के 765) और NDA के 1651 (भाजपा के 13336) व‍िधायक हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्‍थ‍ित‍ि मजबूत होने की उम्‍मीद भी इन नतीजों से धुंधली हुई है।

मुस्‍ल‍िम अभी मुद्दा ही रहेंगे

इन चुनाव पर‍िणामों से एक और बात साफ है क‍ि मुस्‍ल‍िम अभी भी राजनीत‍ि करने और वोट पाने के ल‍िए मुद्दा ही बने रहेंगे। राजनीत‍ि में उनकी भागीदारी बढ़ने के संकेत अभी द‍िखाई नहीं दे रहे। राजस्‍थान में भाजपा ने कांग्रेस पर मुस्‍लि‍म तुष्‍टीकरण के खूब आरोप लगाए। भाजपा ने क‍िसी मुस्‍ल‍िम को ट‍िकट नहीं द‍िया। कांग्रेस ने 14 को द‍िया। वैसे, राज्‍य में हुए 15 चुनावों में केवल 1459 मुस्‍ल‍िम ही मैदान में उतरे हैं और केवल 97 जीते हैं।

रेबड़ी कल्‍चर चलेगा

मुफ्त की योजनाएं और र‍ियायत देने वाली घोषणाएं वोट पाने के सबसे मजबूत हथकंडे हैं और इन्‍हें आजमाने में कोई पार्टी पीछे नहीं रहने वाली। इस सच के बावजूद नहीं क‍ि दीर्घकाल‍िक तौर पर ये कदम समाजघाती साब‍ित होंगे। अकेले मध्‍य प्रदेश में छह साल में जनता के ऊपर कर्ज त‍िगुना बढ़ गया। हर महीने करीब हजार करोड़ रुपए मध्‍य प्रदेश में मह‍िलाओं के बैंक खाते में जमा होंगे। इतने कर्ज के बावजूद। ये कर्ज कैसे चुकेगा, इसका ह‍िसाब कोई पार्टी नहीं दे रही। उल्‍टा इन चुनावों में भी हजारों करोड़ के खर्चे हैं।

‘मह‍िला लाभार्थी’ एक नया मतदाता वर्ग

राजस्‍थान में कुल 1875 प्रत्‍याशी थीं। मह‍िलाएं केवल 183 थीं। 81 सीटें ऐसी हैं जहां एक भी मह‍िला उम्‍मीदवार नहीं थी। कांग्रेस में 27 और भाजपा में 20 मह‍िला उम्‍मीदवार थीं। यान‍ि क‍िसी पार्टी ने 15 फीसदी मह‍िलाओं को भी ट‍िकट नहीं द‍िया। लेक‍िन बीजेपी, कांग्रेस दोनों ने घोषणापत्रों में मह‍िलाओं के ल‍िए योजनाओं और वादों की झड़ी लगा दी। मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री श‍िवराज सिंह चौहान ने तीन द‍िसंबर को कहा भी, ‘लाड़ली बहनें प्‍यार बन कर बरसी हैं।’ यान‍ि, 2019 लोकसभा चुनाव के वक्‍त मतदाताओं के एक वर्ग के रूप में ‘लाभार्थी’ का खूब प्रचार हुआ था। अब ताजा व‍िधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं क‍ि लाभार्थ‍ियों में भी मह‍िलाओं पर व‍िशेष ध्‍यान देना नया चलन है।