पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने जाति जनगणना की मांग को उठाते हुए ‘जीतना आबादी, उतना हक’ का नारा दिया था। यह नारा कांशीराम की पंक्ति ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ से प्रभावित लगता है। कांशीराम बसपा के संस्थापक थे और डॉ. अंबेडकर के बाद दलितों के सबसे बड़े राजनीतिक पुरोधा माने जाते हैं।
रविवार (3 दिसंबर, 2024) को चार राज्यों के परिणाम घोषित हुए। तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान) में भाजपा की जीत हुई है। वहीं तेलंगाना में कांग्रेस पहली बार सरकार बनाने जा रही है। जिन तीन राज्यों में भाजपा की जीत हुई, वहां ओबीसी की संख्या (हालांकि OBC का कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।) निर्णायक मानी जाती है। लेकिन कांग्रेस को ‘जाति जनगणना’ की मांग का फायदा नहीं मिला।
कांग्रेस ने अपने इतिहास के उलट विधानसभा चुनावों के दौरान ‘सामाजिक न्याय’ की राजनीति करने की कोशिश की। खुद को दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की हिमायती बताते हुए, भाजपा पर वंचितों की उपेक्षा का आरोप लगाया। हालांकि इस कोशिश से कांग्रेस को राजनीतिक सफलता नहीं मिली। उल्टा भाजपा ने दलितों और आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।
आदिवासी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस का प्रदर्शन
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आदिवासी समुदाय (ST) के उम्मीदवारों के लिए 76 सीटें आरक्षित हैं। इस चुनाव में भाजपा 76 में से 41 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हुई है। 2018 में यह आंकड़ा 19 था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को भाजपा मुख्यालय (दिल्ली) पर अपने संबोधन में कहा, “गुजरात में कांग्रेस की हार में आदिवासी समुदाय ने अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में एक बार फिर कांग्रेस के खिलाफ अपना जनादेश दिया है।”
चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चला कि छत्तीसगढ़ की 29 ST सीटों में से भाजपा को 17 पर जीत मिली है, जबकि कांग्रेस के हिस्से 11 गई है। मध्य प्रदेश की 47 ST सीटों में से भाजपा ने 24 पर जीत दर्ज की है, वहीं कांग्रेस भी 22 सीट जीतने में कामयाब हुई है।
राजस्थान में आदिवासी समुदाय के उम्मीदवारों के लिए 25 सीटें आरक्षित हैं, इसमें से 12 पर भाजपा, 10 पर कांग्रेस और तीन पर अन्य को जीत मिली है। हालांकि, तेलंगाना में 12 एसटी सीटों में से नौ कांग्रेस के पास गईं है और तीन पर बीआरएस को जीत मिली है।
2018 के विधानसभा चुनावों में एसटी सीटों पर स्थिति अलग थी। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अच्छे अंतर से जीत हासिल की थी। कांग्रेस को छत्तीसगढ़ की 29 एसटी सीटों में से 25, मध्य प्रदेश की 47 एसटी सीटों में से 31 और राजस्थान की 25 एसटी सीटों में से 12 पर जीती मिली थी।
अब और तब
राज्य | भाजपा | कांग्रेस | बीआरएस | अन्य |
छत्तीसगढ़ | 17 | 11 | 0 | 1 |
मध्य प्रदेश | 24 | 22 | 0 | 1 |
राजस्थान | 12 | 10 | 0 | 3 |
तेलंगाना | 0 | 9 | 3 | 0 |
कुल | 53 | 52 | 3 | 5 |
राज्य | भाजपा | कांग्रेस | बीआरएस | अन्य |
छत्तीसगढ़ | 3 | 25 | 0 | 1 |
मध्य प्रदेश | 16 | 30 | 0 | 1 |
राजस्थान | 9 | 12 | 0 | 4 |
तेलंगाना | 0 | 5 | 5 | 2 |
कुल | 28 | 72 | 5 | 8 |
पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में एमपी और छत्तीसगढ़ में भाजपा का आदिवासियों के बीच जनाधार बढ़ा है। मध्य प्रदेश के आदिवासी सीटों पर कुल जितने वोट पड़े हैं, उसका 46 प्रतिशत भाजपा को और 42.9 प्रतिशत कांग्रेस को मिला है। ST सीटों पर भाजपा का वोट प्रतिशत 7.1 प्रतिशत बढ़ है और कांग्रेस का 0.1 प्रतिशत घटा है।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी सीटों पर कुल जितने वोट पड़े हैं, उसका 43.3 प्रतिशत भाजपा को और 41.7 प्रतिशत कांग्रेस को मिला है। ST सीटों पर भाजपा का वोट प्रतिशत 11 प्रतिशत बढ़ा है और कांग्रेस का 3.4 प्रतिशत घटा है।
राजस्थान के आंकड़े थोड़े अलग हैं। एसटी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों का वोट कम हुआ है। राजस्थान के आदिवासी सीटों पर कुल जितने वोट पड़े हैं, उसका 38.5 प्रतिशत भाजपा को और 35.4 प्रतिशत कांग्रेस को मिला है। ST सीटों पर भाजपा का वोट प्रतिशत 0.2 प्रतिशत कम हुआ है और कांग्रेस का 4.3 प्रतिशत घटा है।
तेलंगाना में कांग्रेस ने आदिवासी सीटों पर भी अच्छा प्रदर्शन किया है। तेलंगाना के आदिवासी सीटों पर कुल जितने वोट पड़े हैं, उसका 48.3 प्रतिशत कांग्रेस को और 36.2 प्रतिशत भाजपा को मिला है। ST सीटों पर कांग्रेस का वोट प्रतिशत 12.3 प्रतिशत बढ़ा है और भाजपा का 5.4 प्रतिशत कम हुआ है।
ऐसा क्यों हुआ?
भाजपा ने 2014 के बाद से हर चुनाव में आदिवासी समुदाय पर फोकस किया है। राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू की नियुक्ति में भी एक संदेश था। पीएम मोदी ने चुनावों के बीच में झारखंड में आदिवासी योद्धा बिरसा मुंडा के गांव का दौरा किया था। यह भी आदिवासियों को संकेत देने का एक तरीका था।
प्रतीकवाद से अलग देखें तो केंद्र ने एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों और मॉडल गांवों के निर्माण जैसे विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया है। भाजपा को यह श्रेय देना होगा कि जब उसे आदिवासियों के बीच समान नागरिक संहिता (UCC) के विरोध का सामना करना पड़ा, तो उसने उनके गुस्से को शांत करने के लिए तुरंत अपने कदम पीछे खींच लिए। साथ ही छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण और अत्याचार की घटनाओं को एक प्रमुख मुद्दा बना दिया।
कांग्रेस तीनों राज्य में चुनाव को अपने पक्ष में करने के लिए एसटी समुदाय पर भरोसा कर रही थी। याद होगा जब एक आदिवासी के ऊपर पेशाब करने की घटना सामने आयी थी, तो कांग्रेस ने उसे आत्म-सम्मान के हनन से जोड़ा था। साथ ही आदिवासियों के लिए कल्याणकारी वादे भी किए थे। बावजूद इसके आदिवासियों ने भाजपा पर भरोसा जताया।