लोकसभा चुनाव से पहले 27 फरवरी को राज्‍यसभा की 15 सीटों (उत्तर प्रदेश में 10, कर्नाटक में 4 और ह‍िमाचल प्रदेश में एक) के ल‍िए मतदान हुआ। अब परिणाम आ चुके हैं। भाजपा ने उत्तर प्रदेश की 10 में से आठ सीटें जीत ली है। सपा को तीन सीटों पर जीत की उम्मीद थी, लेकिन दो पर ही सफलता मिल पायी है। मतदान के दौरान सपा विधायकों ने क्रॉस वोटिंग किया यानी अखिलेश यादव की पार्टी के व‍िधायकों ने भाजपा के उम्‍मीदवारों के पक्ष में वोट‍ किया।

हिमाचल में कांग्रेस की सरकार है। उसके पास 68 में से 40 विधायक हैं। राज्यसभा सांसद चुने जाने के लिए 35 वोटों की जरूरत थी। बावजूद इसके कांग्रेस उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी हार गए और भाजपा उम्मीदवार हर्ष महाजन को जीत की हुई है।

कर्नाटक से राज्यसभा की चार सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के हिस्से तीन और भाजपा के हिस्से एक सीट गई है। कर्नाटक में पार्टी व्हिप का उल्लंघन कर भाजपा के एक विधायक ने कांग्रेस के पक्ष में वोट किया और एक विधायक ने मतदान में भाग ही नहीं लिया।

राहुल की राजनीति से पार्टी में तनाव

असल में कांग्रेस सांसद और नेहरू-गांधी परिवार की राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी राहुल गांधी की ‘राजनीतिक शैली’ अक्‍सर पार्टी में तनाव व व‍िवाद की वजह बनती रही है। राज्यसभा के लिए उम्मीदवारों का नाम तय होने के बाद भी के भीतर का कलह बाहर नजर आने लगा है। केसी वेणुगोपाल पर राहुल गांधी की निर्भरता से वरिष्ठ नेताओं का कांग्रेस से मोहभंग हो रहा है।

माना जा रहा है क‍ि मध्‍य प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ की इच्‍छा राज्‍यसभा जाने की थी। वरिष्ठ पत्रकार कूमी कपूर ने द इंडियन एक्सप्रेस के अपने साप्ताहिक कॉलम ‘इनसाइड ट्रैक’ में लिखा है कि “यदि कमलनाथ जैसे दिग्गज अपना असंतोष नहीं छिपा पा रहे हैं, तो इसका कारण यह है कि राहुल गांधी मध्य प्रदेश की हार के बाद खुले तौर पर उनका अपमान कर रहे थे। यहां तक कि कुछ रिपोर्ट्स में कमलनाथ के लिए यह तक कहा गया कि उन्होंने मध्य प्रदेश में भाजपा की मदद की थी।”

कपूर लिखती हैं, “ऐसी रिपोर्ट्स से नाराज कमलनाथ ने जवाब दिया कि यदि उन्हें एक चुनाव हारने के लिए भाजपा के प्रति नरम बताया जा रहा है, फिर तो राहुल को भाजपा का प्रमुख सहयोगी माना जाना चाहिए, क्योंकि उनके नेतृत्व में दर्जनों चुनाव हारे हैं।”

कपूर आगे लिखती हैं, “चार महीने तक राहुल से मिलने का समय लेने की कोशिश करने के बाद अशोक चव्हाण भाजपा में शामिल हो गए। चव्हाण को राहुल की तरफ से सिर्फ यही मैसेज मिला- Talk to KC (केसी – केसी वेणुगोपाल – से बात कीजिए)।”

अपने ही नेताओं को कायर और गद्दार बता रही है कांग्रेस

कपूर अपने कॉलम में पंजाब का एक उदाहरण देती हैं। पंजाब के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने पार्टी को दलील दी कि वह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते क्योंकि विधानसभा की राजनीति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। उनकी इस दलील को न सिर्फ खारिज किया गया बल्कि उन पर कायरता और भाजपा या आप (AAP) के साथ मिले होने का आरोप भी लगाया गया।

अपनी यूपी यात्रा की शुरुआत में राहुल ने सार्वजनिक रूप से राज्य के एक वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारी से मजाक में कहा कि उम्मीद है कि आपके भीतर का भाजपाई खत्म हो गया होगा। दरअसल, वह पदाधिकारी पहले भाजपा में थे।

कपूर लिखती हैं, “निराश कांग्रेसियों को लगता है कि उनके नेता का सबसे खराब गुण अपने सलाहकारों पर अत्यधिक भरोसा करना है। चुनावी हार के बाद मध्‍य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के पीसीसी अध्यक्षों और कांग्रेस विधायक दल के नेताओं को हटा दिया गया, लेकिन राज्यों के प्रभारी महासचिवों को नहीं बदला गया। हालांकि इन सब के बावजूद राहुल की मां को अपने बेटे के नेतृत्व क्षमता पर पूरा भरोसा है।”