Arvind Kejriwal CBI Case: देश की सर्वोच्च अदालत ने गुरुवार 5 सितंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका और दिल्ली आबकारी नीति मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत सीबीआई द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की और फिर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। केजरीवाल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलीले रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और सीबीआई की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू पेश हुए।
बता दें कि केजरीवाल को दिल्ली आबकारी नीति में कथित “घोटाले” के एक ही मामले के सिलसिले में दो बार गिरफ्तार किया गया था, पहली बार प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 21 मार्च, 2024 को और फिर सीबीआई ने 26 जून, 2024 को उनकी हिरासत के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के मामले में दी थी जमानत
12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने ईडी मामले में केजरीवाल को अंतरिम ज़मानत दे दी थी, हालांकि, सीबीआई की शिकायत की कार्यवाही लंबित होने के कारण उन्हें रिहा नहीं किया गया। बता दें कि 12 अगस्त को सीबीआई से जुड़े केस में केजरीवाल ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 14 अगस्त को कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया और 23 अगस्त और 5 सितंबर को दो सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं।
केजरीवाल की तरफ से क्या रहा मुख्य तर्क?
वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी ने तर्क दिया कि केजरीवाल को पहले ही तीन अलग-अलग मौकों पर जमानत मिल चुकी है, एक बार ट्रायल कोर्ट से और दो बार सर्वोच्च न्यायालय से। एक बार 10 मई को और फिर फिर 12 जुलाई को उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने राहत दी थी। ये आदेश मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) के तहत एक मामले में पारित किए गए थे जिसमें कानून की धारा 45 के तहत विशेष, अधिक कठोर जमानत शर्तें शामिल हैं। इसकी तुलना में सीबीआई की गिरफ्तारी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (पीसीए) के तहत आरोपों पर आधारित थी, जिसमें कोई विशेष जमानत प्रावधान नहीं है।
सीबीआई के केस को लेकर क्या बोले सिंघवी?
वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि यह संभवतः एकमात्र मामला है, जहां किसी व्यक्ति को अधिक कठोर जमानत शर्तों वाले विशेष अधिनियम (पीएमएलए) के तहत जमानत मिल गई है, लेकिन उसे मूल अपराध के लिए जमानत देने से इनकार कर दिया गया है, वह मूल अपराध जिससे मनी लॉन्ड्रिंग के कथित अपराध के लिए पैसा कमाया गया था।
सिंघवी ने जून 2024 में केजरीवाल की सीबीआई द्वारा की गई गिरफ्तारी का भी उल्लेख किया, जबकि वह पहले से ही हिरासत में थे, जिसे “बीमा गिरफ्तारी” कहा गया था, यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि वह तब तक जेल में रहें जब तक ईडी मामले में उनकी जमानत याचिका शीर्ष अदालत में लंबित है।
CBI की तरफ से क्या बोले एसवी राजू
सीबीआई की तरफ से पेश एसवी राजू ने तर्क दिया कि केजरीवाल को जमानत के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के बजाय निचली अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए था। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 439 के तहत, उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय दोनों के पास गैर-जमानती अपराध के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने का अधिकार है। हालांकि, उन्होंने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने कई फैसलों में माना है कि किसी आरोपी को जमानत के लिए पहले सत्र न्यायालय जाना चाहिए, जब तक कि कोई “असाधारण” परिस्थिति न हो।
सिंघवी ने तर्क दिया कि केजरीवाल को बिना वारंट के गिरफ्तार किया गया, जबकि इनमें से कोई भी शर्त उन पर लागू नहीं होती। उन्होंने दलील दी कि गिरफ्तारी के समय केजरीवाल पहले से ही हिरासत में थे, इसलिए उनके द्वारा कोई और अपराध करने की कोई संभावना नहीं है। दूसरा ये कि सभी आरोपपत्र दाखिल हो चुके हैं, इसलिए सबूतों के साथ छेड़छाड़ की कोई संभावना नहीं है। तीसरा ये कि ऐसे कोई तथ्य नहीं हैं जो दिखाते हैं कि उन्होंने गवाहों को धमकाया है; और चौथा ये कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में उनके भागने का कोई खतरा नहीं है क्योंकि देश में उनकी गहरी जड़ें हैं।