15 मई को 1998 में बने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की 25वीं वर्षगांठ थी। 26 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी को याद दिलाया कि एनडीए के अलावा कोई भी गठबंधन एक चौथाई सदी तक बरकरार नहीं रहा है। प्रधानमंत्री की यह बात सही भी है। हालांकि एक तथ्य यह भी है कि पहले भी एक NDA बना था, जो एक साल बाद ही बिखर गया था।
उन दिनों, आज की ही तरह केंद्र में सत्ताधारी पार्टी जबरदस्त फॉर्म में थी और विपक्ष अपने पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहा था। 1980 में कांग्रेस सत्ता में लौट आई थी और इंदिरा गांधी सरकार ने कुछ गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया था। साल 1977 में विभिन्न विचारधाराओं वाले दलों के साथ आने से जो जनता पार्टी सत्ता में आई थी, वह अलग-अलग ग्रुप में विभाजित हो गई थी।
अप्रैल 1980 में भारतीय जनसंघ से जनता पार्टी में शामिल होने वालों ने एक नई पार्टी बनाने का फैसला किया, जिसे उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नाम दिया।
तब कांग्रेस के खिलाफ कैसे एकजुट हो रहा था विपक्ष?
हाल में जिस तरह वर्तमान केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों के नेता पटना में एकजुट हुए, इसी तरह के प्रयास तब भी किए जा रहे थे। इंदिरा सरकार के लगभग आधा कार्यकाल पूरा करने के बाद विपक्ष ने अपनी कोशिशें और तेज़ कर दीं। इस बीच कुछ राज्यों में नये सिरे से विधानसभा चुनाव हुए और कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश में महत्वपूर्ण बदलाव हुए।
8 सितंबर, 1982 को शेख अब्दुल्ला का निधन हुआ। इसी दिन फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री का पद संभाला। उनकी सरकार 1983 के विधानसभा चुनाव के बाद भी जारी रही। कर्नाटक में जनता पार्टी के तहत एक नई सरकार बनी, 10 जनवरी 1983 को रामकृष्ण हेगड़े मुख्यमंत्री बने। आंध्र प्रदेश में तेलुगु फिल्म स्टार से राजनेता बने तेलुगु देशम के एनटी रामा राव पार्टी (टीडीपी) ने 9 जनवरी, 1983 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। आने वाले वर्षों में इन तीन मुख्यमंत्रियों ने विपक्षी एकता के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन वर्षों में कई नेताओं का उदय हुआ और बहुतों के करियर का अंत। चौधरी चरण सिंह, जिन्होंने 1979 में प्रधानमंत्री बनने के लिए जनता पार्टी को तोड़कर जनता पार्टी (सेक्युलर) बनाई थी, बाद में अपनी पार्टी का नाम लोकदल रखा। लोकदल आगे चलकर लोकदल (चरण सिंह) और लोकदल (कर्पूरी ठाकुर) में विभाजित हो गया। उस वक्त कई ऐसे दल उभरे जो किसी एक नेता की लोकप्रियता पर निर्भर थे: जगजीवन राम की कांग्रेस (जगजीवन), एचएन बहुगुणा की डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी (डीएसपी), चंद्रजीत यादव की जनवादी पार्टी और लोक दल (के) जिसमें जॉर्ज फर्नांडिस , मधु लिमये, देवीलाल और बीजू पटनायक जैसे नेता थे।
जनता पार्टी, डीएसपी और जनवादी पार्टी को मिलाकर एक पार्टी बनाने के प्रयास चल रहे थे, लेकिन मोरारजी देसाई को इस कदम के खिलाफ कुछ आपत्तियां थीं। चंद्रशेखर ने जनता पार्टी का नेतृत्व किया और अगस्त 1983 में “प्रगतिशील और समाजवादी” राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के बीच संभावित गठबंधन या उनमें से कुछ के विलय पर गहन बातचीत चल रही थी। 1983 के अंत में यूनाइटेड फ्रंट (यूएफ) का गठन हुआ, जिसमें जनता पार्टी सबसे बड़ी खिलाड़ी थी।
पुराने NDA का गठन
इसी समय विपक्ष के दो बड़े दल- लोक दल (सी) और भाजपा के विलय के प्रयास भी चल रहे थे। बीजेपी अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी और चरण सिंह के बीच बातचीत चल रही थी। जनता पार्टी में अपने अनुभव से आहत भाजपा चरण सिंह के प्रस्ताव को अस्वीकार करती रही। 12-14 फरवरी 1982 को भुवनेश्वर में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाजपा ने कहा कि वह किसी अन्य पार्टी के साथ विलय के खिलाफ है, लेकिन स्पष्ट किया कि वह “सार्थक सहयोग” की नीति का पालन करेगी।
दूसरी तरफ चरण सिंह विलय की मांग करते रहे। वाजपेयी ने अप्रैल 1983 में शिमला में स्पष्ट किया कि वह और उनकी पार्टी किसी भी प्रकार के विलय के खिलाफ है। हालांकि भाजपा सत्तारूढ़ कांग्रेस (आई) के खिलाफ एक राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चे की आवश्यकता को उठाती रही। भाजपा और लोक दल (सी) के नेताओं के बीच बैठकें नए सिरे से शुरू हुईं। अगस्त 1983 के मध्य में इन दोनों दलों को लेकर एनडीए का गठन किया गया। समझौते के मुताबिक चरण सिंह लोकसभा में और लालकृष्ण आडवाणी राज्यसभा में एनडीए के नेता बने। इस तरह एनडीए का पहली बार जन्म हुआ।
चरण सिंह और वाजपेयी बैठक में नहीं हुए शामिल
अपनी दो पार्टियों के साथ एनडीए और नौ पार्टियों के साथ यूएफ के गठन के साथ, कांग्रेस (आई) के खिलाफ लड़ने के लिए दोनों गठबंधनों के बीच एक समझ बनाने की कोशिश की जा रही थी।
अक्टूबर 1983 में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने श्रीनगर में विपक्षी नेताओं की एक बैठक की मेजबानी की। बैठक के बाद केंद्र-राज्य संबंधों पर एक प्रस्ताव अपनाया गया। बैठक में विपक्षी दिग्गज प्रकाश सिंह बादल, चंद्रजीत यादव, बीजू पटनायक, जगजीवन राम और एनटी रामा राव शामिल हुए। आमंत्रण के बावजूद चरण सिंह और वाजपेयी बैठक में शामिल नहीं हुए। बाद में उन्होंने दावा किया कि उन्हें निमंत्रण काफी देर से मिला।
चुनाव को ध्यान में रखकर बना एनडीए ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाया। अगस्त 1984 में इसके गठन के एक साल बाद ही, दोनों दलों ने परस्पर विरोधी बयान देना शुरू कर दिया। वाजपेयी और चरण सिंह अक्सर कहते थे कि वे एनडीए के भविष्य को लेकर अनिश्चित हैं। जबकि भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। चरण सिंह ने एक नई पार्टी बनाई, जिसका नाम रखा- दलित मजदूर किसान पार्टी (डीएमकेपी)। अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या ने राजनीतिक परिदृश्य बदल दिया। सहानुभूति की लहर पर सवार होकर कांग्रेस सत्ता में आई।