बच्चन और नेहरू-गांधी परिवार के बीच करीब छह दशक तक प्रगाढ़ संबंध रहे। वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई अपनी किताब ‘नेता अभिनेता: बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स’ में बताया है कि कैसे दशकों का यह रिश्ता कुछ घटनाओं के बाद पूरी तरह बिखर गया।
दोनों परिवारों के बीच दोस्ती इलाहाबाद के ‘आनंद भवन’ में परवान चढ़ी। किदवई की किताब बताती है कि साल 1942 में सरोजनी नायडू ने हरिवंश राय और तेजी को पहली बार नेहरू परिवार में आमंत्रित किया। वहीं इंदिरा गांधी और तेजी बच्चन की दोस्ती हुई, जो आजीवन चली।
शादी से पहले तेजी बच्चन का नाम तेजी कौर सूरी था। वह सिख परिवार से थीं। वहीं हरिवंश राय बच्चन कायस्थ थे। तेजी के पिता अपनी बेटी की शादी कायस्थ परिवार में करने के खिलाफ थे। बकौल अमिताभ बच्चन उनके माता-पिता की शादी इलाहाबाद की पहली इंटर-कास्ट मैरिज थी।
तेजी बच्चन से दोस्ती के कुछ समय बाद ही इंदिरा ने भी पारसी फिरोज गांधी से शादी की। इंदिरा गांधी के पिता जवाहरलाल नेहरू इस शादी के खिलाफ थे। हालांकि महात्मा गांधी के हस्तक्षेप के बाद उन्हें मानना पड़ा। इस तरह तेजी बच्चन और इंदिरा गांधी में यह कॉमन था कि दोनों ने अपने-अपने धर्म के बाहर विवाह किया था। अमिताभ बच्चन दोनों परिवारों के बीच गहरी दोस्ती होने का एक कारण इसे भी मानते हैं।
कभी साथ खेलते थे दोनों परिवार के बच्चे
इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी और संजय गांधी, दूसरी तरफ तेजी बच्चन के बेटे अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन, साथ-साथ बड़े हुए। अमिताभ बच्चन उम्र में राजीव गांधी से दो साल बड़े थे। दोनों परिवार लगभग एक ही समय इलाहाबाद से दिल्ली शिफ्ट हुआ। राजीव और संजय गांधी की तरह ही अमिताभ और अजिताभ के लिए भी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आवास तीन मूर्ति भवन में जाना आम बात थी।
दोनों परिवारों के बच्चों की स्कूली पढ़ाई अलग-अलग विद्यालयों में हुई। लेकिन छुट्टियां सभी ने साथ मनाई। बकौल अमिताभ छुट्टियों में वो सभी राष्ट्रपति भवन के स्वीमिंग पूल में तैराकी किया करते थे। आगे चलकर नेहरू-गांधी परिवार ने अमिताभ बच्चन को बॉलीवुड में सेट होने में भी मदद की। प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव गांधी ने उनकी कई तरह से सहायता की।
जब सोनिया का मायका बना तेजी बच्चन का घर
सोनिया गांधी अमिताभ को अपना भाई मानती थीं। उन्हें अमित कहकर बुलाती थीं। शादी से पहले जब सोनिया गांधी पहली बार भारत आई थीं, तो वह 43 दिन बच्चन परिवार के साथ रहीं थीं।
दरअसल, यह एक ट्रेनिंग पीरियड था। इंदिरा गांधी चाहती थीं कि उनकी होने वाली बहू भारतीय तौर-तरीके सीखे और इस ट्रेनिंग के लिए बच्चन परिवार का घर ही उन्हें पसंद आया था। यही वजह है कि सोनिया गांधी तेजी बच्चन को अपनी तीसरी मां कहती थीं। पहली मां जिन्होंने उन्हें जन्म दिया। दूसरी मां इंदिरा गांधी और तीसरी मां तेजी बच्चन।
मोहभंग
राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया का बच्चन परिवार से मोह भंग हो गया। दरअसल, उन्हें उम्मीद थी कि उस संकट की घड़ी में बच्चन परिवार उनका साथ देगा लेकिन आश्चर्यजनक रूप से ऐसा नहीं हुआ।
अनुभवी पत्रकार और पूर्व सांसद संतोष भारतीय की एक किताब ‘वीपी सिंह, चन्द्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं’ में एक किस्से का जिक्र करते हैं। किस्सा राहुल गांधी की कॉलेज फीस से जुड़ा है। किताब में दावा किया गया है कि सोनिया ने एक दिन अमिताभ से राहुल गांधी की कॉलेज फीस के मुद्दे पर चर्चा की और पैसों की व्यवस्था का आग्रह किया।
भारतीय के मुताबिक, अमिताभ ने जवाब दिया कि ललित सूरी और सतीश शर्मा ने सारा पैसा गड़बड़ कर दिया है। लेकिन मैं कुछ करूंगा। दो दिन बाद अमिताभ ने सोनिया को 1,000 डॉलर का चेक भेजा। हालांकि, उन्होंने चेक उन्हें लौटा दिया।
सोनिया गांधी इस घटना को कभी नहीं भूल सकीं और इसे अपना अपमान मानते हुए उन्होंने अमिताभ को अपनी जिंदगी से हमेशा के लिए निकाल दिया। ऐसी ही कई और घटनाएं हुईं जिसने धीरे-धीरे गांधी और बच्चन परिवार के बीच कड़वाहट और अविश्वास पैदा किया।
अमिताभ चाहते थे राजनीति न करें सोनिया
किदवई की किताब में दावा किया गया है कि अमिताभ बच्चन नहीं चाहते थे कि सोनिया गांधी राजनीति में कदम रखें। किताब के मुताबिक, अमिताभ बच्चन ज्योतिष में बहुत विश्वास करते हैं। राजीव गांधी की मौत के बाद साल 1997 में जब सोनिया गांधी पर राजनीति में आने का चौतरफा दबाव बनाया जा रहा था, ठीक उसी समय अमिताभ बच्चन ने सोनिया गांधी की एक ‘वर्ल्ड क्लास कुंडली’ बनवाई।
उस कुंडली की आधार पर बच्चन ने सोनिया को राजनीति में न उतरने की सलाह दी। उन्होंने बार-बार सोनिया गांधी को समझाया। किदवई लिखते हैं कि बच्चन ने ऐसा कर सोनिया गांधी के आत्मविश्वास गिराने का काम किया।