शराब के सेवन का इतिहास सदियों पुराना और दिलचस्प रहा है। श्रीराम देवता ने अपनी किताब अमृत- द ग्रेट इंडियन चर्न में इसके कई पहलुओं का जिक्र किया है। उन्होंने बताया है कि क्यों कोरोना महामारी के दौरान सरकारी शराब की दुकानों को खोलने की जरूरत पड़ी? आखिर ऐसी क्या वजह थी कि जब सबकुछ बंद था तो सरकार शराब की दुकानें खोल रही थी और दिल्ली, यूपी, केरल, कर्नाटक जैसे राज्यों ने स्टेट एक्साइज रेट बढ़ाया? इसका जवाब है शराब से मिलने वाला राजस्व।
कोरोना-काल में जब सब कुछ बंद था तो कई राज्यों में शराब की दुकानें ही खुली थीं। दिल्ली, यूपी, केरल और कर्नाटक में तो सरकारों ने उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) भी बढ़ा दिया था। जब सब कुछ बंद था तो शराब की दुकानों क्यों खोली गईं! कई लोग इससे हैरान थे। लेकिन, आंकड़ों में इसका कारण समझा जा सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की 2018-19 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा शराब से उत्पाद शुल्क के रूप में इकट्ठा की गयी कुल राशि 1.51 ट्रिलियन रुपये थी, जो भारत द्वारा सेना पर खर्च की गई राशि 1.55 ट्रिलियन रुपये से थोड़ी ही कम है!
इन आंकड़ों से साफ है कि राजस्व के लिए राज्यों की शराब पर निर्भरता कितनी अधिक है। दूसरी तरफ उन्हें शराब के अत्यधिक सेवन को भी नियंत्रित करना होता है। शराब की बिक्री से प्राप्त राजस्व औसतन एक राज्य के कुल राजस्व का 13 प्रतिशत हेाता है। GST अमल में आने के बाद उत्पाद शुल्क और पेट्रोलियम पर वैट/बिक्री कर ही राज्यों के लिए राजस्व के सबसे बड़े स्रोत हैं। देवता ने किताब में एक विशेषज्ञ के हवाले से बताया है कि 500 रुपये की शराब की 12 बोतलें (एक पेटी) उत्पाद शुल्क के बाद छह हजार रुपये की हो जाती हैं।
भारत में शराब का इतिहास
शराब का भारत में एक समृद्ध इतिहास है। वेदों में सोम रस के आनंद का वर्णन है जबकि कुछ वर्गों के लिए इसे वर्जित भी किया गया है। आयुर्वेद के ग्रंथ चरक संहिता में सोम रस के संयमित उपयोग की सलाह दी गई है और नियंत्रित सेवन के स्वास्थ्य लाभों के बारे में भी बताया गया है।
मौर्य काल में भी मदिरा को लेकर शासकों का कुछ ऐसा ही नजरिया रहा था। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा कि मदिरा पर शासन का नियंत्रण रहना चाहिए। बनाने, बेचने से लेकर पीने की जगह तक पर। यह मौजूदा कानूनों से बहुत अलग नहीं था।
लेखक ने संदर्भों के हवाले से बताया है कि मुगलों के शासन में, शराब के प्रति कोई एक दृष्टिकोण नहीं रहा। यह शासक पर निर्भर करता था। अकबर शायद ही कभी शराब पीते थे। उन्होंने दरबार में भी सभी के लिए शराब पीने पर प्रतिबंध लगा दिया था। केवल विदेशियों को छूट थी। इसके एकदम उलट, अकबर के बेटे जहांगीर मदिरा के दीवाने थे। शाहजहां भी बहुत शराब का सेवन करते थे, जबकि औरंगज़ेब पूरी तरह से शराब से दूर रहते थे।

अंग्रेजों के शासन में शराब पर शुल्क
अंग्रेजों के आगमन के साथ शराब की भट्टियों पर उत्पाद शुल्क लगाया गया जो भूमि राजस्व के साथ-साथ ब्रिटिशों के लिए आय का अतिरिक्त स्रोत बन गया। 1878 के आबकारी अधिनियम जैसे कानूनों ने बिना अनुमति और लाइसेंस के ताड़ी निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया और महुआ से भी पारंपरिक तरीके से शराब बनाने की प्रक्रिया को नियंत्रित किया। इससे औद्योगिक प्रक्रिया से उच्च गुणवत्ता वाली शराब बनने का रास्ता साफ हुआ।
भारत की आजादी के वक्त तक शराब पर उत्पाद शुल्क राजस्व का एक बड़ा स्रोत बना रहा। कुछ अनुमानों के अनुसार, भूमि राजस्व के बाद आय का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत यही था।
किस राज्य में कैसा है शराब का सेवन
स्वतंत्र भारत में ग्यारह प्रांतों और 565 रियासतों में कई प्रशासन थे, लेकिन देश भर में गांधीवादी प्रवृत्तियों के चलते मद्य निषेध की शुरुआत हुई। 1954 में भारत के लगभग एक चौथाई हिस्से में मद्यनिषेध से जुड़े कानून पारित किए थे। हालांकि, राजस्व में कमी, अवैध शराब बनने और जहरीली शराब से होने वाली मौतों के चलते 1960 के दशक के मध्य तक मद्यनिषेध का चलन कमजोर पड़ने लगा।
अकेले गांधी का गुजरात है जहां 1960 से मद्यनिषेध लागू है। इसके अलावा, उत्तरपूर्वी राज्य नागालैंड और मिजोरम में बाद में शराबबंदी लागू हुई। मणिपुर में आंशिक प्रतिबंध है। पूर्ण शराबबंदी वाले राज्यों की सूची में बिहार का नाम नया है।
शराब पर रेगुलेशन
भारत में शराब बनाने वाली कोई कंपनी अगर पूरे देश में कारोबार करती है तो उसे अलग-अलग तरह के कानूनों का पालन करना होता है। शराब की बिक्री से जुड़ा मामला देखने का अधिकार राज्यों के पास है और भारत में 36 राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों में उनकी अपनी उत्पाद शुल्क नियमावली है।कर्नाटक की नीतियां उदार हैं तो तमिलनाडु में सरकार ने अपना पूरा नियंत्रण रखा हुआ है।
1996 के पंचायत अधिनियम के जरिए इसे और जटिल बना दिया गया। इसके तहत आदिवासी क्षेत्रों को संबंधित राज्य के कानूनों से स्वतंत्र रखते हुए अपने नियम बनाने की छूट दी गई। यह जटिलता न्यूनतम शराब पीने की आयु (जो 18 वर्ष से 25 वर्ष तक है) और घर पर कितनी शराब रखी जा सकती है, इसमें भी दिखती है।
किस राज्य में कितनी शराब रखने की अनुमति
दिल्ली में 9 लीटर देसी-विदेशी शराब और 18 लीटर बियर, वाइन या अल्कोपॉप (मिक्सड ड्रिंक जैसे ब्रीज़र) घर पर रखने की अनुमति है। हरियाणा में, आप 750 मिली की छह बोतलें स्थानीय शराब की, 750 मिली की अठारह बोतलें आईएमएफएल (भारत में बनी विदेशी शराब), 650 मिली की बारह बोतलें बियर, 750 मिली की छह बोतलें रम, 750 मिली की छह बोतलें वोदका/साइडर/जिन और बारह बोतलें वाइन की रख सकते हैं। इसके विपरीत, केरल 3 लीटर आईएमएफएल और 6 लीटर बियर घर पर रखने की अनुमति देता है।
महिलाओं में शराब का सेवन कम
भारत में जहां अरुणाचल प्रदेश में 52 प्रतिशत पुरुष शराब पीते हैं, महाराष्ट्र में केवल 14 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं। महिलाओं के मामले में इसकी खपत काफी कम है। अरुणाचल प्रदेश की 24.2 प्रतिशत महिलाएं शराब का आनंद लेती हैं जबकि तेलंगाना में यह केवल 6 प्रतिशत है।