22 मार्च 1977 को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए। इमरजेंसी के ठीक बाद हुए इस चुनाव में इंदिरा गांधी को बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी। इंदिरा के बेटे संजय गांधी को भी करारी हार का सामना करना पड़ा। मोरारजी देसाई की अगुवाई में देश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। चुनाव में करारी शिकस्त के बाद इंदिरा गांधी अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर सशंकित हो गईं। उन्हें सबसे ज्यादा चिंता संजय की सता रही थी, जिन्हें इमरजेंसी के खलनायक के तौर पर पेश किया जा रहा था।

फार्म हाउस में गड़वा दिया संदूक

द इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी अपनी किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ में लिखती हैं कि उन दिनों इंदिरा गांधी 1 सफदरजंग रोड पर रहती थीं। इंदिरा की हार के चंद दिनों बाद दिल्ली में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के ज्वाइंट डायरेक्टर वीवी नागरकर को खबर मिली कि इंदिरा के 1 सफदरजंग रोड वाले घर से दो बड़े-बड़े संदूक उनके छतरपुर स्थित फार्म हाउस भेजे गए और वहां जमीन में दबा दिया गया। इन संदूकों में दस्तावेज थे।

जॉर्ज फर्नांडिस ने सचिव को भेजा रेकी करने

IB अफसर नागरकर अपने तगड़े नेटवर्क के लिए मशहूर थे। उन्हें जैसे ही यह खबर मिली तो फौरन एक नोट तैयार किया और सरकार को भेज दिया। इसकी एक कॉपी जॉर्ज फर्नांडिस को भी सौंप दी। फर्नांडिस ने अपने राजनीतिक सचिव रवि नैयर को इंदिरा के फार्म हाउस की रेकी करने को कहा। नैयर, आईबी के एक डीएसपी के साथ छतरपुर पहुंचे।

खाली हाथ लौटे थे अफसर

चौधरी लिखती हैं कि रवि नैयर के साथ जो डीएसपी गया था, उसने कहा था कि वह अपने साथ एक ऐसा उपकरण (गैजेट) लाएगा जो जमीन के नीचे दबे किसी धातु को तुरंत पकड़ लेगा। यह उपकरण हैदराबाद से आना था। लेकिन जब नैयर वहां पहुंचे तो देखा कि डीएसपी खाली हाथ थे। दोनों ने काफी देर इंदिरा के फार्म हाउस की रेकी की लेकिन कुछ खास हाथ नहीं लगा। एक महीने बाद हैदराबाद से वह उपकरण आ गया और रवि नैयर दोबारा फार्म हाउस गए। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।

इंदिरा के फार्म हाउस में काम करने वाले एक माली ने बताया कि दोनों संदूक को कुछ दिन पहले ही जमीन से निकाल कर कहीं और ले जाया गया है। नीरजा चौधरी लिखती हैं कि वह ऐसा दौर था, जब इंदिरा को डर सता रहा था कि जनता सरकार संजय के साथ क्या करेगी और जनता पार्टी के नेताओं को लगता था कि इंदिरा गांधी उनकी सरकार गिराने के लिए किसी हद तक जा सकती हैं।