50 Years of Pin Code: 1 अप्रैल 1744 को भारत को अपने पहले तीन डाक मंडल मिले: बंगाल, बॉम्बे और मद्रास। देश को उपनिवेश बनाने की शुरुआत में अंग्रेजों ने जिन क्षेत्रों में काम किया, उसमें डाक सर्विस भी शामिल है। आजादी के समय देश के शहरी क्षेत्रों में लगभग 23,344 डाकघर थे। हालांकि अंग्रेजों के जाने के 25 साल बाद भी इंडियन पोस्टल सर्विस इतना सक्षम नहीं थी कि आम लोगों का संदेश कम समय में सही जगह आसानी से पहुंचा सके।

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स्थानों के एक जैसे नाम, खराब हैंडराइटिंग, अलग-अलग भाषा, डाकिये के पास दूसरी भाषाओं की अज्ञानता और लोगों में साक्षरता की कमी के कारण पत्र का देर से मिलना या गलत पते पर चले जाना आम था। इस समस्या से निपटने के लिए एक ऐसे सूत्र की जरूरत थी, जो भाषा की बाध्यता को पार कर सके और स्थान विशेष को परिभाषित करने में सक्षम हो ताकि स्थान का नाम एक जैसा होने के बावजूद संदेह की स्थिति पैदा न हो।

इन्हीं समस्याओं से निपटने के लिए 15 अगस्त 1972 को Postal Identification Number (PIN) की शुरुआत हुई थी। इसलिए साल 2022 सिर्फ भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ (India@75) की वजह से खास नहीं है। यह PIN कोड के उद्भव की 50वीं साल सालगिरह की वजह से भी विशेष है। पिन कोड की शुरुआत से पहले डाकघरों में चिट्ठियों को डिवीजन में बांटा जाता था, इस प्रक्रिया में बहुत समय खर्च होता था।

सैनिक की शिकायत

संस्कृत के कवि श्रीराम भीकाजी वेलणकर (shriram bhikaji velankar) को भारत में PIN कोड का जनक माना जाता है। वेलणकर केंद्रीय संचार मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव और पोस्ट एंड टेलीग्राफ बोर्ड के एक वरिष्ठ सदस्य थे। हालांकि इसकी शुरुआत के पीछे एक सैनिक की शिकायत का भी महत्वपूर्ण योगदान है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ये बात उन दिनों की है जब वेलणकर कोलकाता में डाक-तार विभाग के निदेशक थे। उनके दफ्तर में केरल का रहने वाला एक सैनिक पहुंचा, जिसकी तैनाती अरुणाचल प्रदेश में थी। सैनिक यह शिकायत लेकर पहुंचा था कि उसके पिता की तबीयत खराब रहती है और अरुणाचल प्रदेश में चिट्ठी बहुत मुश्किल से पहुंच पाती है। पत्र के आने में एक से डेढ़ महीने का समय लग जाता है।

सैनिक की इस व्यथा को सुनकर कवि हृदय श्रीराम भीकाजी वेलणकर विकल हो उठे और उन्होंने पोस्टल इंडेक्स बनाने की ठानी, जो 15 अगस्त 1972 को लागू हुआ। इसके तहत सभी डाक क्षेत्र को 6 अंकों का यूनिक नंबर आवंटित किया गया। पिन कोड का पहला अंक पोस्टल रीजन, जैसे- उत्तरी, पूर्वी, पश्चिमी, दक्षिणी को दर्शाता है। दूसरा नंबर सब-रीजन से संबंधित होता है। तीसरा नंबर जिला बताता है। शेष तीन अंक संबंधित पोस्ट ऑफिस और भौगोलिक क्षेत्र को दर्शाते हैं।

अब भी PIN Code की जरूरत क्यों?

आज इंटरनेट के जरिए जब संदेश पहुंचाना एक सेकेंड से भी कम समय में संभव है। वीडियो कॉलिंग के माध्यम से आमने-सामने हालचाल लेना संभव है। फिर भी 50 साल पुराने PIN Code की जरूरत खत्म नहीं हुई है। उल्टा इसका इस्तेमाल बढ़ा है। जैसे-जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, कूरियर और फूड डिलीवरी सेवाएं स्थापित हो रही हैं, दोहराव से बचने और सही पते की पहचान करने के लिए पिन कोड की आवश्यकता बढ़ती जा रही है।