2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने 5 अप्रैल को घोषणापत्र जारी कर दिया। लेकिन, उसकी जीत की राह आसान नहीं दिखाई देती। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को लगातार फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। दो दिन के भीतर ही तीन बड़े चेहरे (बॉक्सर विजेंदर सिंह, पूर्व सांसद संजय निरुपम और पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ) कांग्रेस छोड़ कर चले गए। संजय निरुपम और गौरव वल्लभ ने पार्टी पर तमाम गंभीर आरोप भी लगाए हैं।
संजय निरूपम ने पार्टी में गुटबाजी और राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल को लेकर नाराजगी जताई। इससे पहले भी कई बार केसी वेणुगोपाल को लेकर पार्टी नेताओं के बीच नाराजगी की खबरें आती रही हैं।
इसके अलावा कांग्रेस की बिहार इकाई के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा, वाराणसी के पूर्व सांसद राजेश मिश्रा, महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मिलिंद देवड़ा, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, आचार्य प्रमोद कृष्णम, कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता, गुजरात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया ने भी साल 2024 में कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। आखिर क्यों एक-एक कर कांग्रेस छोड़़ रहे नेता और लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर क्या हैं पार्टी की चुनौतियां?
जनता का पसंदीदा कोई चेहरा नहीं, नेताओं का सुनने वाला कोई नहीं
कांग्रेस के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले ऐसा कोई बड़ा चेहरा नहीं है जो देश भर में जबरदस्त भीड़ तो जुटा ही सके, भीड़ को वोटों में भी बदल सके। केरल में कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में जाने वालीं पद्मजा वेणुगोपाल (के. करुणाकरण की बेटी) का साफ सवाल रहा- क्या आप कांग्रेस में एक भी मजबूत नेता का नाम बता सकते हैं?
पद्मजा वेणुगोपाल ने रीडिफ.कॉम को दिए एक इंटरव्यू में कांग्रेस की एक और समस्या की ओर ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा- जब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थीं तो वह उनसे लगातार मिलती थीं और पार्टी की समस्याओं पर बात करती थीं। लेकिन, आज पार्टी में कोई सुनने वाला ही नहीं है।
नेतृत्व पर कुछ लोगों के हावी होने का आरोप
संजय निरुपम ने कांग्रेस छोड़ने के बाद आरोप लगाया कि पार्टी में सब कुछ केसी वेणुगोपाल (संगठन महासचिव) ही तय करते हैं। कांग्रेस छोड़ने वाले कई और नेताओं ने भी केसी वेणुगोपाल पर अंगुली उठाई है। लेकिन, पार्टी ने इस पर ध्यान दिया हो, ऐसा नहीं लगता है।
संसाधनों की कमी
कांग्रेस के पास प्रतिद्वंद्वी भाजपा की तुलना में पैसे की भारी कमी है। एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की बीते साल आई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020-21 के दौरान बीजेपी की घोषित संपत्ति कुल 4990.195 करोड़ रुपये थी और 2021-22 के दौरान यह 21.17% बढ़कर 6046.81 करोड़ हो गई। जबकि 2020-21 में कांग्रेस की घोषित संपत्ति कुल 691.11 करोड़ रुपये थी और 2021-22 के दौरान यह 16.58% बढ़कर 805.68 करोड़ रुपये हो गई। देखा जा सकता है कि कांग्रेस और बीजेपी की घोषित संपत्ति में बहुत बड़ा अंतर है और ऐसे में कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव जैसा बड़ा समर लड़ पाना आसान नहीं है।
इसके अलावा इलेक्टोरल बॉन्ड से बीजेपी को सबसे ज्यादा 6060.51 करोड़ रुपए का चंदा मिला है जबकि कांग्रेस को सिर्फ 1421.86 करोड़ रुपए मिले हैं। इससे भी पता चलता है कि बीजेपी पैसे के मामले में कांग्रेस से कहीं अधिक मजबूत है।
यह निर्विवाद सत्य है कि चुनाव लड़ने और पार्टी संगठन को चलाने के लिए बहुत अधिक धन की दरकार होती है। ऐसे में कांग्रेस के सामने अपने संगठन को चलाने की एक बड़ी चुनौती मुंह के सामने खड़ी है।
आयकर आयकर विभाग के नोटिस और अकाउंट्स फ्रीज किए जाने की वजह से भी कांग्रेस मुश्किल में है। हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व अध्यक्ष सोनिया व राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि आयकर विभाग की वजह से पार्टी को जबरदस्त आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है।
कांग्रेस निश्चित रूप से संसाधनों की कमी से जूझ रही है और इस मामले में बेहद मजबूत बीजेपी से मुकाबला कर पाना भी उसके लिए बड़ी चुनौती है।
कमजोर संगठन
कांग्रेस के सामने एक बड़ी चुनौती संगठन का कमजोर होना भी है। आजादी के बाद 1947 से लेकर 1977 तक केंद्र की सत्ता में एक छत्र राज करने वाली कांग्रेस की हालत आज बेहद खराब है। कांग्रेस लगातार दो लोकसभा चुनाव बुरी तरह हार चुकी है और आज गिने-चुने तीन राज्यों- कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में ही उसकी सरकार है। इसमें से भी हिमाचल प्रदेश में उसकी सरकार पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं।
लगातार चुनावी हार से कांग्रेस का संगठन बेहद कमजोर हो गया है और कांग्रेस के सामने इस कमजोर संगठन के बलबूते बेहद मजबूत सांगठनिक आधार रखने वाली बीजेपी को हराना बड़ी चुनौती है।

नेताओं का पार्टी छोड़ना
कांग्रेस के सामने एक और बड़ी चुनौती लगातार पार्टी छोड़ रहे नेताओं को रोकने की है। साल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही कांग्रेस के तमाम बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं।
इन नेताओं में पूर्व विदेश मंत्री एसएम कृष्णा से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़, अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सुष्मिता देव, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद सहित कई नाम शामिल हैं। ये ऐसे नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस में लंबे वक्त तक काम किया था।
विपक्षी दलों को एकजुट करना
एक लंबी कोशिश के बाद भी कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एकजुट नहीं कर पाई। पंजाब में आम आदमी पार्टी के साथ उसका गठबंधन नहीं हो पाया और ऐसा ही कुछ पश्चिम बंगाल में भी हुआ जहां टीएमसी ने उसे एक भी सीट देने से इनकार कर दिया। इससे बीजेपी को यह कहने का मौका मिला है कि इंडिया गठबंधन खंड-खंड हो गया है।

टिकट बंटवारे के दौरान भी सहयोगी दलों के साथ बिहार और महाराष्ट्र में कांग्रेस की तनातनी देखने को मिली है। हालात यहां तक खराब रहे कि एनडीए छोड़कर विपक्षी दलों के साथ आए नीतीश कुमार भी इंडिया ब्लॉक को छोड़कर चले गए। ऐसे में तमाम विपक्षी दलों को एकजुट रखने की चुनौती भी कांग्रेस के सामने है।