चार अप्रैल 1979 को पाकिस्तान में लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए पहले प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो फांसी देकर मार दिया गया था। उन्हें रावलपिंडी की जेल में फौजी शासन जिया उल हक के आदेश से सजा ए मौत दी गई थी। उन पर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी को मरवाने का आरोप था। जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के सबसे ताकतवर नेताओं में थे पर उन्हें फौज ने 1977 में तख्तापलट करके पद से हटा दिया था।
लेफ्टिनेंट कर्नल रफीउद्दीन ने अपनी किताब ‘भुट्टो के आखिरी 323 दिन’ में लिखा है कि जुल्फिकार अली भुट्टो को इस बात का विश्वास था कि जिया उल हक उन्हें फांसी नहीं देगा। लेकिन उनकी यह धारणा चार अप्रैल को टूट गई। रफीउद्दीन को उस समय रावलपिंडी जेल में तैनात किया गया था ताकि वो भुट्टो पर नजर रख सकें। भुट्टो को फांसी देकर रास्ते से हटाने वाला शख्स और कोई नहीं जिया उल हक था, जिसे भुट्टो ने सेना प्रमुख बनाया था।
लेकिन ऐसा क्या हुआ कि जिया ने उसी शख्स को मौत दे दी, जिसने उसे शिखर पर पहुंचाया था। इस बात को समझने के लिए 1976 की एक घटना को समझना होगा। तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो मुल्तान की यात्रा पर गए थे और जिया ने उनके स्वागत की पूरी तैयारी की थी। मुल्तान में देर रात भुट्टो अपने कमरे में कुछ काम कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि शीशे के बाहर किसी की परछाई दिखाई दे रही है। उन्होंने अपने एडीसी को पता लगाने के लिए भेजा तो मालूम हुआ कि बाहर डिवीजनल कमांडर जिया उल-हक खड़े थे।
भुट्टो ने उनसे पूछा कि इतनी देर रात तक वो उनके कमरे के बाहर क्या कर रहे थे। इस पर जिया ने चापलूसी की चाशनी में डूबा हुआ ऐसा जवाब दिया, जिसका असर सीधा भुट्टो के दिल और दिमाग पर हुआ। जिया ने कहा था, “मैंने सुना है कि हमारे राष्ट्रपति देश सेवा में लगे हैं। मैं आपके कमरे के बाहर से निकल रहा था तो नजर कमरे की रोशनी पर गई और मैं ये देखकर दंग रह गया कि हमारा राष्ट्रपति इतनी देर रात तक काम कर रहा है।” चापलूसी का यह तीर अपने निशाने पर लगा और चतुर भुट्टो ने तय कर लिया कि पाकिस्तान का अगला सेना प्रमुख यही शख्स बनेगा।
पाकिस्तान के शासकों पर लिखी किताब ‘पाकिस्तान एट द हेल्म’ में लेखक तिलक देवेशर ने लिखा है, “जिया बहुत ही चालाक थे और सबके सामने खुद को ऐसे पेश करते थे मानो उनसे ज्यादा भला और शरीफ दुनिया में नहीं होगा। उनकी सबसे अच्छी आदत यह थी कि वो किसी को भी न नहीं कहते थे। वो सुनते सबकी थे पर करते वही थे जो उनकी इच्छा होती थी।” उनकी इस चालाकी को बेहद समझदार माने जाने वाले जुल्फिकार अली भुट्टो भी नहीं भांप पाए थे।
भुट्टो यह मानते रहे कि जिया वही करेंगे जो वो कहेंगे। भुट्टो कई बार जिया को सबके सामने ‘बंदर जनरल’ भी कहते थे। ताकि ये दिखा सकें कि उनका आर्मी चीफ उनकी मुट्ठी में है। भुट्टो कभी उनके छोटे कद की खिल्ली उड़ाते, कभी उनके चेहरे और दांतों का। यह सब करते हुए भुट्टो ने कभी भी नहीं सोचा होगा कि जल्द ही उनका ‘जनरल बंदर’ उनकी कैसी दुर्गति करने वाला था। सेना प्रमुख होते हुए भी जिया यह सब बर्दाश्त करते रहे। मानो वो हर बात को हिसाब में लिख रहे थे। उन्होंने अपनी हर बेइज्जती को दिल में रखा और जब मौका आया तो उसका बदला भी लिया। शायद यही वजह थी कि वो भुट्टो को फांसी देने के लिए आमादा थे।
विनाश की नींव: भुट्टो ने जब तय किया कि वो जिया उल हक को सेना प्रमुख बनाएंगे तो उन्हें कई लोगों ने ऐसा न करने के लिए समझाया भी। लेकिन वो यह मानते रहे कि पारी बाहर तरक्की से जिया उनका वफादार रहेगा। लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। भुट्टो के बेहद नजदीकी रहे गुलाम मुस्तफा खार के हवाले से तिलक देवेशर ने लिखा है कि “मैंने भुट्टो को आगाह किया था कि वो जिया को सेनाध्यक्ष बना कर जिंदगी की सबसे बड़ी गलती कर रहे हैं। तब भुट्टो यह कहते हुए अपनी बात पर कायम रहे कि न तो जिया बहुत प्रभावशाली है, न ही वो जमीन से जुड़ा आदमी है और वो अच्छी अंग्रेजी भी नहीं बोल पाता है। तो ऐसे व्यक्ति से क्या खतरा होगा।
कुरान की कसम: भुट्टो को भरोसा जीतने के लिए एक बार जिया ने उनको एक कुरान शरीफ भेंट की। साथ ही उस कुरान पर हाथ रखकर कसम खाई कि वो हमेशा भुट्टो के प्रति वफादार और ईमानदार रहेंगे। इस पर भुट्टो को लगा कि जब ये इतनी नाक रगड़ रहा है तो इससे उन्हें कोई खतरा नहीं होगा।
कौन थे जिया उल हक: 12 अगस्त, 1924 को जालंधर में जन्में जिया उल हक के पिता फौज में क्लर्क थे। उनकी पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कॉलेज में हुई थी। पढ़ाई में औसत रहे जिया को रीडर्स डायजेस्ट पढ़ने का बहुत शौक था। वो अपने दोस्तों से हमेशा यह कहते थे कि इससे उनको दुनिया के बारे में खूब जानकारी मिलती है। पढ़ाई के बाद उन्होंने भी फौज की नौकरी ज्वॉइन की।
बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए। यहां 1976 में जनरल टिक्का खान के रिटायर होने के बाद जुल्फिकार अली भुट्टो की खुशामद करके उन्होंने आर्मी चीफ का पद हासिल कर लिया। फिर आई चार जुलाई, 1977 की रात। जब जिया उल हक ने ‘ऑपरेशन फेयरप्ले’ के तहत भुट्टो समेत पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के सभी चोटी के नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया।
एक कब्र, दो लोग: क्या जिया उल हक ने अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए भुट्टो को मरवाया था? यह तो तय नहीं है लेकिन यह जरूर तय है कि पाकिस्तान की गद्दी पर बने रहने के लिए उनके पास कोई और रास्ता भी नहीं था। अगर वो भुट्टो को छोड़ देते तो शायद भुट्टो मौका पाकर उन्हें मरवा देते। जिया यह भी जानते थे कि जेल से छूटकर भुट्टो और ताकतवर हो जाएंगे। चुनाव कराने का दबाव बनाया जाएगा और उसमें जीत मिल गई तो पहला शिकार होंगे जिया उल हक।
जिया की मौत: जिया उल हक कई वर्षों तक तक पाकिस्तान पर राज करते। लेकिन 17 अगस्त 1988 को बहावलपुर के पास एक हवाई जहाज दुर्घटना में रहस्यमय परिस्थितियों में उनका निधन हो गया। इस दुर्घटना में जिया के साथ पाकिस्तान में अमेरिका के राजदूत आर्नल्ड राफेल, दो जनरल, एक लेफ्टिनेंट जनरल, तीन मेजर जनरल और पांच ब्रिगेडियर भी मारे गए थे।

