कतर की राजधानी दोहा में शनिवार को अमेरिका और तालिबान के बीच ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर हो गए। इस दौरान 30 देशों के राजदूत मौजूद रहे। भारत की तरफ से कतर में भारतीय राजदूत पी.कुमारन शांति समझौते में शामिल हुए। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इस शांति समझौते का बड़ा असर पड़ने की उम्मीद है।
भारत के लिहाज से भी यह समझौता काफी अहम साबित होने जा रहा है। दरअसल भारत, अफगानिस्तान में शांति का पैरोकार रहा है और इसी के तहत भारत आतंक ग्रस्त अफगानिस्तान में कई अहम विकास योजनाएं चला रहा है। हालांकि अब अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी से भारत की चिंता बढ़ सकती है।
ये हो सकती है भारत के लिए परेशानीः भारतीय खूफिया एजेंसी रॉ के पूर्व अधिकारी तिलक देवेश्वर ने टीओआई के साथ बातचीत में कहा कि भारत ने पिछले दो दशक में अफगानिस्तान में काफी निवेश किया है। ऐसे में भारत की चिंता इस निवेश की सुरक्षा, अपने राजदूतों और वहां काम कर रहे अन्य लोगों की सुरक्षा को लेकर है।
उन्होंने कहा कि इसके साथ ही शांति समझौते से अफगानिस्तान में कई इलाके ऐसे बन सकते हैं, जहां वहां की सरकार का नियंत्रण नहीं होगा। आशंका है कि ऐसी जगहों को पाकिस्तान द्वारा आतंकी संगठनों को खड़ा करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। खासकर लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद जैसे आतंकी गुट अफगानिस्तान में पनप सकते हैं। जिससे भारत की सुरक्षा के लिए सीधा खतरा पैदा हो सकता है।
शांति समझौते से पाकिस्तान खुशः अमेरिका और तालिबान के बीच हुए शांति समझौते से पाकिस्तान को फायदा मिल सकता है। दरअसल पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई का तालिबान के साथ करीबी रिश्ता होने की बात सामने आती रही है। तालिबान को बातचीत की टेबल पर लाने में भी पाकिस्तान की अहम भूमिका बतायी जा रही है। ऐसे में डर है कि पाकिस्तान इसका फायदा उठाकर अफगानिस्तान में अपनी रणनीतिक पकड़ मजबूत कर सकता है।
जिस तरह जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान भारत से नाराज है। उसे देखते हुए आशंका जतायी जा रही है कि पाकिस्तान तालिबान के कट्टरपंथी लड़ाकों की मदद से घाटी में आतंकवाद को बढावा दे सकता है। इस शांति समझौते से अफगानिस्तान की चुनी हुई अशरफ गनी सरकार पर भी संशय के बादल मंडरा गए हैं और सरकार के भविष्य खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है।