अमेरिका की ओर से गठित एक आयोग ने कहा है कि 2014 में भारत में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद धार्मिक अल्पसंख्यकों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों की ओर से हिंसक हमलों, जबरन धर्मांतरण और घर वापसी अभियानों का सामना करना पड़ा है।
अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने ओबामा प्रशासन से यह भी कहा है कि वह भारत सरकार से उन अधिकारियों व धार्मिक नेताओं को फटकार लगाने के लिए दबाव बनाए जो समुदायों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां करते हैं और इस बहुलतावादी देश में धार्मिक स्वतंत्रता के मानकों को बढ़ावा देने के लिए भी कहे।
आयोग ने कहा कि देश के बहुलतावादी दर्जे और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के बावजूद भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करने और अपराध होने पर न्याय प्रदान करने में में लंबा संघर्ष करना पड़ा है जिससे दंडमुक्ति का माहौल बना। उसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि धार्मिक रूप से प्रेरित और सांप्रदायिक हिंसा पिछले तीन सालों में लगातार बढ़ने की खबर है।
आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, ओड़ीशा, कनार्टक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में धार्मिक रूप से प्रेरित हमलों और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं सर्वाधिक देखने को मिली हैं। उसने कहा कि 2014 के आम चुनाव के प्रचार के दौरान गैर सरकारी संगठनों और मुसलिम, ईसाई व सिख समुदायों सहित धार्मिक नेताओं ने धार्मिक रूप से विभाजित करने वाले अभियान में शुरुआती इजाफा किया।
रिपोर्ट में कहा गया है-चुनाव के बाद धार्मिक अल्पसंख्यकों को सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं की ओर से अपमानजनक टिप्पणियों और संघ व विहिप जैसे हिंदू राष्ट्रवादी समूहों की ओर से हिंसक हमलों और जबरन धर्मांतरण का सामना करना पड़ा है।
आयोग ने कहा कि दिसंबर, 2014 में उत्तर प्रदेश में ‘घर वापसी’ अभियान के तहत हिंदू समूहों ने क्रिसमस के दिन कम से कम 4,000 ईसाई परिवारों और 1,000 मुसलिम परिवारों को जबरन हिंदू धर्म में धर्मांतरण कराने की योजना का एलान किया। उसने आगरा में मुसलिम समुदाय के कई लोगों का कथित तौर पर लालच देकर धर्मांतरण कराए जाने की घटना का भी उल्लेख किया है।
आयोग ने कहा कि सितंबर, 2014 में ‘दलित सेवेंथ-डे एडवेंटिस्ट्स’ ने उत्तर प्रदेश में रिपोर्ट दायर की कि उनके वर्ग के लोगों को जबरन हिंदू बना दिया गया और उनके गिरजाघर को हिंदू मंदिर में तब्दील कर दिया गया। यह पता नहीं है कि इस मामले में पुलिस जांच की गई या नहीं। आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में धार्मिक स्वतंत्रता पर उनके विचारों का भी उल्लेख किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल फरवरी में कैथोलिक संतों को सम्मानित करने के एक समारोह में मोदी ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि ‘उनकी सरकार यह तय करेगी कि धर्म की संपूर्ण स्वतंत्रता हो और हर किसी को बिना किसी उत्पीड़न या अनुचित प्रभाव के अपनी इच्छा के अनुसार धर्म में रहने अथवा अपनाने की पूरी स्वतंत्रता हो।
आयोग ने कहा, ‘यह बयान उन आरोपों के संदर्भ में उल्लेखनीय है कि गुजरात में 2002 के मुसलिम विरोधी दंगों में मोदी की संलिप्तता थी’। गौरतलब है कि 2002 में दंगों के मामलों में किसी भी भारतीय अदालत ने मोदी को कुछ भी गलत करने का दोषी नहीं पाया है।
हम इस तरह की रिपोर्ट का संज्ञान नहीं लेते: भारत
भारत ने अमेरिकी कांग्रेस द्वारा गठित आयोग की रिपोर्ट पर गुरुवार को तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वह इस तरह की रिपोर्ट का संज्ञान नहीं लेता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि हमारा ध्यान यूएससीआइआरएफ की एक रिपोर्ट की ओर आकर्षित किया गया है, जिसमें भारत में धार्मिक स्वतंत्रता पर फैसला सुनाया गया है। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट भारत, उसके संविधान और उसके समाज के बारे में सीमित समझ पर आधारित लगती है। उन्होंने कहा कि हम इस तरह की रिपोर्ट का संज्ञान नहीं लेते हैं।