अमेरिका में अगले महीने 5 तारीख को राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं, जिन पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं। चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार और मौजूदा उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आमने-सामने हैं। यह चुनाव अमेरिका की जनता तय करेगी कि अगला राष्ट्रपति कौन होगा, लेकिन दोनों उम्मीदवार जनता के हर वर्ग का समर्थन पाने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। इस बार खास तौर पर मुस्लिम और अरब समुदायों के समर्थन को लेकर चुनावी माहौल गरमाया हुआ है। कमला हैरिस ने मुस्लिम और अरब समुदायों का समर्थन पाने के लिए अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं। इस प्रयास से यह साफ होता है कि भारत की तरह अमेरिका में भी मुस्लिम वोट बैंक की अहमियत है।
इजरायल को हथियार सप्लाई करने का वादा समर्थन में बन रहा बाधा
हालांकि, यहां एक बड़ी चुनौती यह है कि मौजूदा अमेरिकी सरकार और राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इजरायल को बिना शर्त समर्थन दिया हुआ है। कई लोग मानते हैं कि जब तक कमला हैरिस इजरायल को हथियार सप्लाई करने का अपना वादा निभाती रहेंगी और बाइडेन के इजरायल समर्थक फैसलों से खुद को अलग नहीं करेंगी, तब तक अरब और मुस्लिम वोटरों का समर्थन पाना मुश्किल हो सकता है। गाजा और लेबनान में इजरायल की सैन्य कार्रवाई को लेकर कमला हैरिस को कई सवालों का सामना करना पड़ रहा है। उनकी इन नीतियों की वजह से मुस्लिम और अरब समुदाय में उनकी लोकप्रियता पर असर पड़ सकता है। इस मुद्दे पर उनके सख्त रुख से उनकी छवि को नुकसान हो सकता है, खासकर उन लोगों के बीच जो इजरायल की नीतियों के खिलाफ हैं।
कमला हैरिस इस चुनौती से निपटने के लिए एक विस्तृत रणनीति पर काम कर रही हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी यह रणनीति मुस्लिम और अरब समुदाय के वोटरों का समर्थन हासिल कर पाती है या नहीं। हाल के दिनों में कमला हैरिस और उनकी टीम ने मुस्लिम और अरब नेताओं से कई बार मुलाकातें की हैं, जहां उन्होंने मुस्लिम समूहों के नेताओं से समर्थन मांगा।
इन मुलाकातों से कुछ हद तक उनकी पार्टी को मुस्लिम समुदाय का समर्थन भी मिला है, लेकिन यह समर्थन अभी पूरी तरह से मजबूत नहीं है। मुस्लिम समुदाय में इजरायल की नीतियों को लेकर असहमति बनी हुई है, और यही वजह है कि कमला हैरिस को इस समर्थन को पूरी तरह पुख्ता करने में कठिनाइयां आ रही हैं। इससे साफ है कि कमला हैरिस के सामने मुस्लिम और अरब समुदाय का भरोसा जीतना एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए उन्हें अपनी रणनीतियों को और भी बेहतर ढंग से लागू करना होगा।
बंद दरवाजों के पीछे मुलाकातें
कई लोगों ने कमला हैरिस की उन निजी बैठकों की आलोचना की है, जो उन्होंने कुछ खास लोगों के साथ की हैं। आलोचकों का कहना है कि ये लोग असल में मुस्लिम समुदाय का सही प्रतिनिधित्व नहीं करते। वाशिंगटन डीसी में रहने वाली फिलिस्तीनी-अमेरिकी एक्टिविस्ट लॉरा अल्बास्ट का मानना है कि ये बैठकें सिर्फ दिखावे के लिए होती हैं और इससे असली मुद्दों पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
मुस्लिम समुदाय में असंतोष
कमला हैरिस का मुस्लिम समुदाय तक पहुंचने का प्रयास ऐसे समय में हुआ है जब गाजा और लेबनान में इजरायल के सैन्य हमले तेज हो गए हैं। इससे अमेरिकी मुस्लिम और अरब समुदायों में नाराजगी बढ़ गई है। इन समुदायों के नेता उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से मांग कर रहे हैं कि इजरायल को दी जा रही सैन्य मदद पर रोक लगाई जाए, ताकि इजरायल पर गाजा के खिलाफ युद्ध रोकने का दबाव बढ़ सके, लेकिन कमला हैरिस ने इन मांगों को ठुकरा दिया है।
हाल ही में मुस्लिम-अमेरिकी संगठन एमगेज ने कमला हैरिस के समर्थन की घोषणा की, जिससे कुछ समुदाय के नेताओं में नाराजगी पैदा हुई है। एमगेज का कहना है कि उनका समर्थन डोनाल्ड ट्रंप को हराने के लिए है, जो रिपब्लिकन उम्मीदवार हैं। हालांकि, कुछ लोग एमगेज के इस कदम को मुस्लिम समुदाय की भावनाओं के साथ धोखा मान रहे हैं। उनके मुताबिक, इजरायल को समर्थन देने वाली नीतियों के बावजूद कमला हैरिस का समर्थन करना सही नहीं है। इस स्थिति ने मुस्लिम और अरब समुदायों में एक नई बहस छेड़ दी है।
कमला हैरिस का यह प्रयास यह साफ दिखाता है कि अमेरिका में भी राजनीति जाति और धर्म के आधार पर हो रही है। मुस्लिम और अरब वोटरों का समर्थन पाने के लिए जो भी प्रयास किए जा रहे हैं, वे तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक उनकी असली चिंताओं को सुना और समझा न जाए। भले ही ये कोशिशें कितनी भी बड़ी क्यों न हों, जब तक समुदाय की समस्याओं को सही तरीके से हल नहीं किया जाता, तब तक ये समर्थन हासिल करना मुश्किल होगा। फिलहाल, कमला हैरिस के लिए यह एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।