अमेरिका मानवाधिकार निकाय ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी को लेकर एक सिफारिश में कहा है कि अमेरिकी विदेश विभाग को रूस, सीरिया और वियतनाम के साथ भारत को धार्मिक स्वतंत्रता उल्लंघन के लिए “विशेष चिंता वाले देश” के रूप में नामित करना चाहिए। हालांकि इस तरह की सिफारिश 2020 में भी की जा चुकी है लेकिन उस दौरान अमेरिकी राज्य विभाग इसके लिए सहमत नहीं था।
बता दें कि यह सिफारिश धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार रैंकिंग जारी करने से एक महीने पहले की गई है। भारत को लेकर अमेरिकी मानवाधिकार की फैक्टशीट में कहा गया है कि 2020 और 2021 की शुरुआत में, भारत सरकार ने उन नीतियों को लागू रखा जिनकी वजह से भारत के मुस्लिम, ईसाई, सिख, दलित और आदिवासी समुदायों के सदस्यों की धार्मिक आजादी प्रभावित हुई।
इसमें नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, धर्मांतरण विरोधी कानून, अंतर्विवाह प्रतिबंध और गोहत्या विरोधी कानूनों का उल्लेख किया गया है। कहा गया है कि इससे “घृणा, असहिष्णुता और भय के माहौल” को बढ़ावा मिला। धार्मिक आजादी को लेकर विशेष चिंता वाले देशों में रखने की सिफारिश को भारत ने सख्ती के साथ खारिज किया है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा है कि अमेरिकी मानवाधिकार निकाय को भारत और उसके संविधान की कम समझ है। वहीं द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, धार्मिक आजादी की रैंकिंग में विशेष चिंता वाले देशों की सूची में भारत के तीन पड़ोसी देश शामिल हैं। जिसमें पाकिस्तान, चीन और म्यांमार शामिल हैं।
इसके अलावा उत्तर कोरिया, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और नाइजीरिया भी इसी सूची में आते हैं। वहीं अब अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (USCIRF) चाहता है कि विदेश विभाग रूस, सीरिया और वियतनाम के साथ भारत को भी इस रेड लिस्ट में शामिल करे।
बता दें कि इससे पहले भी भारत ने इस तरह कि सिफारिश पर अपनी सफाई में कहा था कि अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी पर अमेरिकी निकाय उन मामलों में केवल पूर्वाग्रह के आधार पर अपनी बात कहता है जिनमें उसका कोई अधिकार नहीं।
अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राज्य आयोग निकाय एक स्वतंत्र, द्विदलीय संघीय सरकार की संस्था है जिसकी स्थापना अमेरिकी कांग्रेस द्वारा विदेशों में धार्मिक स्वतंत्रता पर निगरानी, विश्लेषण और रिपोर्ट देने के लिए की गई है।