प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की आलोचना किए जाने के कुछ दिन बाद वैश्विक संस्था ने आतंकवाद के खिलाफ अपने रुख का बचाव करते हुए कहा है कि वह ‘निश्चित तौर पर’ इस खतरे से निपटने में एक जिम्मेदार रवैया अपनाने की कोशिश कर रही है। महासचिव बान की-मून के उप प्रवक्ता फरहान हक ने कहा, ‘‘हम आतंकवाद और दुनियाभर में फैले इसके काले साए से निपटने के संदर्भ में निश्चित तौर पर एक जिम्मेदार रवैया अपनाने की कोशिश कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद के हर रूप के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय एकजुटता को प्रोत्साहन देता है, फिर चाहे वह आतंकी बम हमले हों या आतंकी वित्त पोषण।’’

हक से दरअसल पिछले सप्ताह ब्रसेल्स में मोदी द्वारा की कई कड़ी आलोचना पर संयुक्त राष्ट्र प्रमुख की प्रतिक्रिया के बारे में पूछा गया था। भारत के प्रधानमंत्री ने तब कहा था कि वैश्विक संस्था नहीं जानती कि आतंकवाद है क्या और इससे निपटना कैसे है? हक ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र हिंसक चरमपंथ को रोकने और उससे निपटने की जरूरत के मुद्दे पर अगले कुछ दिनों में जिनेवा में बैठक आयोजित करेगा। उन्होंने कहा, ‘‘और महासचिव इस पर बात करेंगे। हिंसक चरमपंथ और दुनियाभर में फैले इसके प्रकोप से निपटने के लिए हम जिन विशेष उपायों के बारे में चर्चा करते रहे हैं, महासचिव कुछ ही दिन में इनके बारे में बात करेंगे।’’

मोदी की ब्रसेल्स यात्रा आईएसआईएस द्वारा वहां हुए आतंकी हमलों के कुछ ही दिन बाद हुई थी। उन हमलों में अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के प्रस्थान स्थल और बेल्जियम की राजधानी के एक सबवे स्टेशन को निशाना बनाया गया था। हमले में 30 लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हुए थे। ब्रसेल्स में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा था कि युद्ध से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के पास सभी साधन और व्यवस्था है लेकिन वह यह नहीं जानता कि आतंकवाद की परिभाषा क्या है और उससे निपटना कैसे है?

मोदी ने यह चेतावनी भी दी थी कि यदि संयुक्त राष्ट्र इस अभिशाप से निपटने के लिए उपयुक्त उपाय लेकर नहीं आता है तो यह वैश्विक संस्था अप्रासंगिक हो जाएगी। उन्होंने कहा कि भारत कई वर्षों से आतंकवाद, आतंकियों और आतंकियों की मदद करने वालों को परिभाषित करने का अनुरोध संयुक्त राष्ट्र से करता रहा है। मोदी ने कहा था, ‘‘मैं नहीं जानता कि संयुक्त राष्ट्र ऐसा कब और कैसे करेगा लेकिन इस समय उभरती स्थिति को देखकर यह कहा जा सकता है कि यदि इस समस्या का हल नहीं ढूंढ़ा गया तो इस संस्थान को अप्रासंगिक होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।’’