ब्रिटेन ने भारत को दी जाने वाली पारंपरिक मदद सालों पहले बंद कर दी थी। लेकिन कुछ क्षेत्रों की परियोजनाओं को उसकी मदद जारी थी। लेकिन अब ब्रिटेन के सांसदों ने सरकार से पूछा है कि जब भारत चांद पर जाने के प्रोजेक्ट के लिए पैसे दे सकता है, तो वहां पर पैसे क्यों खर्च किए जा रहे हैं? जबकि इन पैसों की यूके में बुरी तरह से जरूरत है। इस संबंध में डेली एक्सप्रेस और डेली मेल में हफ्ते में दो बार खबरें प्रकाशित की गईं। खबराेंं का शीर्षक है, “भारत को 98 मिलियन यूरो की मदद पर नाराजगी” और “उनके चंद्रमा मिशन को हम प्रायोजित कर रहे हैं”
एचटी में प्रकाशित खबर के मुताबिक, यूके के अंतरराष्ट्रीय विकास विभाग के अनुसार, मौजूदा साल में भारत के लिए उनका बजट करीब 400 करोड़ रुपये का है। जबकि साल 2019-20 के लिए ये बजट करीब 351 करोड़ रुपये के आसपास होगा। विभाग ने कहा, “इस पैसे को देने का उद्देश्य दोनों देशों में खुशहाली बढ़ाना, नई नौकरियां पैदा करना, स्किलस का विकास और दोनों देशों में नए बाजार खोलना है।”
लेकिन इन अखबारों ने सांसदों के नाराजगी भरे बयान प्रकाशित किए हैं। दरअसल सांसद ब्रिटेन के द्वारा दी जा रही करीब 98 मिलियन यूरो (भारतीय करंसी में करीब 750 करोड़) की मदद और चंद्रयान-2 प्रोजेक्ट के बजट के बीच समानता देख रहे हैं। विभाग ने इस बात की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है कि भारत बीते कुछ सालों से दानदाता रहा है, वह मदद मांगने वाला देश नहीं रहा है। लेकिन मोनमाउथ से कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद डेविड डेविस ने कहा, “भारतीयों को हमारे पैसे की जरूरत नहीं है। इस पर भी हम चांद पर जाने के भारतीय मिशन को प्रायोजित कर रहे हैं। ये तब हो रहा है जब यूके की जनसेवाओं जैसे स्वास्थ्य के बजट में लगातार कटौती की जा रही है।”
वहीं अंतरराष्ट्रीय विकास विभाग के प्रवक्ता ने कहा,” विभाग ने भारत को पारंपरिक मदद साल 2015 में बंद कर दी थी। अब यूके भारत को विश्वस्तरीय विशेषज्ञ और निजी निवेश उपलब्ध करवाता है जिससे खुशहाली बढ़ती है, नए रोजगार पैदा होते हैं और नए बाजार खुलते हैं, जबकि यूके को भी इससे फायदा पहुंचता है। ये पूरी तरह से हमारे हित में है। ब्रिटेन के करदाताओं का एक पैसा भी भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए नहीं दिया गया है।” वैसे बता दें कि यूके उन चुनिंदा देशों में शुमार है जो अपनी कुल राष्ट्रीय आय का 0.7% अंतरराष्ट्रीय मदद देने में खर्च करता है। वैसे बता दें कि ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय विकास विभाग को कंजर्वेटिव सरकार के अन्य विभागों की तरह साल 2010 से बजट में कटौती का सामना नहीं करना पड़ा है।

