थाईलैंड एक बार फिर राजनीतिक असंतोष से सुलग रहा है। 29 अगस्त, 2025 को वहां के संवैधानिक न्यायालय ने अपने एक फैसले में पैतोंगटार्न शिनावात्रा को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया। यह फैसला न केवल शिनावात्रा परिवार के लिए एक बड़ा झटका है, बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि सैन्य या राजतंत्र-समर्थित सरकार में किसी जनवादी नेता को लंबे समय तक अपनी सत्ता बनाए रखने में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
एक जुलाई, 2025 को एक जांच के लिए प्रधानमंत्री पद से अस्थायी रूप से निलंबित किए जाने के बाद पैतोंगटार्न शिनावात्रा को अब बायदा सत्ता से हटा दिया गया है। इस तरह वह एक वर्ष में दूसरी प्रधानमंत्री और 2008 के बाद पांचवीं प्रधानमंत्री बन गई हैं, जिनको संवैधानिक न्यायालय ने बर्खास्त किया है। इतना ही नहीं, वह अपने परिवार की तीसरी सदस्य हैं, जिन्हें इस तरह से पद से हटाया गया है। यह थाई लोकतंत्र में मौजूद गंभीर अस्थिरता को दर्शाता है। यह कार्रवाई निश्चय ही कंबोडियाई नेता हून सेन के साथ उनकी फोन पर हुई बातचीत के सार्वजनिक हो जाने के कारण की गई है, जिसमें उन पर विदेशी नेता हून के प्रति सम्मान दिखाने, अपने ही जनरल की छवि खराब करने और राष्ट्रीय सुरक्षा के बजाय अपने निजी हितों को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया गया है।
थाईलैंड का राजनीतिक इतिहास
हालांकि, उन्होंने इसे आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने और सीमावर्ती इलाकों में अमन-चैन बहाल करने की रणनीति के तहत की गई बातचीत का हिस्सा बताया है। मगर अदालत ने माना है कि यह नैतिक रूप से गलत था, जिस कारण उनकी बर्खास्तगी एक उचित फैसला है। यह निर्णय बहुत गहरी खामियों को उजागर करता है, खासतौर से लोक-समर्थक आंदोलनों और राजशाही-सैन्य प्रतिष्ठान के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को, जो थाई राजनीति को प्रभावित करता रहा है।
थाईलैंड के राजनीतिक इतिहास में इस बात के पर्याप्त सुबूत हैं कि न्यायपालिका, जो अक्सर सत्ता-व्यवस्था के साथ मिलकर काम करती है, सैन्य-राजशाही नेताओं की तुलना में जनवादी और सुधारवादी नेताओं के खिलाफ कहीं अधिक निर्णायक रूप से फैसले सुनाती है। शिनावात्रा राजवंश इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है। थाकसिन शिनावात्रा को, बार-बार चुनावी जीत के बावजूद, 2006 में तख़्तापलट करके सत्ता से हटा दिया गया और उनकी थाय रेक थाई पार्टी को संवैधानिक न्यायालय ने भंग कर दिया।
बर्खास्तगी के नतीजों का आकलन करना बेहद जरूरी
इसके बाद, उनकी बहन यिंगलक को भी 2014 में एक और तख्तापलट से कुछ दिन पहले एक कर्मचारी के संदिग्ध स्थानांतरण के कारण पद से हटा दिया गया। अन्य सहयोगियों, जैसे कि समक सुंदरवेज को हितों के टकराव के आरोप में, 2008 में एक कुकिंग शो की मेजबानी करने पर पद से हटाया गया, तो सोमचाई वोंगसावत को पीपुल्स पावर पार्टी को भंग करने के बाद पद से बर्ख़ास्त कर दिया गया। इन सब घटनाओं से यही पता चलता है कि यहां निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकारों को गिराने के लिए अदालतों का बार-बार इस्तेमाल किया गया है।
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इस बर्खास्तगी के नतीजों का आकलन करना बेहद जरूरी है। माना जा रहा है कि अब थाईलैंड घरेलू स्तर पर अस्थिरता के एक और चक्र में उलझ सकता है।