मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि के पास अतिक्रमण रोधी कार्रवाई में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट ने साफ इनकार कर दिया है। संविधान के आर्टिकल 32 के तहत दायर याचिका पर शीर्ष अदालत ने कहा कि वो अपने पिछले आदेश को आगे बढ़ाने नहीं जा रही है। अगर आपको दिक्कत है तो मथुरा की दीवानी अदालत के पास जाकर परेशानी को बयान करिए।

जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने कहा कि इस याचिका में जिस राहत के लिए अनुरोध किया गया है, उस पर निचली अदालत बेहतर फैसला दे सकती है। मथुरा की कोर्ट में कार्यवाही लंबित है। लिहाजा हम इस रिट का निस्तारण करते हैं। बेंच ने उस status quo को बढ़ाने से भी इनकार कर दिया, जिसका उसने 16 अगस्त को आदेश दिया था। इसके जरिये शीर्ष अदालत ने रेलवे के अतिक्रमण अभियान को 10 दिनों के लिए रोक दिया था।

संविधान के आर्टिकल 32 के तहत दायर की गई थी याचिका

बेंच मथुरा निवासी याकूब शाह की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील से सवाल किया कि जब दीवानी अदालत में मुकदमे लंबित हैं तो संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका में क्या राहत दी जा सकती है। संविधान का अनुच्छेद 32 भारतीय नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों के लिए सीधे शीर्ष अदालत का रुख करने का अधिकार देता है।

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि अधिकारियों ने डिमॉलिशन की कार्रवाई उस दिन की जब उत्तर प्रदेश में अदालतें बंद थीं। 100 मकान पहले ही ध्वस्त किए जा चुके थे। बेंच ने कहा कि आप अदालत से पूरी राहत का अनुरोध कर सकते हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से स्टेटस को बढ़ाने का अनुरोध किया तो बेंच ने कहा कि हमने आपको 10 दिनों के लिए संरक्षण दिया था। आपने दीवानी अदालत का रुख क्यों नहीं किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 16 अगस्त को मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के निकट बने कथित अवैध निर्माण को ढहाने के रेलवे के अभियान पर दस दिन के लिए रोक लगा दी थी। 25 अगस्त को मामला फिर से शीर्ष अदालत के सामने सुनवाई के लिए आया। लेकिन कोर्ट ने अंतरिम आदेश को नहीं बढ़ाया।