स्वीडन और फिनलैंड ने पिछले साल यूक्रेन के खिलाफ रूस के आक्रामक युद्ध के जवाब में नाटो में शामिल होने के लिए आवेदन किया था। फिनलैंड पहले ही इस गठबंधन में शामिल हो गया है, लेकिन तुर्किये और हंगरी ने स्वीडन के आवेदन पर अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए इन स्केंडेनेवियन देश को इसमें शामिल होने से रोक रखा था।

हालांकि, इस हफ्ते की शुरुआत में तुर्किये के राष्ट्रपति रेचप तैयब एर्दोगान ने कई महीनों से जारी अपना प्रतिरोध वापस ले लिया। हंगरी ने भी ऐसा ही किया और पहली बार ऐसा लग रहा है कि निकट भविष्य में स्वीडन को नाटो की सदस्यता मिल जाएगी।

विश्लेषकों का कहना है कि स्वीडन की सदस्यता पूरे बाल्टिक तट को नाटो का क्षेत्र बना देगी – रूसी तट और उसके बाहरी क्षेत्र को छोड़कर। इससे रूसी आक्रमण की स्थिति में बाल्टिक राज्यों की रक्षा करना आसान हो जाएगा। स्वीडन से एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया जैसे देशों तक सेना और उपकरणों को जहाज के जरिए आसानी से पहुंचाया जा सकेगा। यहां से पूरे बाल्टिक सागर पर नियंत्रण रखा जा सकता है।

दरअसल, स्वीडन की भौगोलिक स्थिति ही वह सबसे बड़ा कारण है जिसकी वजह नाटो उसे सदस्यता देने को आतुर है। हालांकि स्वीडन एक छोटा सा देश है और उसकी सेना में सैनिकों की संख्या करीब 38 हजार है। लेकिन स्वीडन की सेना अत्याधुनिक है। पनडुब्बियों के मामले में वह अच्छी नौसैनिक ताकत है और उसकी थल सेना के पास युद्ध लड़ने का अनुभव है। अफगानिस्तान समेत नाटो के कई अभियानों में स्वीडिश सेना पहले ही भाग ले चुकी है।

स्वीडन अपने सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का करीब 1.3 फीसद हिस्सा रक्षा के क्षेत्र में खर्च करता है। पश्चिम के अन्य कई देशों की तरह, शीत युद्ध के बाद, स्वीडन ने भी अपने रक्षा खर्च में काफी कटौती की थी। यूक्रेन संकट को देखते हुए स्वीडन रक्षा खर्च बढ़ाने की तैयारी में है। स्वीडन और नाटो पहले से ही कई तरीकों से एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं।

ऐसे में नाटो की सदस्यता मिलने से स्वीडन के संदर्भ में अहम बदलाव आएगा, जैसा कि गठबंधन की संधि के अनुच्छेद पांच में कहा गया है। इसमें कहा गया है कि नाटो के किसी भी सदस्य देश या देशों के खिलाफ कोई भी सशस्त्र हमला, नाटो के सदस्य देशों के खिलाफ हमला माना जाएगा।

नाटो की सदस्यता स्वीडन को नाटो काउंसिल में कई अधिकार देती है, जिसमें वीटो पावर का इस्तेमाल करना भी शामिल है। यही वह अधिकार था, जिसका प्रयोग करते हुए तुर्की अब तक इस स्कैंडेनेवियन देश को नाटो की सदस्यता नहीं लेने दे रहा था। नाटो में स्वीडन का रास्ता आसान नहीं था। नाटो महासचिव येंस श्टोल्टेनबर्ग ने एलान किया कि तुर्की नाटो में स्वीडन की एंट्री पर सहमत हो गया है।

लेकिन तब तक एर्दोगान ने ऐसा कोई एलान नहीं किया था। उन्होंने इस बयान के जवाब में तुर्किये को यूरोपीय संघ में शामिल करने की मांग कर दी। तुर्किये की इस मांग से ब्रसेल्स परेशान हो गया। उसने तुरंत एर्दोगान की मांग खारिज करते हुए कहा कि नाटो और यूरोपीय संघ दो अलग अलग प्रक्रियाएं हैं। बाद में नाटो के करारनामे पर सहमति के बाद जारी साझा बयान में स्वीडन ने कहा कि वह तुर्किये को यूरोपीय संघ में शामिल करने की प्रक्रिया का सक्रिय समर्थन करेगा।

आर्थिक हालात

बेतहाशा महंगाई और गोते खाती मुद्रा लीरा की वजह से तुर्किये को रूस और पश्चिम के बीच संतुलन साधना पड़ रहा है। यूरोपीय संघ और तुर्किये के रिश्तों को सुधारकर अंकारा को आर्थिक फायदा मिल सकता है। तुर्किये के कृषि उत्पादों, सर्विस सेक्टर और सरकारी भंडारण सेवाओं का दायरा फैल सकता है।

तुर्किये को यूरोपीय संघ में शामिल करने पर बातचीत 2005 में ब्रसेल्स में शुरू हुई। कभी नहीं हुई। जुलाई 2016 में तुर्किये में सैन्य तख्तापलट की कोशिश के बाद तो ये बातचीत पूरी तरह ठंडे बस्ते में चली गई। नाकाम तख्तापलट के बाद अंकारा ने आतंकवाद विरोधी कदम उठाए, जो मानवाधिकार उल्लंघन तक पहुंच गए।