बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना इस समय मुश्किलों में हैं, अपने देश से निकाली जा चुकी हैं, भारत में छिपकर रहने को मजबूर हैं और ब्रिटेन जाने की कवायद में दिख रही हैं। अब एक हैरान कर देने वाली बात है जो सभी को जरूर सोचनी चाहिए, बात चाहे हसीना की हो या फिर भारत के भगोड़े नीरव मोदी और विजय माल्या की, आखिर इन सभी को सिर्फ ब्रिटेन ही क्यों भागना होता है?
भारत-पाक और बांग्लादेश, सबको पसंद ब्रिटेन
अब इस सवाल का जवाब जानेंगे, लेकिन पहले यह समझना जरूरी है कि सिर्फ भारत के लोग ही ब्रिटेन नहीं भाग रहे हैं, हर देश का बड़ा आदमी, अपराधी सिर्फ ब्रिटेन जाने की होड़ में दिखता है। इस लिस्ट में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़, पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़, बेनज़ीर भुट्टो तक शामिल हैं। एक आंकड़ा बताता है कि 2013 से 2018 के बीच में 5500 भारतीयों ने ब्रिटेन में शरण की अपील की थी।
अफगानिस्तान के तालिबान और बांग्लादेश के उपद्रवी में कोई अंतर नहीं…
ब्रिटेन और मानवाधिकारों का पालन
असल में यूरोपीय कंवेंशन के मानवाधिकारों को लेकर जो नियम होते हैं, उनमें ब्रिटेन की तगड़ी श्रद्धा है। ब्रिटेन उन सभी नियमों को सख्ती से मानता है, इसी वजह से सभी भगोड़ों और दूसरे बड़े लोगों को लगता है कि अगर यहां पहुंच गए तो आसानी से प्रत्यर्पण नहीं हो सकता। ब्रिटेन की न्याय व्यवस्था ऐसी है कि अगर उसे लगे कि शरण लेने वाले शख्स को अपने देश में जान का खतरा है, उसे वहां पर टॉर्चर किया जा सकता है, उस स्थिति में वो उस प्रत्यपर्ण पर रोक लगा सकती है। यही राहत इन भगोड़ों को और कुछ बड़े नेताओं को रास आ जाती है।
हसीना को क्यों ब्रिटेन की जरूरत?
यह बताने के लिए काफी है कि अभी तक नीरव मोदी, मीहुल चौकसी और विजय माल्या को भारत क्यों नहीं लाया गया है। अगर इसे शेख हसीने के केस से समझने की कोशिश करें तो उन्हें भी इस बात का अहसास है कि बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बनने के बाद उनके खिलाफ केस चल सकता है, उन्हें जेल तक में डाला जा सकता है। ऐसे में उस कार्रवाई से बचने के लिए भी वे ब्रिटेन में शरण लेना चाहती हैं। वहां पहुंचकर वे आसानी से साबित कर सकती हैं कि बांग्लादेश में उनकी जान को खतरा है, ऐसे में उन्हें बाहर ना भेजा जाए।
ब्रिटेन ही बन चुका मिनी इंडिया, मिनी बांग्लादेश!
वैसे ब्रिटेन इस वजह से भी भारतीयों, पाकिस्तानियों और बांग्लादेशियों की पहली पसंद है क्योंकि वहां पर इन तीनों ही देशों के लोगों की अच्छी खासी आबादी है। इस समय ब्रिटेन में कई ऐसे इलाके हैं जिन्हें आराम से मिनी इंडिया तक कहा जा सकता है। वहां पर भारत का खाना भी मिलना कोई मुश्किल बात नहीं है, ऐसे में वहां जाकर यह लोग आराम से अपना गुजर बसर कर सकते हैं। एक दूसरा प्वाइंट यह भी समझने वाला है कि कई सालों तक अंग्रेजों ने भारत पर राज किया है, उनकी गुलामी की वजह से ही जो इंग्लैंड के कानून रहे हैं, वैसे ही कानून भारत में भी देखे गए। जानकार मानते हैं कि भारत और ब्रिटेन की कानून प्रणाली एक समान है, ऐसे में जो वकील भी होते हैं, उन्हें दोनों देशों के कानून की अच्छी खासी पकड़ होती है। इस वजह से भगोड़ों को काफी मदद मिलती है, हर तरह के कानूनी दांव-पेंच लगा वे खुद को सुरक्षित कर पाते हैं।
धीमी प्रक्रिया, सालों में आता फैसला
एक दिलचस्प बात यह भी है कि ब्रिटेन काफी प्रत्यपर्ण की अपीलों को स्वीकार करता है। भारत की ही बात करें तो 9 से 10 बार प्रत्यपर्ण की अपील कई लोगों के लिए की जा चुकी है, लेकिन सिर्फ एक बार ही ब्रिटेन ने उसे स्वीकार किया। इसके कई कारण है, सबसे आम तो यह कि वहां पर कानूनी प्रक्रिया काफी धीमी है, कई साल निकल जाते हैं, लेकिन फैसला नहीं हो पाता। इस बात का फायदा भी भगोड़े उठाते हैं और सालों तक आराम से रहते हैं।