ओस्लो। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई द्वारा पुरस्कार समारोह में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों को आमंत्रित किए जाने पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन मलाला के साहस और अदम्य शक्ति की सराहना की।
राष्ट्रपति ने यहां मीडिया साक्षात्कारों में कहा, ‘संवैधानिक रूप से, भारतीय राष्ट्रपति रोजमर्रा की राजनीति से ऊपर होता है, इसलिए नेताओं को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, मैंने ये उन्हीं पर छोड़ दिया है।’ साथ ही कहा कि उन्होंने उसी दिन अपने राजनीतिक संपर्को को समाप्त कर दिया था जिस दिन राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने का फैसला किया था।
राष्ट्रपति ने हालांकि मलाला की जी खोल कर तारीफ की। उसे एक ऐसी युवती बताया जो उसी साहस और अदम्य शक्ति का प्रतीक है जो सभ्यता को चलाने वाली ताकत है। उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि उसे यह साहस और प्रतिबद्धता कहां से मिली लेकिन वह दृढ़निश्चयी रही और उसने अपनी जिंदगी को खतरे में डाला। वह अपने मिशन से जरा भी नहीं डिगी। मुझे खुशी है कि उसकी सेवा और महिलाओं की आजादी और उनकी शिक्षा के लिए लड़ने की उसकी भावना को नोबेल शांति समिति ने मान्यता दी।’
उन्होंने मलाला के साथ पुरस्कार में साझेदारी करने वाले भारत के कैलाश सत्यार्थी की भी सराहना करते हुए कहा कि लंबे समय से बाल श्रम के खिलाफ जारी उनकी गतिविधियों को विभिन्न संगठनों ने मान्यता दी है।
राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा, ‘उन्हें न केवल जागरूकता अभियान चलाने के लिए जाना जाता है बल्कि संस्थागत व्यवस्था की स्थापना के लिए भी जाना जाता है जिसके जरिए उन्होंने बच्चों को श्रम से मुक्त कराया, उन्हें शिक्षा दी और बाद में जिंदगी में खुद को स्थापित करने में मदद की।’
यह सवाल पूछे जाने पर कि क्या पुरस्कार के कारण बाल अधिकारों के मुद्दे पर और अधिक कदम उठाने के लिए भारत सरकार पर दबाव बढ़ गया है, राष्ट्रपति ने कहा कि दबाव हो या न हो, प्रत्येक सरकार और प्रत्येक समाज को बच्चों के अधिकारों पर ध्यान देना चाहिए।
भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के बारे में सवाल किए जाने पर राष्ट्रपति ने कहा कि देश बलात्कार के मामलों के लिए बेहद शर्मिंदा है जिसे वह एक ऐसा ‘सर्वाधिक जघन्य अपराध’ मानते हैं जिसे किसी भी सभ्य समाज को नहीं होने देना चाहिए। उन्होंने हालांकि कहा कि निवेश को यौन हिंसा से नहीं जोड़ा जाना चाहिए क्योंकि ये असामान्य हैं।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘जहां तक निवेश को आकर्षित करने की बात है, मैं नहीं समझता कि इसे जोड़ा जाना चाहिए। यदि आप इस अवधि में भारत में विदेशी निवेश को देखें तो पिछले तीन सालों में यह 117 अरब डालर से अधिक रहा है । इसलिए किसी को भी निवेश को ऐसे मुद्दों से नहीं जोड़ना चाहिए। लोग इस बात को मानते हैं कि ये असामान्य हैं और इस पर अंकुश होना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि जो कुछ भी किया जाना चाहिए था, वह किया गया है और हम सभी संभावित प्रयास कर रहे हैं।