पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामले में दिवंगत पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ की मौत की सजा को बरकरार रखा है। पाकिस्तान के विभिन्न मीडिया पोर्टल्स पर यह जानकारी दी गई है।करगिल युद्ध के षड्यंत्रकर्ता माने जाने वाले परवेज मुर्शरफ की पिछले साल 5 फरवरी को दुबई में लंबी बीमारी की वजह से मौत हो गई थी। वह साल 2016 से पाकिस्तान में लगाए उनपर लगाए गए आरोपों में सजा से बचने के लिए दुबई में रह रहे थे।
परवेज मुशर्रफ से जुड़े मामले की सुनवाई पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश काजी फ़ैज़ ईसा की अध्यक्षता वाली चार जजों की बेंच ने की। इस बेंच में जस्टिस मंसूर अली शाह, जस्टिस अमीनुद्दीन खान और जस्टिस अतहर मिनल्लाह शामिल थे। 17 दिसंबर, 2019 को पाकिस्तान की एक स्पेशल कोर्ट ने परवेश मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाई थी। यह सजा साल 2007 में असंवैधानिक तरीके से इमरजेंसी लगाने के लिए मामले में लिया गया था। उस समय पाकिस्तान में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) पार्टी की सरकार थी।
पूर्व राष्ट्रपति द्वारा दायर की गई याचिका पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परवेज़ मुशर्रफ के उत्तराधिकारियों ने कई नोटिसों पर भी मामले का पालन नहीं किया। परवेज मुशर्रफ के वकील सलमान सफदर ने कहा कि उन्होंने मुशर्रफ के परिवार के कई बार संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया। पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान लाहौर हाई कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले को अमान्य घोषित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लाहौर हाई कोर्ट का फैसला कानून के खिलाफ है।
न्यायाधीशों पर भी उठाए सवाल
पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने 29 नवंबर 2023 को पिछली सुनवाई में कहा था कि 12 अक्टूबर, 1999 को मुशर्रफ द्वारा लगाए गए मार्शल लॉ को वैध ठहराने वाले न्यायाधीशों सहित उन सभी को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। जस्टिस अतहर ने यह भी टिप्पणी की थी कि जिन न्यायाधीशों ने 1999 में मुशर्रफ द्वारा मार्शल लॉ लागू करने को वैध ठहराया था, उन पर भी मुकदमा चलाया जाना चाहिए।पाकिस्तान के चीफ जस्टिस न्ने यह भी कहा था कि ‘‘भले ही किसी को संविधान को निष्प्रभावी करने के लिए दंडित नहीं किया गया हो, कम से कम किसी को यह स्वीकार करना चाहिए कि अतीत में जो किया गया वह गलत था।’’