पाकिस्तान में आम चुनाव होने जा रहे हैं, लगातार हुई हिंसा के बीच ये मुल्क एक बार फिर लोकतंत्र के दरवाजे पर खड़ा है। पाकिस्तान में इस बार मुकाबला तीन पार्टियों के बीच में है, इन तीनों ही पार्टियों के तीन सबसे बड़े चेहरे हैं यानी कि इस बार का मुकाबला इमरान खान बनाम नवाज शरीफ बनाम बिलावल भुट्टो का रहने वाला है।

पाकिस्तान में कहने को ये तीन सबसे बड़े चेहरे हैं, लेकिन जमीन पर स्थिति ऐसी बनी हुई है कि माना जा रहा है की जेल से एक बार फिर पीएम आवास तक का सफर नवाज शरीफ तय करने वाले हैं। ये बात अब पूरी दुनिया के सामने जग जाहिर हो चुकी है कि पाकिस्तान के चुनाव में सेना का सीधा हस्तक्षेप रहता है, इसी वजह से इस बार हर कोई नवाज शरीफ को सबसे आगे बता रहा है।

नवाज शरीफ इस समय सेना की गुड बुक्स में बने हुए हैं, जिस तरह से पहले वे आसानी से पाकिस्तान में दोबारा एंट्री कर पाए और उसके बाद भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बीच में फिर चुनाव लड़ पाए, माना जा रहा है की सेना की ही मेहरबानी की वजह से उन्हें फिर सियासी रूप से सक्रिय होने का मौका मिला है।

सेना का नवाज़ शरीफ़ को समर्थन देने का एक कारण ये भी है कि उसका इमरान खान के साथ रिश्ता बिल्कुल ही खराब हो चुका है। जब तक इमरान प्रधानमंत्री रहे, समय-समय पर सेना और उनके रिश्ते तल्ख होते गए अब जब वे पीएम नहीं हैं, तब भी उनकी तरफ से हो रही लगातार बयानबाजी ने पाक सेना की छवि को धूमिल किया है। इसी वजह से हर कीमत पर आर्मी अब नवाज शरीफ पर अपना दांव लगा रही है। पाकिस्तान में बैठे स्थानीय पत्रकार तो टीवी चैनलों के सामने कुबूल कर रहे हैं कि नवाज शरीफ ही देश के अगले प्रधानमंत्री बनने वाले हैं।

नवाज शरीफ की स्थिति मजबूत इसलिए भी बनी हुई है क्योंकि उन्होंने भारत कार्ड को भी काफी मजबूती के साथ इस्तेमाल किया है। चुनाव कहने को पाकिस्तान का है, लेकिन वहां भी रैलियों में भारत का जिक्र कई मौकों पर हुआ है। नवाज़ शरीफ़ ने तो ऐलान कर रखा है कि अगर वे सत्ता में फिर लौटते हैं तो भारत के साथ रिश्तों को सुधारा जाएगा। उनकी तरफ से शांति संदेश भेजने का ऐलान किया जा चुका है। ये अलग बात है कि पाकिस्तान की सियासत का ऐसा दबाव है कि उन्हें भी अपने मेनिफेस्टो में कश्मीर से 370 हटाने वाली कंडीशन डालनी पड़ गई है। लेकिन अगर इस बिंदु को छोड़ दिया जाए तो नवाज का पूरा फोकस है कि भारत पर नरम रहते हुए रिश्ते सुधारने की वकालत की जाए। नवाज के पक्ष में ये बात भी जाती है कि पीएम रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी तक ने पाकिस्तान का दौरा किया था।

अब नवाज शरीफ तो रेस में सबसे आगे दिखाई दे रहे हैं लेकिन एक वक्त पाकिस्तान में लोकप्रियता के झंडे गाड़ने वाले इमरान खान इस समय जेल में हैं। उनकी पार्टी पीटीआई जरूर मजबूती से चुनाव लड़ने की कोशिश कर रही है, लेकिन सबसे बड़े चेहरे का लाइमलाइट से दूर रहना उसे नुकसान पहुंचा रहा है। इमरान की पार्टी की हालत तो इसलिए भी खराब है क्योंकि उनके बाद दूसरे सबसे बड़े नेता शाह महमूद कुरैशी भी 10 साल के लिए जेल भेज दिए गए हैं। खुफिया जानकारी लीक करने के मामले में उन्हें आरोपी पाया गया है, इसी वजह से इस बार पीटीआई जमीन पर खस्ता दिख रही है। लोकप्रियता अपनी जगह है, लेकिन उसको भुनाने वाले नेता ही जेल की सलाखों के पीछे बैठे हैं।

जानकार मानते हैं कि पाकिस्तान में नवाज शरीफ की राह को आसान करने के लिए भी ये सब कुछ हो रहा है। वैसे नवाज शरीफ सेना के पहले से पसंदीदा नहीं थे। ये नहीं भूलना चाहिए कि 2018 में जब भ्रष्टाचार के आरोप नवाज शरीफ पर लगे थे, सेना ने ही एक तरह से उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया था। हालात ऐसे बन गए थे कि उन्हें अपने ही मुल्क को छोड़कर भागना पड़ा। लेकिन उसके बाद से इमरान की सत्ता में आने से हालात और ज्यादा बिगड़ गए, पाकिस्तान में महंगाई ने सारे रिकॉर्ड तोड़े, खजाना खाली हो गया और दूसरे कई आर्थिक झटके भी लगातार लगते रहे। इसी वजह से अब सेना भी मान कर चल रही है कि तीन बार के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अपने अनुभव के दम पर इस स्थिति को संभाल सकते हैं।

वैसे खुद को प्रधानमंत्री की रेस में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बिलावल भुट्टो जरदारी भी देख रहे हैं। उनकी तरफ से भी लगातार प्रचार किया जा रहा है। वे समान रूप से इमरान और नवाज शरीफ पर हमले कर रहे हैं, लेकिन फिर भी जमीन पर उनके पक्ष में वैसा माहौल नहीं बन रहा।

जानकारी के लिए बता दें पाकिस्तान का जो निचला सदन है, उसके सदस्यों का चयन आम चुनाव के जरिए होता है। इस चुनाव में कल 342 सीटे हैं, यहां भी 272 पर तो सीधे चुनाव होता है, लेकिन जो बची 70 सीटे हैं, उसके लिए प्रक्रिया कुछ अलग है। उन 70 में से भी 60 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहती हैं। जबकि 10 सीटें धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लिए रखी जाती हैं। पाकिस्तान के चुनाव में एक अलग बात ये रहती है कि यहां पर जिस पार्टी के पास सबसे ज्यादा सीटें होती हैं, उसी के सबसे ज्यादा सदस्य भी नामित किए जाते हैं। चुनावी भाषा इसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व नियम कहते हैं।