पाकिस्तान में चुनाव नतीजें धीरे-धीरे ही सही आ रहे हैं। अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है, कौन जीत रहा है, किसकी सरकार बनने जा रही है, इन सभी सवालों पर सस्पेंस ही चल रहा है। पाकिस्तान के चुनाव में ऐसा माहौल दिखना, यूं देरी होना आम बात है। लेकिन अगर कोई चुनाव किसी देश के ही दो टुकड़े करवा दे, तो इसे दुर्लभ कहा जाता है, ऐसा जो कम ही देखने को मिलता हो।

पाकिस्तान में सबसे पहले लोकतांत्रिक चुनाव 1970 में हुए थे। आजाद तो ये देश भी 1947 में हो गया था, लेकिन लोकतंत्र की दस्तक पूरे 23 साल बाद हुई थी। लेकिन इसे पाकिस्तान की किस्मत बोली जाए या फिर उसके बुरे कर्म, उसके पहले ही लोकतांत्रिक चुनाव ने उसके मुल्क दो हिस्सों में बांटने का काम कर दिया था। ऐसा बांटा कि बांग्लादेश के रूप में नए देश का जन्म हो गया।

उस पहले चुनाव के दो मुख्य किरदार थे- एक का नाम था जुल्फिकार अली भुट्टो और दूसरे किरदार थे शेख मुजीबुर्रहमान। उस समय पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटा हुआ था, एक को कहते थे पश्चिमी पाकिस्तान, वहीं दूसरा हिस्सा था पूर्वी पाकिस्तान। अब पूर्वी पाकिस्तान के नेता थे शेख मुजीबुर्रहमान और उनकी पार्टी का नाम था आवामी लीग। वहीं पश्चिमी पाकिस्तान में पीपीपी की सियासत चलती थी जिसके नेता जुल्फिकार अली भुट्टो थे।

पाकिस्तान में तब जैसे हालात थे, पश्चिमी भाग, पूर्वी हिस्से की बिल्कुल भी इज्जत नहीं करता था, वहां के नागरिकों को बरारबी की नजर से नहीं देखा जाता था। ऐसे में मुद्दे स्पष्ट थे, पूर्वी पाकिस्तान में एक आंदोलन की लहर थी, न्याय के लिए हुंकार भरी जारी थी। दूसरी तरफ अति विश्वास और सेना के समर्थन के साथ बैठे थे जुल्फिकार अली भुट्टो। वे मानकर चल रहे थे कि 1970 के चुनाव में उनकी पार्टी को ही पूर्ण बहुमत मिलेगा।

पाकिस्तान का जो पश्चिमी हिस्सा था, वहां से कुल 138 सीटें निकलती थीं, वहीं पूर्वी पाक में 162 सीटें होती थीं। उस चुनाव का सबसे हैरान करने वाला पहलू ये था कि शेख मुजीबुर्रहमान ने तो अपने उम्मीदवारों को दोनों पश्चिम और पूर्वी पाकिस्तान में उतारा था। लेकिन जुल्फिकार की पार्टी ने सिर्फ और सिर्फ पश्चिमी पाकिस्तान में अपने उम्मीदवार उतारे और पूर्वी हिस्से को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। ये बताने के लिए काफी था कि भेदभाव किस स्तर पर चल रहा था।

अब चुनावी नतीजे आए, आवामी लीग की आंधी चल पड़ी। जो किसी ने नहीं सोचा, पाकिस्तान के पहले चुनाव में हो गया। शेख मुजीबुर्रहमान नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान की 162 में से 160 सीटें जीत ली गईं। जनादेश साफ था, सत्ता की चाबी हाथ में आनी ही चाहिए थी। लेकिन नहीं, जनता के उस जनादेश का भी कत्ल किया गया और देखने को मिला पूर्वी पाकिस्तान में सबसे बड़ा खूनी खेल।

ऐसा खूनी खेल जिसमें 3 लाख से भी ज्यादा पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। करोड़ों लोग विस्थापित हो गए, उस हालात को देख तब की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी उसे नरसंहार का नाम दिया था। बाद में भारतीय सेना के शौर्य ने ही पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बनाने में मदद की और 1971 की जंग में पाक सेना को मुंह की खानी पड़ी। यानी कि देश का पहला चुनाव ही पाकिस्ताव को दो हिस्सों में बांटने वाला साबित हुआ था।