नेपाली सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री के पी ओली को जबरदस्त झटका दिया है। अदालत ने के पी शर्मा ओली के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें उन्होंने प्रतिनिधि सभा को भंग करने का आदेश दिया था। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने दो दिनों के अंदर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के लिए कहा है।
नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने बीते 22 मई को प्रधानमंत्री के पी ओली की सिफारिश पर संसद भंग कर नवंबर में मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी। प्रमुख विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने प्रधानमंत्री पद का दावा करते हुए कहा था कि उनके पास 149 सांसदों का समर्थन है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि के पी ओली को संसद भंग करने का कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने के पी ओली के आदेश को रद्द करते हुए सात दिन के अंदर प्रतिनिधि सभा बुलाने के लिए कहा है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दो दिनों के अंदर नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के लिए कहा है क्योंकि उनके पास 149 सांसदों का समर्थन है।
69 वर्षीय प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली संसद में विश्वास मत हारने के बाद से अल्पसंख्यक सरकार चला रहे थे। उन्होंने राजनीतिक संकट के बीच चार जून और दस जून को मंत्रिमंडल विस्तार कर 17 मंत्रियों को शामिल किया था। तीन राज्य मंत्री भी नियुक्त किए गए थे। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने बाद में प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली मंत्रिमंडल के 20 मंत्रियों की नियुक्ति रद्द कर दी थी।
बता दें कि के पी शर्मा ओली अपने अजीबोगरीब बयानों की वजह से भी पिछले दिनों मीडिया की सुर्खियां बने रहे। ओली ने योग और अयोध्या को लेकर बयान दिया था। के पी शर्मा ओली ने योग को लेकर कहा था कि योग की उत्पत्ति नेपाल में हुई थी। उन्होंने कहा कि जब दुनिया में योग की शुरुआत हुई थी तब भारत उस समय एक उपमहाद्वीप जैसा था। इसके अलावा उन्होंने अयोध्या को नकली बताते हुए कहा था कि असली जानकारी के साथ छेड़छाड़ किया गया है और भगवान राम का जन्म नेपाल में हुआ है।