भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील ने संयुक्त राष्ट्र सुधार की अपनी मुहिम तेज करते हुए शनिवार को अपने आप को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का जायज उम्मीदवार बताया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कार्य को एक निश्चित समयसीमा के भीतर तुरंत पूरा करने पर जोर दिया।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्य बनाए जाने की मजबूत पैरवी को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि संयुक्त राष्ट्र में तय समयसीमा के भीतर सुधार करके सुरक्षा परिषद में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्रों, वैश्विक अर्थव्यवस्था के बड़े इंजनों और सभी बड़े महाद्वीपों की आवाजों को शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे इस विश्व संस्था की विश्वसनीयता और औचित्य बढ़ेगा।

समूह चार की बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि इस दिशा में दस्तावेज आधारित वार्ता की शुरुआत अहम कदम है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 70वें अधिवेशन में इसे तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाया जाए। उन्होंने कहा कि जब संयुक्त राष्ट्र का जन्म हुआ था, उससे अब हम बुनियादी रूप से भिन्न विश्व में रह रहे हैं जिसमें जटिल और अपरिभाषित चुनौतियों का सामना किया जा रहा है जिनमें जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद प्रमुख है।

प्रधानमंत्री ने सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के बड़े दावेदारों जापान, जर्मनी, ब्राजील और भारत की सदस्यता वाले जी-चार की बैठक की अध्यक्षता करते हुए यह आह्वान किया और कहा, ‘हमारे संस्थान खासकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद उस शताब्दी की सोच को प्रतिबिंबित करते हैं जिसे हम पीछे छोड़ चुके हैं, न कि उस शताब्दी की जिसमें हम रह रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार का विषय दशकों से वैश्विक विचार का केंद्र रहा है लेकिन दुर्भाग्यवश बिना किसी प्रगति के। चार देशों का हमारा समूह 2004 में साथ आया जो वैश्विक शांति और समृद्धि, बहुलवाद में हमारी आस्था और विश्व की उम्मीदों के अनुरूप हमारी वैश्विक जिम्मेदारियों को पूरा करने की हमारी इच्छा की साझी प्रतिबद्धता से बंधा हुआ है’।

बैठक के बाद साझे बयान में समूह-4 के नेताओं ने सुरक्षा परिषद को अधिक प्रतिनिधित्व वाली, जायज और प्रभावकारी बनाने पर जोर देते हुए कहा कि हाल के सालों में फैल रहे वैश्विक संघर्षों और संकटों को देखते हुए ऐसा किए जाने की पहले से अधिक जरूरत है। बयान में इस बात पर जोर दिया गया कि सुरक्षा परिषद में सुधार के बारे में संयुक्त राष्ट्र में चल रही प्रक्रिया को तय समय-सीमा के भीतर पूरा किया जाना चाहिए। नेताओं ने इस बात पर जोर दिया, ‘जी-4 के देश विस्तारित और सुधार के बाद बनने वाली परिषद में स्थायी सदस्यता के जायज उम्मीदवार हैं और साथ ही इस उम्मीदवारी के लिए एक-दूसरे का समर्थन किया’।

जी-4 ने इस बात पर चिंता जताई कि 2005 में हुए वैश्विक सम्मेलन के बाद से कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है जबकि उसमें सभी राष्ट्राध्यक्षों और सरकारों ने सर्वसम्मति से संयुक्त राष्ट्र में सुधार लाने के आवश्यक तत्त्व के रूप में सुरक्षा परिषद में जल्द सुधार का समर्थन किया था। ग्यारह साल पहले बने इस समूह के नेताओं ने अपने देशों को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाये जाने की मुहिम को मिलकर आगे बढ़ाते हुए महासभा के 70वें अधिवेशन में इस बारे में ठोस नतीजों को पाने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना करने की प्रतिबद्धता जताई।

उनका मानना है कि इन जायज सुधारों को प्राप्त करके 21वीं सदी की अंतरराष्ट्रीय समुदाय की वास्तविकताओं के अनुरूप नतीजे पाए जा सकते हैं क्योंकि अब कहीं अधिक सदस्यों के पास अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के संबंध में बड़ी जिम्मेदारी लेने की क्षमता और इच्छाशक्ति है।

इन चार देशों ने प्रण किया कि वे सभी अन्य सदस्य देशों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ‘जल्द और अर्थपूर्ण सुधार’ हासिल करने के प्रयासों को तेज करेंगे। साझा बयान में कहा गया है कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी और अस्थायी दोनों श्रेणियों में अफ्रीका के प्रतिनिधित्व का समर्थन करते हैं। साथ ही इन्होंने विस्तारित और सुधार के बाद बनने वाली सुरक्षा परिषद में छोटे और मध्यम देशों जिनमें छोटे द्वीप देश शामिल हैं, को उचित प्रतिनिधित्व देने की भी हिमायत की।

जी-4 के बयान में इस बात की पुष्टि की गई कि इन देशों ने संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के उद्देश्यों और सिद्धांतों को पूरा करने की दिशा में योगदान जारी रखने का संकल्प व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘सुरक्षा परिषद में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्रों, वैश्विक अर्थव्यवस्था के बड़े इंजनों और सभी बड़े महाद्वीपों की आवाजों को शामिल किया जाना चाहिए’। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने ट्वीट किया कि जी4 ने गति पाई है और जापान, जर्मनी ब्राजील और भारत के नेता संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की जरूरत पर ध्यान केंद्रित कर पा रहे हैं।

बैठक में ब्राजील के राष्ट्रपति दिल्मा रूसेफ, जर्मनी की चांसलर एंगिला मर्केल और जापान के प्रधानमंत्री शिजो एबे ने भी अपने विचार रखे। जनसांख्यिकी, शहरीकरण और पलायन जैसी आधुनिक युग की चुनौतियों की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘सुरक्षा परिषद में नियत समसीमा के भीतर सुधार तुुरंत किए जाने वाला महत्वपूर्ण कार्य है। जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद नई चिंताएं हैं। साइबर और अंतरिक्ष अवसरों और चुनौतियों के पूर्णत: नए क्षेत्र हैं’।

जी-4 एक ऐसा समूह है जो संयुक्त रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को व्यापक बनाने और खुद को इसका सदस्य बनाये जाने के मामले को आगे बढ़ा रहा है। मोदी ने कहा, ‘जब संयुक्त राष्ट्र का जन्म हुआ था, हम बुनियादी रूप से उससे भिन्न विश्व में रह रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की संख्या चार गुना बढ़ गई है। शांति और सुरक्षा के प्रति खतरे और पेचीदा, अप्रत्याशित और अपरिभाषित हो गए हैं। हम डिजिटल युग में रह रहे हैं। विकास के नए इंजनों और अधिक व्यापक रूप से फैली आर्थिक शक्तियों और संपत्ति की बढ़ती खाई के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था बदल गई है’। उन्होंने कहा, ‘कई मायनों में हमारा जीवन वैश्विक हो गया है लेकिन हमारी पहचानों को लेकर फाल्टलाइन (गड़बड़ी) भी बढ़ रही है’।

संयुक्त राष्ट्र में सुधार को लेकर दस्तावेज आधारित वार्ता शुरू करने के संयुक्त राष्ट्र महासभा के हाल के फैसले का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा, ‘दशकों बाद अंतत: हमने कुछ गति देखी। महासभा के 69वें सत्र में एक अहम कदम आगे बढ़ा। यह केवल पहला कदम है, हमें 70वें सत्र के दौरान इसे तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाना चाहिए’।

जर्मनी की चांसलर एंगिला मर्केल ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जी-4 कोई ‘विशिष्ट समूह’ नहीं है और यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार को तय करने के लिए अन्य लोगों को साथ लेकर चलने में विश्वास करता है। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे ने इस बैठक को ‘सुनहरा अवसर’ करार देते हुए कहा कि परिवर्तन के लिए जबर्दस्त गति मिली है और बड़े देशों की आवाजों को सुना जाना चाहिए। ब्राजील की रूसेफ ने भी विश्व संस्था में तुरंत सुधार की जरूरत को रेखांकित किया।

छोड़ो कल की बातें…

* हमारे संस्थान खासकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद उस शताब्दी की सोच को प्रतिबिंबित करते हैं जिसे हम पीछे छोड़ चुके हैं, न कि उस शताब्दी की जिसमें हम रह रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार का विषय दशकों से वैश्विक विचार का केंद्र रहा है लेकिन दुर्भाग्यवश बिना किसी प्रगति के।

* चार देशों का हमारा समूह 2004 में साथ आया जो वैश्विक शांति और समृद्धि, बहुलवाद में हमारी आस्था और विश्व की उम्मीदों के अनुरूप हमारी वैश्विक जिम्मेदारियों को पूरा करने की हमारी इच्छा की साझी प्रतिबद्धता से बंधा हुआ है।

* सुरक्षा परिषद में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्रों, वैश्विक अर्थव्यवस्था के बड़े इंजनों और सभी बड़े महाद्वीपों की आवाजों को शामिल किया जाना चाहिए। परिषद में नियत समसीमा के भीतर सुधार तुरंत किए जाने वाला अहम कार्य है। जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद नई चिंताएं हैं। साइबर और अंतरिक्ष अवसरों और चुनौतियों के पूर्णत: नए क्षेत्र हैं।
– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी