नासा अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर यात्रियों द्वारा अपने साथ लाए गए और वहीं छोड़ दिए गए सूक्ष्म जीवाणुओं का विश्लेषण करने की योजना बना रहा है ताकि भविष्य में अंतरिक्ष यान में अनुसंधान के दौरान सूक्ष्म जीवाणुओं के नियंत्रण के उपायों को समझा जा सके। पृथ्वी पर रह रहे लोगोंं के लिए लाभकारी अनुसंधान करने और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी की मंगल ग्रह की यात्रा के लिए 200 से अधिक लोग अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन :आईएसएस: की यात्रा कर चुके हैं।इन यात्रियों के साथ आए और आईएसएस में ही रह गए सूक्ष्म जीवाणु अब नासा तथा गैर लाभकारी अल्फ्रेड पी स्लोन फाउंडेशन के समन्वित अनुसंधान का विषय हैं।

मनुष्य जहां भी जाता है, अपने साथ सूक्ष्म जीवाणुओं को ले जाता है। इनमें से कुछ जीवाणु उसकी आंतों सहित शरीर के अंदर होते हैं तो कुछ शरीर से बाहर त्वचा पर और कपड़ों में होते हैं। जब ये जीवाणु आईएसएस की तरह मानव निर्मित वातावरण में जाते हैं तो वे अपना खुद का एक पारिस्थितिकी तंत्र बना लेते हैं जिसे ‘‘माइक्रोबियम आॅफ बिल्ट एनवायरनमेंट’’ कहा जाता है। अब नासा अंतरिक्ष केंद्र के अंदर इन जीवाणुओं का विश्लेषण करने के लिए अनुसंधानकर्ताओं से प्रस्ताव मंगा रहा है ताकि पता चल सके कि ये जीवाणु अंतरिक्ष में कैसे रह पाते हैं।

इसके लिए अनुसंधानकर्ताओं को एक दशक या अधिक समय से अंतरिक्ष स्टेशन से एकत्र किए गए और ह्यूस्टन स्थित नासा के जॉन्सन स्पेस सेंटर में रखे गए जीवाणुओं का अध्ययन करना होगा। नासा में स्पेस बायोलॉजी प्रोग्राम के वैज्ञानिक डेविड टोमको ने बताया कि इस अध्ययन एवं विश्लेषण से यह समझा जा सकेगा कि भविष्य में इस अंतरिक्ष यान में जीवाणुओं के वातावरण को नियंत्रित कैसे किया जा सकेगा। नासा के लिए यह अनुसंधान महत्वपूर्ण होगा क्योंकि अंतरिक्ष एजेंसी लंबी अवधि तक आईएसएस में रहने के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को तैयार कर रही है।