Secularism in Bangladesh Constitution: बांग्लादेश में दो वामपंथी राजनीतिक दलों ने देश के संविधान की प्रस्तावना से सेक्युलरिज्म (धर्मनिरपेक्षता) और समाजवाद को हटाने को लेकर आए प्रस्तावों की कड़ी आलोचना की है। आने वाले दिनों में बांग्लादेश में लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को लेकर बड़ी बहस होने जा रही है।

क्या है यह पूरा मामला?

मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने संविधान सुधार आयोग बनाया था। बता दें कि अगस्त, 2024 में प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के गिरने के बाद मुहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश की सत्ता संभाली थी।

मुहम्मद यूनुस को सौंपी गई रिपोर्ट में इस बात की सिफारिश की गई है कि समानता, मानव सम्मान, सामाजिक न्याय और बहुलवाद को संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया जाना चाहिए तथा राष्ट्रवाद, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को हटा दिया जाना चाहिए।

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बांग्लादेश के बड़े राजनीतिक दल- बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के साथ ही गणोसंहति आंदोलन और जातीय नागरिक समिति ने इस प्रस्ताव को लेकर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

हसीना सरकार पर राजनीतिक इस्तेमाल का आरोप

शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग की सरकार पर आरोप लगता है कि उसने इन संवैधानिक सिद्धांतों (राष्ट्रवाद, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता) का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया। इस वजह से इस मुल्क की इस्लामिक जमात जिसके साथ हसीना की सरकार सख्ती से पेश आई, वह अवामी लीग की सरकार से नाराज रही।

धर्मनिरपेक्षता को लेकर चल रही बहस

बांग्लादेश के बनने के बाद से ही वहां पर धर्मनिरपेक्षता पर बहस चल रही है। शेख हसीना के पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के लिए एक धर्मनिरपेक्ष, उदार और लोकतांत्रिक भविष्य चाहते थे। शेख मुजीबुर रहमान ने पाकिस्तान के खिलाफ देश की आजादी के आंदोलन का नेतृत्व किया था। हालांकि उस वक्त बांग्लादेश में कई लोग पाकिस्तान के साथ संबंध तोड़ने के खिलाफ थे।

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जून, 2024 में जब शेख हसीना सत्ता में थीं तब बांग्लादेश के प्रमुख अखबार ‘द डेली स्टार’ के लिए ढाका की प्राइवेट नॉर्थ साउथ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर नफीज अहमद ने एक लेख लिखा था। इस लेख में उन्होंने बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता को लेकर बात रखी थी।

नफीज अहमद ने लिखा था, “बांग्लादेश के संविधान की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि इसमें धर्मनिरपेक्षता (अनुच्छेद 12) को बनाए रखने की बात कही गई है, जबकि जबकि इस्लाम को राज्य का धर्म (अनुच्छेद 2ए के मुताबिक) घोषित किया गया है।”

नफीज अहमद ने लिखा था, “धर्मनिरपेक्षता का वादा मूल संविधान में था। राज्य धर्म को बाद में एक संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था। संविधान से धर्मनिरपेक्षता को हटा दिया गया था, लेकिन बाद में एक संशोधन कर इसे फिर से जोड़ दिया गया। मौजूदा वक्त में बांग्लादेश के संविधान में धर्मनिरपेक्षता और राज्य धर्म दोनों ही हैं।”

यह मुद्दा बांग्लादेश की शीर्ष अदालत में भी उठ चुका है। 2016 में बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट की हाई कोर्ट डिवीजन ने कहा था कि राज्य धर्म का होना “संविधान में दी गई धर्मनिरपेक्षता की धारणा का उल्लंघन नहीं करता।”

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