संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों में कई हृदय विदारक दृश्य देखने को मिल रहे हैं, जहां कोरोना वायरस से मरने वाले प्रवासी मजदूरों को अंतिम विदाई देनेवाला कोई सगा-संबंधी या कोई मित्र भी नहीं है। ऐसा ही एक दृश्य तब देखने को जब अपने घर और वतन से दूर एक प्रवासी भारतीय मजदूर की यहां कोविड-19 महामारी से मौत हो गई। उसका शव अंत्येष्टि स्थल के बाहर एक एंबुलेंस में इस इंतजार में रखा था कि कहीं कोई उसका मित्र आ जाए और उसे अंतिम विदाई दे सके। लेकिन लगभग एक घंटे तक इंतजार करने के बावजूद कोई नहीं पहुंचा और फिर रक्षात्मक सूट पहने कर्मचारियों को मृतक का अंतिम संस्कार करना पड़ा।
संयुक्त अरब अमीरात और अन्य संपन्न खाड़ी देशों में लाखों विदेशी नौकरी करते हैं। ये लोग इन देशों के अस्पतालों और बैंकों, निर्माण क्षेत्र और कारखानों की रीढ़ हैं। लेकिन कोरोना वायरस महामारी ने खाड़ी देशों में रहने वाले इन लोगों के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है। इस महामारी से मौत का मतलब है कि शव घर नहीं ले जाया जा सकता, उसका दाह संस्कार या उसे दफनाने की अंतिम क्रिया उसी देश में करनी पड़ रही है जहां संबंधित व्यक्ति की मौत हो रही है।
दक्षिणी दुबई स्थित हिन्दू शवदाह गृह के प्रबंधक ईश्वर कुमार ने कहा, ‘‘पूरा विश्व बदल रहा है। शव के साथ अब कोई नहीं आता, कोई उसे छूता तक नहीं है, कोई उसे अंतिम विदाई तक देने के लिए नहीं आता।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कोरोना वायरस की महामारी से पहले किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए लगभग 200-250 लोग आते थे और पुष्प चढ़ाकर श्रद्धांजलि अर्पित करते थे। अब ऐसा नहीं है, शव के साथ कोई नहीं आता।’’
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार खाड़ी देशों में कोरोना वायरस से अब तक हुईं 166 मौतों और संक्रमण के 26,600 दर्ज मामलों में से अधिकतर भारतीय, पाकिस्तानी, नेपाली, बांग्लादेशी और फिलीपीनी जैसे विदेशी लोगों से जुड़े मामले हैं।
शवदाह गृह के एक और प्रबंधक सुरेश गालानी ने कहा कि ज्यादातर प्रवासी मजदूरों के परिवार यहां नहीं रहते हैं। कई बार उनके सहकर्मी आते हैं। महामारी के चलते वाणिज्य उड़ानों के निलंबित होने के बावजूद क्षेत्र की सरकारें यहां अर्थव्यवस्था चरमरा जाने से बेरोजगार हुए विदेशी कर्मचारियों को उनके देश वापस भेजने के लिए उड़ानों की व्यवस्था करने पर काम कर रही हैं।