बॉन, जर्मनी। जर्मनी में एक बड़े सियासी सस्पेंस से पर्दा उठ गया है। काफी समय से अटकलें लग रही थीं कि जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल का उत्तराधिकार कौन होगा। अब फैसला हो गया है। जर्मन शहर हैम्बर्ग में सत्ताधारी सीडीयू पार्टी के सम्मेलन में आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर को पार्टी प्रमुख चुन लिया गया है। पिछले 18 साल से मैर्केल इस पद पर कायम थीं। फिलहाल तो उन्होंने चांसलर पद पर बने रहने का फैसला किया है, लेकिन वह समय अब दूर नहीं जब वह इस जिम्मेदारी से भी मुक्त हो जाएंगी। 2021 में आम चुनावों से पहले कभी भी मुनासिब समय देखकर मैर्केल सरकार का नेतृत्व क्रांप कारेनबावर को सौंप सकती हैं।

जर्मनी में परंपरा भी रही है कि सत्ताधारी पार्टी का प्रमुख ही सरकार का प्रमुख भी होता है। इसीलिए कह सकते हैं कि हैम्बर्ग में सीडीयू प्रतिनिधियों ने सिर्फ पार्टी प्रमुख नहीं बल्कि एक तरह से नई चांसलर को चुना है। इसीलिए दुनिया भर की नजरें इस बात पर टिकी थीं कि मैर्केल का उत्तराधिकार कौन होगा। इस दिलचस्पी की वजह अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मैर्केल का कद है। हाल के सालों में कई बड़े आर्थिक और राजनीतिक संकट आए लेकिन मैर्केल ने मजबूती से उनका सामना किया। इसीलिए दुनिया की सबसे ताकतवर महिलाओं की फोर्ब्स पत्रिका की लिस्ट में कई सालों से मैर्केल शीर्ष पर विराजमान हैं।

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मैर्केल का सितारा भले ही चमक रहा था, लेकिन घरेलू स्तर पर वह लगातार घिर रही थीं और पार्टी में बदलाव की मांगें तेज हो रही थीं। अलबत्ता फैसला मैर्केल को ही करना था और वह घड़ी दो महीने पहले आई जब जर्मन राज्य हेस्से के विधानसभा चुनावों में सीडीयू पार्टी को भारी झटका लगा। मैर्केल ने फैसला किया कि अब वह पार्टी प्रमुख की रेस में शामिल नहीं होंगी। जानकारों की राय में यह फैसला मैर्केल के सियासी करियर के अंत की औपचारिक शुरुआत थी।

मैर्केल की जगह लेने के लिए जो तीन दावेदार मैदान में उतरे, उनमें क्रांप कारेनबावर जर्मन चांसलर की पसंदीदा उम्मीदवार थीं। पार्टी में अब तक महासचिव का पद संभाल रहीं क्रांप कारेनबावर मैर्केल की बेहद करीबी रही हैं। इतनी करीबी कि आलोचक उन्हें ‘मिनी मैर्केल’ कहते हैं। ऐसे में, पार्टी प्रमुख बनने के बाद क्रांप कारेनबावर की सबसे बड़ी चुनौती इसी छवि को तोड़ना ही है। इस बात का उन्हें अहसास भी है। इसीलिए पार्टी सम्मेलन में अध्यक्ष पद पर मतदान से पहले क्रांप कारेनबावर ने कहा कि उनकी अपनी अलग शख्सियत है, इसलिए उन्हें ‘मिनी मैर्केल’ ना समझा जाए।

क्रांप कारेनबावर के पार्टी प्रमुख बनने पर सबसे ज्यादा राहत की सांस चांसलर मैर्केल ने ही ली होगी, क्योंकि बाकी दो दावेदारों फ्रीडरिष मैर्त्स और येन्स श्पान में से अगर कोई प्रमुख बनता तो मैर्केल के लिए सरकार चलाना मुश्किल हो जाता। बरसों बाद राजनीति में लौटे मैर्त्स तो मैर्केल से पुराना हिसाब चुकाने को उतावले थे, क्योंकि 18 साल पहले मैर्केल के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें राजनीति से किनारा करना पड़ा था। वही येन्स श्पान मैर्केल की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं, लेकिन उनकी शरणार्थी नीति के सबसे बड़े आलोचकों में शुमार किए जाए हैं। क्रांप कारेनबावर के अध्यक्ष बनने के बाद मैर्केल को इस बात का इत्मिनान हो सकता है कि जितने भी दिन वह चांसलर रहेंगी, तब तक पार्टी नेतृत्व की तरफ से उनकी राह में रोड़े नहीं अटकाए जाएंगे।

लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे पार्टी का भला होगा? पार्टी के खिसकते जनाधार के लिए आलोचक मैर्केल की नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं। अगर क्रांप कारेनबावर के पार्टी प्रमुख बनने के बाद सब कुछ वैसा ही चलता रहेगा जैसा मैर्केल चाहती हैं तो नेतृत्व में बदलाव का कोई अर्थ नहीं रहेगा। क्रांप कारेनबावर को अपना रास्ता अलग बनाना होगा। जरूरी नहीं कि इसके लिए टकराव का ही रास्ता चुना जाए। लेकिन क्रांप कारेनबावर को कुछ ऐसा करना होगा जिससे मैर्केल की नीतियों से नाराज हो कर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी की तरफ गए वोटरों को वापस सीडीयू की तरफ लाया जा सके। पार्टी के खिसकते जनाधार को बचाना उनकी सबसे बड़ी चुनौती है।

पार्टी सम्मेलन में क्रांप कारेनबावर ने साफ किया कि वह सबको साथ लेकर चलेंगी। यह जरूरी भी है क्योंकि आज पार्टी धड़ों में बंट गई है। दूरियों को पाटने के लिए क्रांप कारेनबावर ने विरोधी खेमे के पॉल सीमियाक को नया पार्टी महासचिव नामित किया। अब तक पार्टी की युवा शाखा युंगे यूनियन के प्रमुख रहे सीमियाक को सिर्फ 62.8 प्रतिनिधियों का समर्थन मिला। यह हालत तब थी जब उनके सामने कोई दूसरा उम्मीदवार नहीं था। इस साल की शुरुआत में जब मैर्केल ने क्रांप कारेनबावर को पार्टी महासचिव के तौर पर नामित किया तो उन्हें रिकॉर्ड 98.9 प्रतिशत वोट मिले। 62.8 और 98.9 प्रतिशत के बीच अंतर बताता है कि पार्टी को एकजुट करने के लिए क्रांप कारेनबावर को कितनी मेहनत करनी होगी।

56 साल की क्रांप कारेनबावर इससे पहले दक्षिणी जर्मनी के एक छोटे राज्य जारलैंड की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। साधारण पृष्ठभूमि से उठकर पर वह जर्मनी की सबसे बड़ी पार्टी की प्रमुख बनी हैं। उनके पिता एक स्कूल टीचर थे और मां एक गृहणी। क्रांप कारेनबावर के तीन बेटे हैं। उनके पति हेल्मुट कारेनबावर ने माइनिंग इंजीनियर की अपनी नौकरी इसलिए छोड़ दी ताकि वह घर पर रहकर बच्चों का ध्यान रख पाएं और क्रांप कारेनबावर घर की चिंता किए बिना अपना सियासी करियर आगे बढ़ा पाएं। क्रांप कारेनबावर 1981 में 19 साल की थी और तभी एक छात्र के तौर पर सीडीयू में शामिल हुईं। अब इस पार्टी की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। वही इसकी दिशा और दशा तय करेंगी।

मैर्केल अपने उत्तराधिकारी के तौर पर एक उदार चेहरा चाहती थी और इसीलिए उन्होंने क्रांप कारेनबावर को अपना समर्थन दिया। वह न सिर्फ मैर्केल की शरणाार्थी नीति की समर्थक हैं, बल्कि महिला अधिकारों पर उनके उदारवादी को रुख की हिमायत करती हैं। वह मैर्केल की विरासत पर चलते लिए सुधारों की समर्थक हैं। लेकिन मैर्केल से इतनी सारी सहमतियां ही उन्हें आलोचकों की नजर में ‘मिनी मैर्केल’ बनाती हैं। इस छवि को वह कैसे तोड़ती हैं, यह देखने वाली बात होगी।