रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की चीन के शीर्ष सैन्य अधिकारियों के साथ सोमवार (18 अप्रैल) को होने वाली बातचीत में उठने वाले मुद्दों में घुसपैठ की बार बार होने वाली घटनाएं, सीमा गश्तों के बीच तनाव कम करने के एक समझौते का क्रियान्वयन और चीन-भारत रणनीतिक चिंताएं शामिल हो सकती हैं। शंघाई से एक विशेष विमान से यहां पहुंचे पर्रिकर चीन के रक्षा मंत्री जनरल चांग वानक्वान, सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएमसी) के उपाध्यक्ष जनरल फान चांगलांग एवं अन्य से बातचीत करेंगे। सीएमसी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का सर्वोच्च कमान निकाय है जिसके प्रमुख चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग हैं।

पर्रिकर चीन के प्रधानमंत्री ली क्विंग से भी मुलाकात करेंगे। बाद में वह चीन के हाल में एकीकृत हुए पश्चिमी कमान सैन्य मुख्यालय का भी दौरा करेंगे जिसके अधिकार क्षेत्र में भारत से लगी सीमा आती है। पर्रिकर के साथ रक्षा मंत्रालय के अलावा, सेना और नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी भी आये हैं। भारतीय अधिकारियों ने कहा कि बातचीत में व्यापक द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा होने की उम्मीद है जिसमें हाल के समय में काफी सुधार आया है। विशेष तौर पर लद्दाख क्षेत्र में चीनी सैनिकों के आक्रामक गश्त को लेकर भारत की चिंताएं काफी अधिक बनी हुई हैं।

चीन किसी भी घुसपैठ से इनकार करता है और इस बात पर जोर देता है कि उसके सैनिक 3488 किलोमीटर लंबी विवादास्पद सीमा से लगे अपने क्षेत्रों में गश्त करते हैं। दोनों देश 2013 के सीमा रक्षा सहयोग समझौते (बीडीसीए) के आगे के तौर तरीके पर चर्चा कर सकते हैं जिसमें दोनों पक्षों के आक्रामक गश्त से उत्पन्न होने वाले तनाव के समाधान के लिए विभिन्न उपाय रेखांकित किये गए हैं।

भारत और चीन सैनिकों द्वारा आक्रामक गश्त से निपटने के लिए मशविरा और समन्वय के लिए कार्यकारी तंत्र की वार्षिक वार्ता भी आयोजित करते हैं। इससे चीन के प्रधानमंत्री ली क्विंग की 2013 और उसके एक वर्ष बाद चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग भारत यात्राओं के दौरान चीन की घुसपैठ को लेकर तनाव को कम करने में मदद मिली थी। दोनों पक्षों ने अच्छे संबंधों के वास्ते जमीन पर सैनिकों एवं अधिकारियों के बीच वार्ता के लिए कई सीमा बिंदु खोले।

हाल में भारत से आयी खबरों में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अग्रिम मोर्चों पर चीन के सैनिकों की मौजूदगी की बात कही गई थी जिसे पीएलए ने ‘‘आधारहीन’’ कहकर खारिज कर दिया था। दोनों सेनाओं की एकदूसरे के अन्य देशों के साथ होने वाले सैन्य गठबंधनों और उनकी सेनाओं के विकास को लेकर रणनीतिक चिंताएं हैं।

पर्रिकर की यात्रा से पहले चीन ने संकेत दिया था कि वह सैन्य अड्डों को अमेरिका के साजोसामान के लिए खोलने के भारत के हाल के निर्णय और विमान प्रौद्योगिकी साझा करने संबंधी समझौता करने के प्रयासों को उठा सकता है।

चीन ‘एशिया पाइवट’ के तहत भारी अमेरिकी विस्तार से जूझ रहा है जो कि चीन की सेना के जवाब में हो रहा है, विशेष तौर पर दक्षिण चीन सागर में। दक्षिण चीन सागर भारत और अमेरिका के बीच किसी नजदीकी सैन्य सहयोग के प्रति संवेदनशील है। चीन इसके साथ ही मालाबार नौसेना अभ्यास में अमेरिका के साथ जापान को शामिल करने को लेकर भी चिंतित है।