अटलांटा शहर में एशियाई महिलाओं पर हुए घातक हमले के खिलाफ न सिर्फ अमेरिका में तीखा विरोध हो रहा है बल्कि दुनियाभर में इस हिंसा के प्रति चिंता और नाराजगी का भाव है। इस हिंसा को नस्लीय भेदभाव से आगे एक ऐसे खतरे के तौर पर भी देखा जा रहा है जिसमें महिलाओं के प्रति लैंगिक दुराग्रह बढ़ा है। गैर-सरकारी संस्था ‘नेशनल एशियन पैसिफिक अमेरिकन वीमंस फोरम’ की निदेशक सुंग यियोन चोईमोरो को लगता है एशियाई महिलाएं अपनी नस्ल और लिंग दोनों के कारण भेदभाव का शिकार हो रही हैं। उनके हिंसा का शिकार होने की आशंका अब और बढ़ गई है।

कुछ समाजशास्त्रियों को यह भी लगता है कि एशियाई महिलाओं को लेकर फैली पूर्वग्रहों की जड़ें अमेरिका के इतिहास में हैं। अमेरिकी समाज में यह पूर्वग्रह रहा है कि एशियाई महिलाएं दब्बू पर सेक्स में अति सक्रिय और उत्तेजक होती हैं। नस्लीय मामलों की विशेषज्ञ और स्वयंसेवी संस्था ‘एशियन अमेरिकन फेमिनिस्ट कलेक्टिव’ की सह-प्रमुख रशेल कुओ के मुताबिक अमेरिकी इतिहास में मौजूद रहे कई कानूनी और राजनीतिक उपायों के कारण भी ऐसी धारणाएं वहां आज भी कायम हैं।

कुओ के मुताबिक बाद के दौर में भी अमेरिकी सरकार ने जिस तरह के वर्चस्ववादी फैसले लिए उससे वहां यह दुराग्रह और बढ़ा। खासतौर पर विदेश की धरती पर युद्ध के दौरान अमेरिकी सैनिकों ने जिस तरह महिलाओं से बलात्कार किए, उनका यौन उत्पीड़न किया, वे अमेरिकी समाज के कुत्सित मानस को ही रेखांकित करते हैं।

उधर, ब्रिटेन की सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी में मुस्लिम विरोधी भावनाएं अब भी समस्या बनी हुई हैं, यह दावा मंगलवार को संपन्न एक स्वतंत्र जांच में किया गया। प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने करीब दो साल पहले यह पता लगाने के लिए जांच शुरू कराई थी कि उनकी अगुवाई वाली पार्टी में इस्लाम के प्रति घृणा के आरोपों समेत भेदभाव से निपटने के लिए कोई प्रक्रिया है या नहीं।

भारतीय मूल के शिक्षाविद और पूर्व मानवाधिकार आयुक्त प्रोफेसर स्वर्ण सिंह के नेतृत्व में हुई जांच में कहा गया कि पार्टी नेतृत्व सभी तरह के भेदभाव के प्रति ‘कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति’ का दावा करता है लेकिन भेदभावपूर्ण और संवेदनहीन घटनाएं होती रहती हैं।