इजरायल में नौकरी करने को लेकर कई भारतीय सपने देखते हैं। कहने को यह देश युद्ध से घिरा हुआ है, कई महीनों से हमले के हमले हो रहे हैं, लेकिन फिर भी ज्यादा पैसे की चाह में कई भारतीय अपनी जान जोखिम में डाल भी इजरायल जाना पसंद करते हैं। अभी तक तो ऐसे केस सामने आए थे जहां पर कई बार नौकरी का झासा देकर लोगों को फंसाया जा रहा था, लेकिन अब एक अलग तरह की कहानी भी सामने आई है।

इजरायल में क्यों नहीं टिक पा रहे भारतीय?

असल में एक नहीं कई ऐसे केस सामने आए हैं जहां पर भारतीय इजरायल तो पहुंच गए, लेकिन जिस नौकरी के लिए उन्हें चुना गया, उसका स्किल ही उनके पास नहीं था। ऐसे मामले सबसे ज्यादा कंस्ट्रक्शन सेक्टर में देखने को मिले हैं क्योंकि वहां पर अभी इजरायल को कई मजदूरों की जरूरत है। अब क्योंकि फिलिसतीन के मजदूरों को तो इजरायल ने हमास हमले के बाद ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था, ऐसे में उसे कई दूसरे मजदूरों और वर्करों की जरूरत पड़ी। अब उम्मीद की गई कि उस कमी को भारत से आने वाले मजदूर पूरा कर देंगे।

इजरायल का कंस्ट्रक्शन सेक्टर भारत से नाराज?

लेकिन वो उम्मीद ही अब टूटती दिखाई दे रही है क्योंकि जो भारतीय इस समय इजरायल पहुंचे हैं, उनको लेकर जैसा फीडबैक सामने आ रहा है, उससे भारत की साख भी दांव पर लगी है। असल में ऐसा दावा हुआ है कि इजरायल पहुंचे कई मजदूर जरूरी स्किल सेट ही नहीं रखते हैं। वो सिर्फ नौकरी के लालच में इजरायल पहुंच गए हैं। मान लीजिए अगर उन मजदूरों को किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करना है तो उन्हें वहां हथोड़ा चलाना तक नहीं आता है। कई ऐसे हैं जो भारत में तो सब्जी-फल बेचते थे, लेकिन ज्यादा पैसों के चक्कर में इजरायल पहुंच गए। अब क्योंकि स्किल मैच हो नहीं रहे, इजरायल की कंस्ट्रक्शन कंपनियों में काम प्रभावित हो रहा है, इसका असर भारत पर भी पड़ा है।

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जहां के लिए हुआ सलेक्शन, वही नहीं कर रहे काम भारतीय

बड़ी बात यह है कि इस एक मुद्दे की वजह से इजरायल, भारत के साथ अपने रिश्ते खराब नहीं कर सकता है। इसी वजह से जिन लोगों को पहले कंस्ट्रकशन कंपनी में काम करने के लिए लाया गया था, कई को नॉन कंस्ट्रक्शन सेक्टर में काम देने की कोशिश हो रही है, कई को सफाई कर्मचारी के रूप में रख लिया गया है। यानी कि इजरायल अपनी तरफ से इतनी कोशिश जरूर कर रहा है कि जो भारतीय नौकरी की आस लेकर इजरायल आए हैं, उन्हें वो खाली हाथ ना रखे। लेकिन इससे दिक्कत यह हो रही है कि अनस्किल्ड और नॉन कंस्ट्रक्शन सेक्टर में कर्मचारियों की कमी होने लगी है। इसके ऊपर क्योंकि ज्यादातर लोगों को इंडस्ट्रियल सेक्टर में ही काम करना है, इस वजह से कई दूसरे डिपार्टमेंट में भी दबाव पड़ना शुरू हो चुका है।

भारतीयों की इजरायल जाने वाली हायरिंग की डिटेल

अब यह तो समस्या की बात हुई, लेकिन आखिर ऐसी स्थिति क्यों बनी, यह समझना भी जरूरी है। असल में इजरायल के दूतावास से जब कुछ आंकड़े मांगे गए तो पता चला कि भारत से दो तरीकों से लोगो वर्करों की हायरिंग हुई है। एक हायरिंग तो सरकार के जरिए हैं जिसकी जिम्मेदारी खुद नेशनल स्किल डेवलपमेंट कोरपोरेशन ने ले रखी है। दूसरा तरीका बिजनेस टू बिजनेस वाला है जिसमें निजी एजेंसियों द्वारा लोगों का टेस्ट लेकर इजरायल भेजने का काम हो रहा है।

अनुभव ना होना सबसे बड़ी चूक, फंसे भारतीय

अब पता यह चला है कि सरकार के जरिए जिन लोगों को चुना गया, जिन्हें इजरायल भेजा गया, उनका काम सबसे ज्यादा खराब निकला, ज्यादातर ऐसे वर्कर सामने आए जिनके पास उस क्षेत्र का अनुभव तक नहीं था। इस बारे में इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए Union Association of Foreign Employment Agencies के चेयरमेन Eldad Nitzen बताते हैं कि G2G रूट के जरिए काफी युवा भारतीय इजरायल आए थे, कई की उम्र तो सिर्फ 20 साल थी, इन लोगों ने कभी किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम तक नहीं किया था। या तो कोई भारत में खेती कर रहा था फिर बाल काटने का काम। कई तो ऐसे भी थे जिन्हें हथौड़ा पकड़ना तक नहीं आता था।

इजरायल ने कैसे की भारतीयों की मदद?

अपनी बात को आगे रखते हुए उन्होंने यहां तक बताया कि इजरायल के कई बड़े बिल्डरों ने बाद में ऐसे वर्करों को कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने से ही रोक दिया था। लेकिन फिर इजरायल की सरकार ने इन G2G वर्करों को अनस्किल्ड नौकरियों में काम करने का मौका दे दिया, कई फैक्ट्री, सफाई, लोडिंग-अनलोडिंग जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। इस समय भारतीय मजदूरों की छवि इसलिए खराब हो गई है क्योंकि इजरायल के बिल्डर भी नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर यह भारतीय B2B यानी कि किसी निजी कंपनी के जरिए नौकरी के लिए आए हैं या फिर सरकारी तरीके से।

भारत और इजरायल दोनों की गलती कैसे?

अब इस बारे में इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए NSDC (जो सरकारी रूट के जरिए लोगों का चयन कर रहा था) ने भी काफी कुछ बताया है। उनके मुताबिक इजरायल में कई क्षेत्रों में वेकेंसी खाी थी 3000 स्लॉट तो आयरन बेंडिंग और कंस्ट्रक्शन में खाली थे, प्लास्टरिंग में 2000 लोगों की जरूरत थी। अब यहां पर हायरिंग करने के लिए हरियाणा, यूपी, तेलंगाना में प्रोफेशनल तरीके से टेस्ट किए गए थे। कुल 4825 लोगों को उस टेस्ट के आधार पर इजरायल भी भेजा गया था। 1276 वर्करों का एक और बैच जाने को तैयार खड़ा है।

अब जानकार मानते हैं कि यह जो स्किल मिसमैच वाली गलती हुई है, इसके लिए दोनों भारत और इजरायल जिम्मेदार हैं। उनका मानना है कि शायद कैंडिडेट्स का बैकग्राउंड ही ठीक तरह से चेक नहीं किया गया, दोनों भारत और इजरायल ने जरूरत के हिसाब से चयन नहीं किया। वैसे ऐसा नहीं है कि सरकारी रूट के जरिए गए लोगों को मिला निगेटिव फीडबैक सिर्फ उन तक सीमित रहने वाला है। इसका सीधा निजी एजेंसियों के जरिए होने वाली हायरिंग पर भी पड़ा है।

इस बारे में बात करते हुए मुंबई की Protech Engineering कंपनी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर विशाल मेहरा बताते हैं कि G2G वर्करों के ब्लंडर के बाद से कॉन्ट्रैक्टर्स और क्लाइंट्स ने कई वर्करों का वीजा कैंसिल कर दिया, इसमें 2000 तो भारतीय कर्मचारी ही शामिल थे।

 Ritu Sarin की रिपोर्ट