संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 73वें सत्र में भारत के खिलाफ पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद शाह कुरैशी के बयान को परमानेंट मिशन ऑफ इंडिया की पहली सचिव ईनम गंभीर ने खारिज कर दिया। महासभा में ईनम गंभीर ने अपने राइट टू रिप्लाई का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान की खूब धज्जियां उड़ाई। उन्होंने UNGA की सामान्य बहस में कहा, ‘पाकिस्तान, भारत के खिलाफ निराधार आरोप लगा रहा है। जबकि नई दिल्ली ने इस्लामाबाद में आतंकवादी गतिविधियों की उजागर किया है।’ ईनम ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री के उस बयान का हवाला देते हुए कहा, जिसमें उन्होंने साल 2014 में पेशावर में हुए बम धमाकों में भारत का हाथ बताया था, चार साल पहले पेशावर स्कूल में भयानक आतंकी हमले से संबंधित सबसे अपमानजनक आरोपों से जुड़ा आरोप भारत पर लगाया। जबकि पेशावर में मारे गए बच्चों की याद में भारतीय संसद की दोनों सदनों ने एकजुटता व्यक्त की थी। इसके अलावा पूरे भारत के स्कूलों में दो मिनट का मौन रखा गया था। उन्होंने कहा कि भारत पर लगाए गए आरोप ‘आतंक के राक्षस’ को दूर रखने के लिए पाकिस्तान की कोशिशों की हस्सा हैं। पाकिस्तान खुद इसका इस्तेमाल अपने पड़ोसियों को अस्थिर बनाने के लिए करता है। जम्मू-कश्मीर पर बात करते हुए गंभीर ने कहा कि यह भारत का आंतरिक हिस्सा है।
वहीं बता दें कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर वैश्विक संधि को स्वीकार करने की दिशा में संयुक्त राष्ट्र में प्रगति नहीं होने की भारत ने तीखी आलोचना की और शनिवार को कहा कि ऐसी निष्क्रियताओं के कारण ही उन आतंकवादियों पर डाक टिकटें जारी कर उन्हें महिमामंडित किया जा रहा है जिनके सिर पर इनाम घोषित है। भारत ने पिछले हफ्ते विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनके पाकिस्तानी समकक्ष शाह महमूद कुरैशी की संयुक्त राष्ट्र में मुलाकात को रद्द कर दिया था। मारे गए कश्मीरी आतंकवादी बुरहान वानी का महिमामंडन करते हुए पाकिस्तान द्वारा उस पर डाक टिकट जारी किए जाने को मुलाकात रद्द करने के कारणों में से एक बताया गया था।
सुषमा ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले पांच साल से, हर साल भारत इस मंच से कहता रहा है कि आतंकवादियों और उनके संरक्षकों पर काबू के लिए सूचियां पर्याप्त नहीं हैं। उन्होंने इस क्रम में अंतरराष्ट्रीय कानून की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत ने 1996 में संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक संधि (सीसीआईटी) के संबंध में एक मसौदा दस्तावेज का प्रस्ताव दिया था। लेकिन वह मसौदा आज तक मसौदा ही बना हुआ है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य एक साझा भाषा पर सहमत नहीं हो सकते। (एजेंसी इनपुट सहित)