साल 2025 में जिस तरह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस की गतिविधियां बढ़ी हैं, उससे स्पष्ट हो रहा है कि फ्रांस यहां अपनी पैठ मजबूत करना चाहता है। चीन और अमेरिका के बाद यूरोपीय देश भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सामरिक समीकरणों में महत्त्वपूर्ण भूमिका चाहते हैं। इस काम में फ्रांस को भारत की मदद चाहिए।
वर्ष 2025 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस की उपस्थिति की शुरुआत धमाकेदार रही। रफाल लड़ाकू विमानों ने फ्रांसीसी विमानवाहक पोत चार्ल्स डी गाल से उड़ान भरते हुए हिंद महासागर में प्रवेश किया। इसे ‘मिशन क्लेमेंसो’ नाम दिया गया, जो 20वीं सदी के शुरुआती फ्रांसीसी राजनयिक जार्जेस क्लेमेंसो के नाम पर आधारित है। क्लेमेंसो प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान एशिया आए थे और जीत हासिल की थी। हिंद-प्रशांत में करियर स्ट्राइक ग्रुप (सीएसजी) की तैनाती फ्रांस की बड़ी उपलब्धि है। इसमें चार्ल्स डी गाल और उसके 22 रफाल के अलावा, चार फ्रिगेट, एक आपूर्ति जहाज, एक परमाणु हमलावर पनडुब्बी और कुछ समुद्री गश्ती विमान भी शामिल थे।
साठ के दशक के बाद पहली बार, सीएसजी ने प्रशांत महासागर में जाकर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय अभ्यासों के माध्यम से साझेदारों और सहयोगियों के साथ समन्वय बढ़ाने का प्रयास किया। हिंद महासागर में ला पेरूज अभ्यास के दौरान फ्रांसीसी नौसेना और भारत सहित आठ क्षेत्रीय साझेदारों ने संचार के समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने का प्रशिक्षण लिया। अरब सागर में, सीएसजी ने पहली बार भारतीय नौसेना के साथ आइएनएस विक्रांत के साथ द्विपक्षीय अभ्यास ‘वरुण’ के 23वें संस्करण में हिस्सा लिया। वायु, सतह और पानी के नीचे ये अब तक का सबसे जटिल अभ्यास था।
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मैक्रों ने चीन को दिया संदेश
कूटनीतिक प्रभाव सबसे अच्छी तरह तब देखने को मिला, जब सीएसजी के बंदरगाह पर आने के कुछ ही हफ्तों बाद फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों दक्षिण पूर्व एशिया पहुंचे। सिंगापुर के शांगरी-ला संवाद में उनका भाषण नौसैनिक कूटनीति की पहलों का नतीजा था। मैक्रों द्वारा यूरोप और एशिया के बीच गठबंधन का आह्वान गुटनिरपेक्षता पर जोर माना गया। मैक्रों ने चीन को संदेश भी दिया। फ्रांस हमेशा से ताइवान और फिलीपींस में चीन की आक्रामक कार्रवाइयों का आलोचक रहा है, लेकिन साथ ही अमेरिकी दखल का भी विरोध करता है।
अगले साल भारत आएंगे फ्रांस के राष्ट्रपति
दूसरी ओर, भारतीय नौसेना, महासागर मिशन के माध्यम से, नियमित रूप से इस क्षेत्र में तैनात रहती है और फ्रांस की सेना के साथ मिलकर मजबूत सुरक्षा प्रदाता का काम करती है। भारत और फ्रांस की इस नौसैनिक क्षमता को दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच मौजूदा ‘फ्रांज’ पहल के समान एक बेहतर तंत्र माना गया। सवाल है कि, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस और क्या-क्या कर सकता है? फ्रांस समुद्री सुरक्षा, ब्लू इकोनामी और क्षेत्रीय स्थिरता के क्षेत्र में भारत के साथ बेहतर ढंग से सहयोग कर सकता है, क्योंकि दोनों देश 2026 में बहुराष्ट्रीय निकायों की अध्यक्षता साझा कर रहे हैं, जो हिंद महासागर क्षेत्र के लिए अहम हैं। चर्चा के लिए सबसे बेहतर समय अगले साल होगा। मैंक्रों जनवरी 2026 में भारत आने वाले हैं। तब भारत द्वारा आयोजित एआई एक्शन समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सह-अध्यक्ष के रूप में फ्रांस के राष्ट्रपति भाग लेंगे।
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