पाकिस्तान और सऊदी अरब ने बीते बुधवार को एक महत्वपूर्ण आपसी समझौते पर हस्ताक्षर किए। दरअसल दोनों देशों के बीच 1960 से चली आ रही रक्षा और सुरक्षा साझेदारी अब औपचारिक हो गई, क्योंकि दोनों देशों के बीच रक्षा समझौता हुआ है। ये समझौता पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के हस्ताक्षर के बाद हुआ। हालांकि भारत के साथ सऊदी अरब के संबंध भी अच्छे हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान दोनों देशों से सऊदी अरब के रिश्ते कैसे हैं।
पाकिस्तान-सऊदी अरब संबंध
1960 के दशक के अंत में यमन में मिस्र के युद्ध को लेकर चिंताओं के बीच पाकिस्तानी सैनिक सऊदी अरब गए। विद्रोहियों द्वारा 1979 में मक्का की ग्रैंड मस्जिद पर कब्जा करने के बाद जब पाकिस्तान के विशेष सुरक्षा बलों ने सऊदी सैनिकों की मदद करते हुए सैन्य सहयोग किया जिससे ये संबंध और गहरा हो गया।
1982 में दोनों पक्षों ने एक द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग समझौते के माध्यम से सुरक्षा संबंधों को संस्थागत रूप दिया। जिससे सऊदी अरब में पाकिस्तानी प्रशिक्षण, सलाहकार सहायता और तैनाती संभव हुआ। सऊदी अरब पाकिस्तान निर्मित हथियारों का एक प्रमुख खरीदार था और पाकिस्तानी सेना ने सऊदी वायु सेना को प्रशिक्षित किया था।
सऊदी अरब के पैसे से अमेरिकी हथियार खरीदेगा पाकिस्तान
इस वर्ष फरवरी में सऊदी की राजधानी रियाद में संयुक्त सैन्य सहयोग समिति की बैठक में प्रशिक्षण और आदान-प्रदान को बढ़ाने का संकल्प लिया गया। जिसके बाद बीते बुधवार को हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर दशकों में पाकिस्तान की सबसे महत्वपूर्ण औपचारिक रक्षा प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे रणनीतिक और आर्थिक दोनों तरह के लाभ होंगे। यह वित्तीय संकट के दौर में सऊदी अरब से महत्वपूर्ण निवेश और धन प्राप्त करता है, साथ ही इस्लामाबाद के अखिल-इस्लामी सुरक्षा प्रदाता होने के दावे को भी पुष्ट करता है।
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वहीं इस समझौते को लेकर अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘सबसे अधिक संभावना है कि पाकिस्तान अब सऊदी अरब के पैसे से अमेरिकी हथियार खरीद सकेगा, जिसे ट्रम्प प्रशासन बेचने को तैयार है।’
सऊदी अरब के लिए यह ईरान, यमन के हौथी मिलिशिया और इजरायल द्वारा उत्पन्न क्षेत्रीय अशांति के खतरों के विरुद्ध सुरक्षा को मजबूत करता है।
सऊदी अरब के भारत के साथ संबंध
सऊदी अरब लंबे समय से भारत के साथ राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक संबंधों में निवेश करता रहा है। भारत सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार देश है, जबकि सऊदी अरब भारत का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वित्त वर्ष 2023-24 में, द्विपक्षीय व्यापार 42.98 अरब अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें भारतीय निर्यात 11.56 अरब अमेरिकी डॉलर और आयात 31.42 अरब अमेरिकी डॉलर रहा।
जनवरी 2006 में शाह अब्दुल्ला की भारत यात्रा एक ऐतिहासिक क्षण था जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए। इसके बाद 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सऊदी अरब यात्रा के दौरान रियाद घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए, जिसने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक पहुंचाया।
पीएम मोदी को मिल चुका है सऊदी का सबसे बड़ा सम्मान
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अप्रैल 2016 में रियाद गए थे, तो किंग सलमान ने उन्हें राज्य के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘किंग अब्दुलअजीज सैश’ से सम्मानित किया था। तब से दोनों पक्षों की ओर से कई उच्च स्तरीय यात्राएं हो चुकी हैं।
दरअसल, 22 अप्रैल को पहलगाम हमले के दौरान प्रधानमंत्री मोदी सऊदी अरब में थे और उनके मेजबानों ने इस घटना की तुरंत निंदा की थी। बाद में सऊदी अरब के विदेश राज्य मंत्री आदिल अल-जुबैर ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अचानक दोनों देशों का दौरा किया।
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पहले के सालों की बात करतें तो सऊदी अरब ने जम्मू -कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की ज़्यादा कड़ी आलोचना नहीं की है। इसके अलावा उसने फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले की निंदा की थी, लेकिन बालाकोट हमलों की निंदा नहीं की थी। सऊदी अरब ने भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों के बीच संघर्ष के समय, दोनों देशों से बातचीत करने की कोशिश की है।