Pakistan News: 15 अगस्त 2021 को जब तालिबान ने काबुल की सत्ता पर कब्जा किया तो पाकिस्तान में जश्न का माहौल था। पाकिस्तानी टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में तालिबान के गुणगान और पाकिस्तान की रणनीति का गुणगान हो रहा था। हालांकि आज चार साल बाद हालात पूरी तरह से उलट मालूम होते हैं। हाल में ही भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री और तालिबानी हुकूमत के एक्टिंग विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी के बीच काबुल में मीटिंग हुई, इस मीटिंग भारत और अफगानिस्तान के पड़ोसी देश पाकिस्तान में किस तरह देखा जा रहा है, उसे लेकर द इंडियन एक्सप्रेस में छपे आकाश जोशी के Opinion एक नजर डालते हैं…
अफगानिस्तान, जिसे कभी पाकिस्तानी सेना और ISI भारत के खिलाफ अपनी “रणनीतिक गहराई” के साधन के रूप में देखते थे, वह अब रावलपिंडी के गले की फांस बन गया है। पाकिस्तान ने लंबे समय तक काबुल में एक प्रॉक्सी शासन की आशा में तालिबान को समर्थन दिया। हाल ही में पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान बॉर्डर के अंदर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के इन्फ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाने के लिए किए गए हमले बताते हैं कि दोनों देशों के बीच हालात किस कदर खराब हो गए हैं। इन हमलों में महिलाओं और बच्चों सहित कई अफगान नागरिक मारे गए। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, काबुल में तालिबान शासन द्वारा इन हमलों का जवाब देने के लिए पलटवार किया गया।
डॉन के संपादकीय में क्या लिखा है?
11 जनवरी को डॉन अपने संपादकीय में लिखता है, “भारतीयों ने तालिबान के प्रति सतर्कतापूर्वक प्रतिक्रिया व्यक्त की है, लेकिन फिर भी मामला आगे बढ़ रहा है। तालिबान के चीन और रूस के साथ भी महत्वपूर्ण संबंध हैं।”
संपादकीय में आगे कहा गया है कि इन घटनाक्रमों से पाकिस्तान को चिंतित होना चाहिए और पॉलिसी मेकर्स को अपनी अफगान रणनीति पर फिर से विचार करना चाहिए। तथ्य यह है कि अफगान तालिबान के साथ तालमेल भले ही बेहद मुश्किल हो, लेकिन पाकिस्तान अपने वेस्ट में एक शत्रुता रखने वाला पड़ोसी को बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह संपादकीय कंधार के नेताओं सहित तालिबान के साथ व्यावहारिक जुड़ाव का सुझाव देता है, जहां से “वास्तविक शक्ति प्रवाहित होती है।”
डॉन ने अपने संपादकीय में आगे कहा कि तालिबान को टीटीपी बनाए रखने देना चाहिए, बशर्ते वे पाकिस्तान को कोई नुकसान न पहुंचाएं। इसी संपादकीय में सुझाव दिया गया है कि चूंकि अन्य देश, जिनमें अनफ्रेंडली सरकारें भी शामिल हैं, अफगान तालिबान के साथ कूटनीतिक संबंध बनाने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए पाकिस्तान को अपनी रणनीति का फिर से मूल्यांकन और रिएडजस्ट करना होगा।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून में क्या छपा?
एक्सप्रेस ट्रिब्यून में साजिया अनवर चीमा लिखती है, “हम अशरफ गनी को नई दिल्ली की कठपुतली होने का दोषी मानते थे… जबकि अफगानिस्तान को ‘भाई और दोस्त’ कहा जाता था।” वह तर्क देती हैं कि अब स्थिति उलट गई है और अब वाशिंगटन व नई दिल्ली काबुल में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। वो आगे कहती हैं कि अगर यह वास्तव में हो रहा है तो पाकिस्तान को जरूर एक्ट करना चाहिए।
साजिया अनवर चीमा लिखती हैं कि पाकिस्तान के तथाकथित नॉर्दर्न अलांयस (जो गैर-पश्तून अफ़गानों से बना है) के साथ पहली बार फ्रेंडली कॉन्टेक्ट की रिपोर्ट इस दिशा में एक कदम हो सकती है। पाकिस्तान को पंजशीर घाटी के पतन और इसे अफ़गान तालिबान को सौंपने के लिए भी दोषी ठहराया गया है।
नज्म उस साकिब क्या कहते हैं?
सीनियर पाकिस्तानी राजनयिक नज्म उस साकिब द नेशन में प्रकाशित एक लेख में लिखते हैं: आतंकवाद की हालिया लहर – ख्वाराज (टीटीपी) और उसके जैसे अन्य संगठनों के प्रति अफगानिस्तान का अड़ियल रुख; वाशिंगटन द्वारा अपने पूर्व ‘रणनीतिक’ साझेदार की आर्थिक और सुरक्षा चिंताओं की पूरी तरह उपेक्षा; क्षेत्र की अस्थिर स्थिति, विशेष रूप से मध्य पूर्व में चल रहे संकट के मद्देनजर; और अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ देने की वेस्ट की ओवर ऑल पॉलिसी – पाकिस्तान के लिए एक गंभीर तस्वीर पेश करती है।”
उनका तर्क, संक्षेप में, यह है कि पाकिस्तान में अब फॉरेन पॉलिसी का अभाव है और देश की आर्थिक परेशानियां मामले को और भी बदतर बना रही हैं। दुर्भाग्य से, “आर्थिक संकट और चल रही राजनीतिक अनिश्चितता वर्तमान सरकार के पास बहुत सारे विकल्प नहीं छोड़ती। संकट प्रबंधन – संघर्ष समाधान के विपरीत – दिन का क्रम प्रतीत होता है।”
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