अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 को हुए हमले का मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन था। ओसामा को अमेरिका का कट्टर दुश्मन माना गया, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। कभी अमेरिका भी सोवियत संघ के खिलाफ उस जंग में शामिल था जिसका हिस्सा ओसामा बिन लादेन हुआ करता था। तो उनके बीच किस बात को लेकर मतभेद पैदा हुए। ओसामा ने अमेरिकियों के खिलाफ़ जिहाद की घोषणा क्यों की? और वह दुनिया का सबसे वांटेड शख्स कैसे बन गया?
अमेरिका और ओसामा : दोनों का दुश्मन एक
अफगानिस्तान पर 1979 में रेड आर्मी (सोवियत संघ) का हमला हुआ,सोवियत संघ ने अपने हज़ारों सैनिक काबुल भेजे और नियंत्रण हासिल कर लिया। ठीक इस ही दौर में एक दुबला-पतला और शांत स्वभाव का नौजवान पाकिस्तान पहुंचा, जिसका मकसद रेड आर्मी को खदेड़ना था। उसका नाम ओसामा बिन लादेन था।
ओसामा के पिता के पास मौजूद मोटी रकम से ओसामा ने जमीयत-ए-इस्लामी नाम की एक इस्लामिक पार्टी को डोनेशन दिया। यह पार्टी सोवियत संघ के खिलाफ जिहाद का समर्थन करने में मदद कर रही थी। अमेरिकी पत्रकार पीटर बर्गन ने अपनी किताब ‘द राइज एंड फॉल ऑफ ओसामा बिन लादेन’ में इस संबंध में काफी कुछ लिखा है।
इसके बाद ओसामा बिन लादेन जॉर्डन के फ़िलिस्तीनी विद्वान अब्दुल्ला यूसुफ़ अज़्ज़ाम के करीब आ गया। जिनसे वह पहली बार सऊदी अरब के जेद्दा में एक यूनिवर्सिटी में मिला था और उन्हें अपना शिक्षक और गुरु मानने लगा था।
जानकारी के मुताबिक ओसामा ने अफगानिस्तान में जिहाद कर रहे युवाओं को काफी मदद की और उन्हें हर तरह से सहयोग दिया। इतना ही नहीं, 1986 में ओसामा बिन लादेन ने खोस्त सुरंग परिसर के निर्माण में मदद की थी, जिसे CIA (अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी) की फंडिंग हासिल थी। जो मुजाहिदीन को हथियारों के साथ-साथ माली मदद भी कर रही थी।
कुछ विश्लेषकों के मुताबिक यह ओसामा बिन लादेन और अमेरिकी खुफिया एजेंसी-CIA के बीच एकमात्र संबंध नहीं था। बीबीसी द्वारा प्रकाशित 2004 की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि CIA ने न केवल बिन लादेन को धन मुहैया कराया बल्कि उसे सुरक्षा ट्रेनिंग भी दी थी।
इन दावों का बाद में रॉबिन कुक ने समर्थन किया। वह 1997 से 2001 तक ब्रिटेन के विदेश सचिव रहे थे। कुक ने द गार्जियन के लिए एक कॉलम में लिखा, “ओसामा बिन लादेन पश्चिमी सुरक्षा एजेंसियों की एक बड़ी गलती का नतीजा था। 80 के दशक में उसे CIA ने हथियार दिए और अफ़गानिस्तान पर रूसी कब्जे के खिलाफ़ जिहाद छेड़ने के लिए सउदी ने उसे पैसे दिए।”
हालांकि हर कोई आरोपों से सहमत नहीं था। पीटर बर्गन ने अपनी किताब में लिखा, “CIA का बिन लादेन या मुजाहिदीन लड़ाकों से कोई सीधा संबंध नहीं था। इसके बजाय अफगानिस्तान को दी जाने वाली सभी अमेरिकी सहायता पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस एजेंसी-ISI के जरिए से दी जाती थी।”
अमेरिका और ओसामा : कैसे बन गए एक दूसरे के कट्टर दुश्मन?
सोवियत संघ को अफ़गानिस्तान से बाहर निकालने में बिन लादेन की भूमिका ने उसे देश में एक प्रमुख नेता बना दिया। लेकिन मुजाहिद्दीन के बढ़ते आंतरिक कलह के रहते वह जल्द ही सऊदी अरब लौट आया।
एक रिपोर्ट के मुताबिक अगली बार ओसामा बिन लादेन तब चर्चा में आया जब इराक ने अगस्त 1990 में कुवैत पर हमला किया। सेंटर ऑफ़ पब्लिक इंटीग्रिटी की रिपोर्ट के मुताबिक ओसामा ने सऊदी के शाही परिवार से अफ़गान युद्ध के लड़ाकों का इस्तेमाल करके इराक से लड़ने के लिए एक सेना गठित करने की पैरवी की। लेकिन इसके बजाय किंग फ़हद ने अमेरिकियों को आमंत्रित किया। यह बिन लादेन के लिए एक बहुत बड़ा झटका था। जैसे ही 540,000 अमेरिकी सैनिक आने लगे बिन लादेन ने शाही परिवार की खुलेआम आलोचना की और देश में गैर-मुस्लिमों के आने को लेकर उलेमाओं से फतवे दिलवाए।
सऊदी अरब के शासकों से नाराजगी इतनी ज़्यादा बढ़ गई कि ओसामा बिन लादेन 1992 में सूडान चला गया। यहां ओसामा का मकसद इस्लामी मूवमेंट में मदद करना था जिसका नेतृत्व सूडानी नेता हसन तुराबी कर रहे थे। इस बीच ओसामा ने कुवैत के शाही परिवार और अमेरिका दोनों की आलोचना की।
इस दौरान ओसामा बिन लादेन ने अपने कुछ समर्थकों को सोमालिया के सरदारों को ट्रेनिंग देने के लिए वहां भेजा। जिनकी लड़ाई अमेरिकी सैनिकों से जारी थी। CNN की एक रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 1993 में 18 अमेरिकी सैनिक अल-कायदा से ट्रेनिंग लिए आतंकवादियों द्वारा किए गए हमलों में मारे गए।
इस घटना ने ओसामा बिन लादेन के खिलाफ अमेरिका के विरोध को और बढ़ा दिया। ओसामा पहले से ही अमेरिकी अधिकारियों की जांच के दायरे में था। क्योंकि उन्हें शक था कि वह 1993 के शुरू में न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में बम विस्फोट की योजना बना रहा था।जिसमें छह लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हो गए थे। इस सबके बीच सऊदी अरब ने 1994 में ओसामा की नागरिकता रद्द कर दी और दो साल बाद सूडान ने उसे देश छोड़ने को कहा।
ओसामा बिन लादेन का इंटरव्यू
इन सब हालात के बीच 1996 में ओसामा बिन लादेन एक बार फिर अफगानिस्तान आया, जहां तालिबान ने उसे शरण दी। CNN की एक रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी मीडिया के साथ अपने पहले इंटरव्यू में ओसामा ने पत्रकार बर्गन से कहा कि अमेरिका अन्यायपूर्ण, अपराधी और अत्याचारी है।
ओसामा ने आगे कहा कि जो कोई भी अमेरिका और उसके अन्याय के खिलाफ जाता है उसे आतंकवादी कहा जाता है। वह हमारे देशों पर कब्जा करना चाहता है, हमारे संसाधनों को चुराना चाहता है। हम पर शासन करने के लिए एजेंट थोपना चाहता है।” इस ही इंटरव्यू में ओसामा बिन लादेन ने सोमालिया में अमेरिकी सैनिकों की हत्या की जिम्मेदारी भी ली।
ओसामा अब अमेरिका के लिए एक मोस्ट वांटेड नाम बन चुका था। द सेंटर ऑफ पब्लिक इंटीग्रिटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके बाद वह अगस्त 1998 में केन्या और तंजानिया में अमेरिकी दूतावासों पर बमबारी के बाद काफी सुर्खियों में आया। जिसमें 220 लोग मारे गए थे। इस प्रकार अमेरिका और बिन लादेन के बीच चूहे-बिल्ली का खेल शुरू हुआ।