भारत में कॉलेजियम सिस्टम को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच मतभेद चल रहे हैं। कई बार सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और कानून मंत्री एक दूसरे पर टिप्पणी भी कर चुके हैं। कई पूर्व न्यायाधीश मानते हैं कि भारत की कॉलेजियम प्रणाली जजों की नियुक्ति के लिए सबसे अच्छी प्रक्रिया है। वहीं हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में जजों की नियुक्ति कैसे होती है और वहां पर मानहानि को लेकर क्या कानून है, इसको समझते हैं। इसे जानने के लिए जनसत्ता. कॉम के संपादक विजय कुमार झा ने लाहौर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष इश्तियाक अहमद खान से विशेष बातचीत की।
पाकिस्तान में कैसे होती है जजों की नियुक्ति, जानिए
जजों की नियुक्ति को लेकर इश्तियाक अहमद खान ने कहा, “18वें अमेंडमेंट से पहले हमारे यहां हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस नामों की एक लिस्ट बनाकर पाकिस्तान के चीफ जस्टिस को भेजते थे। उसके बाद उस पर विचार किया जाता था और जजों की नियुक्ति होती थी। लेकिन 18वें अमेंडमेंट के बाद संविधान कें अंदर 175 A दिया गया और इसमें दो टियर दिए गए। एक ज्यूडिशियल कमीशन का टियर दिया गया और एक पालीमानी कमीशन दिया गया।
इश्तियाक अहमद खान ने कहा, “ज्यूडिशियल कमीशन के अंदर सुप्रीम कोर्ट के चार जज होते हैं और सीजेआई भी शामिल होते हैं। इसके बाद ज्यूडिशल कमिशन के अंदर जो भी नाम तय होते हैं, उस पर एक राय बनती है और फिर नाम फाइनल किया जाता है। इसके बाद इन नामों को पालीमानी कमेटी के पास भेजा जाता है।
संसदीय कमेटी में कानून मंत्री सहित सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्य होते हैं। यहां पर नाम पर चर्चा होती है और फिर इस नाम को राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है। जब राष्ट्रपति नाम को क्लियर करते हैं तो उसे नोटिफाई करने के लिए लॉ मिनिस्ट्री को भिजवा देते हैं और इस तरीके से हमारे यहां जजों की नियुक्ति होती है।”
सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए हमारे यहां कोई डायरेक्ट अपॉइंटमेंट अब नहीं होती है। हमारे यहां संविधान में दिया गया है कि जो भी शख्स 15 साल की प्रैक्टिस कर लेता है वह सुप्रीम कोर्ट में अप्वॉइंट हो सकता है। लेकिन हमारे यहां हाईकोर्ट से जज लिया जाता है और वह रोटेशन के आधार पर लिया जाता है। हालांकि जिसे भी जज बनाया जाएगा उनकी फाइल ज्यूडिशियल कमिशन के पास जाएगी और उसके बाद पार्लियामेंट्री कमेटी के पास फाइल जाएगी। फिर राष्ट्रपति नोटिफिकेशन भेजेंगे लॉ मिनिस्ट्री को और नियुक्ति होती है।
मानहानि पर क्या कहता है पाकिस्तान का कानून, जानें
हमारे यहां मानहानि के दो तरीके हमले होते हैं। एक होता है जैसे किसी ने किसी को कुछ कह दिया और फिर अगले ने आरोप लगा दिया कि उन्होंने मेरी मानहानि की है और मुझ पर झूठे आरोप लगाए हैं। ऐसे मामले को डिस्ट्रिक्ट जज देखते हैं। इसके बाद यहां से जो फैसला आता है, उसके बाद मामला हाई कोर्ट में भी जा सकता है। पाकिस्तान में मानहानि के ज्यादातर मामले राजनैतिक है। इसमें दो तरीके की सजा दी जाती है। एक क्रिमिनल ऑफेंस के तौर पर दी जाती है, दूसरा डैमेज के तौर पर दी जाती है। मानहानि के मामले में हमारे देश में अधिकतम 3 साल तक की सजा हो सकती है।