दुनिया भर में आजकल सियासत का मिजाज ज्वार भाटे जैसा होता जा रहा है। समंदर में जिस तेजी से लहरें उठती हैं, उसी तेजी से गिर भी जाती हैं। इसी तरह कई बार उम्मीदें भी जिस तेजी से बंधती हैं, उसी तेजी से टूटने लगती हैं। फिलहाल जिक्र फ्रांस का है जहां डेढ़ साल पहले जनता ने एक नौजवान नेता को बड़ी उम्मीदों के साथ देश की बागडोर सौंपी थी। अब वही जनता अपने राष्ट्रपति के खिलाफ उठ खड़ी हुई है। पीली जैकेट पहन कर सड़कों पर उतरे ये प्रदर्शनकारी खुद को येलो वेस्ट कहते हैं और दो महीने से सरकार की नाक में दम किए हुए हैं। राष्ट्रपति माक्रों के हाथ पैर फूले हुए हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है, करें तो क्या करें। प्रदर्शनकारी ना सरकार के वादों पर यकीन कर रहे हैं और ना ही बलप्रयोग से डर रहे हैं। हालात यह है कि अब प्रदर्शनकारियों का गुस्सा पत्रकारों पर भी फूटने लगा है। 1968 के बाद पहली बार फ्रांस में इतने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। सर्दी के इस मौसम में प्रदर्शनकारी ना तो पानी की बौछारों की परवाह कर रहे हैं और ना ही आंसू गैस के गोले उन्हें डिगा पा रहे हैं। जो फ्रांस दुनिया के भर के सैलानियों की पसंदीदा मंजिल रहा है, वह आजकल टकराव और विरोध प्रदर्शनों का अखाड़ा बन गया है।

फ्रांस में विरोध की यह चिंगारी बीते साल नवंबर में भड़की। हालांकि राष्ट्रपति माक्रों के खिलाफ गुस्सा काफी पहले ही सुलगना शुरू हो गया था। मई में पोस्ट की गई एक ऑनलाइन याचिका को कम पर कम से दस लाख लोगों का समर्थन मिला। लेकिन गुस्सा किस बात को लेकर है? ईंधन के बढ़ते दाम, लोगों पर पड़ता महंगाई का बोझ और कामकाजी और मध्य वर्ग पर बढ़ता टैक्स। प्रदर्शनकारी कहते हैं कि राष्ट्रपति माक्रों के सुधारों से सिर्फ अमीरों को फायदा हो रहा है जबकि मध्यम वर्ग और गरीब पिस रहे हैं। राष्ट्रपति माक्रों फ्यूल टैक्स में बढ़ोत्तरी को पहले ही वापस ले चुके हैं और कम आमदनी वाले लोगों को राहत देने के लिए उन्होंने 10 अरब यूरो के एक पैकेज का एलान किया है। फिर भी वह प्रदर्शनकारियों का भरोसा जीतने में नाकाम रहे हैं। एक ताजा सर्वे में हिस्सा लेने वाले 77 प्रतिशत लोगों का कहना है कि राजनेता अविश्वास, नाराजगी और बोरियत पैदा कर रहे हैं। माक्रों प्रदर्शनकारियों के सरोकारों पर ध्यान देने की बात तो करते हैं, लेकिन अपना पाला छोड़ने को भी तैयार नहीं है। इसकी झलक शुक्रवार को आए उनके एक बयान से मिलती है। माक्रों ने कहा, ‘हमारे देश में ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो कुछ हासिल तो करना चाहते हैं, लेकिन बिना कुछ किए ही।’ इसका जवाब स्ट्रासबुर्ग में हो रहे प्रदर्शन में शामिल एक 60 वर्षीय बढ़ई के इन शब्दों में मिलता है, ‘मैं एक हफ्ते में 60 घंटे काम करता हूं, फिर भी गुजारा नहीं हो पाता।’ बताया जाता है कि प्रदर्शनकारियों में ज्यादातर लोग ऐसे ही हालात से जूझ रहे हैं। प्रदर्शनकारी माक्रों पर घमंडी होने का इल्जाम लगाते हैं और पूरी व्यवस्था को बदलने का नारा बुलंद कर रहे हैं।

दुनिया के सियासी पटल पर हाल के सालों में जो चमत्कार हुए, उन्हीं में से एक था इमानुएल माक्रों का फ्रांस का राष्ट्रपति चुना जाना। मई 2017 में 39 साल से एक नौजवान नेता ने दशकों से स्थापित पार्टियों तो धक्का देकर सत्ता हासिल की। फ्रांस पर बारी बारी से राज करने वाली सोशलिस्ट और कंजरवेटिव पार्टियों से निराश होकर जनता से बड़ी उम्मीदों से माक्रों को सत्ता के शिखर पर बिठाया था। लेकिन जल्द ही उम्मीदें ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगीं और आज यह हालात हैं कि देश पिछले पचास सालों के सबसे बड़े विरोध प्रदर्शन का गवाह बन रहा है। अहम बात यह है कि इस विरोध आंदोलन का ना तो कोई नेता है और ना ही यह किसी राजनीतिक पार्टी या मजदूर यूनियन से जुड़ा है। इसकी तुलना आप दिल्ली में निर्भया कांड के बाद भारत की सड़कों पर उतरे लोगों से कर सकते हैं। फ्रांसीसी प्रदर्शनकारी सोशल मीडिया का सहारा लेकर आपस में संगठित हो रहे हैं और सरकार के लिए लगातार चुनौती बन रहे हैं।

डीजल पेट्रोल के दाम बढ़ाने के खिलाफ शुरू हुआ विरोध का सिलसिला अब सामाजिक न्याय के एक संघर्ष में तब्दील हो गया है और लोग ऐसे लोकतंत्र की मांग कर रहे हैं जिसमें जनता के पास ज्यादा अधिकार हों। इस विरोध आंदोलन के चलते ना सिर्फ राष्ट्रपति माक्रों के आर्थिक सुधार ठंडे बस्ते में चले गए हैं, बल्कि बतौर राष्ट्रपति उनकी साख को भी गहरा धक्का लगा है। ऐसे में, उन्होंने एक राष्ट्रीय बहस शुरू करने का एलान किया है, जिसके तहत प्रदर्शनकारियों की चिंताओं को सुना जाएगा और उन्हें दूर करने की कोशिश की जाएगी। राष्ट्रपति गांव और कस्बों के मेयरों से मिलेंगे। लेकिन माक्रों और उनकी नीतियों को लेकर जिस तरह का गुस्सा फिलहाल है, उसे देखते हुए फ्रांसीसी राष्ट्रपति की राह आसान नहीं है। उनका करिश्मा तो कब का खत्म हो चुका है। बस अब माक्रों के सामने चुनौती अपनी नाक बचाने की है।