पाकिस्तान में उर्दू का बाना पहनकर हिंदी ने भले ही अपनी पहचान बना रखी हो, पर अध्ययन-अध्यापन के मामले में वह पिछड़ी मानी जाती रही है। लेकिन पहली बार यहां एक छात्रा ने रवायती तालीम से अलग जाकर हिंदी में एमफिल डिग्री हासिल की है और मुल्क के दूसरे हिंदी प्रेमियों को भी राह दिखाई है।
सोमवार को पाकिस्तान के अखबारों ने यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित की है कि पाकिस्तान की तारीख में पहली बार एक विश्वविद्यालय ने हिंदी में एमफिल की डिग्री प्रदान की है। खबरों के मुताबिक, सेना की ओर से संचालित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ मॉडर्न लैंग्वेजेज (एनयूएमएल) यहां इस डिग्री को प्रदान करने वाला पाकिस्तान का पहला विश्वविद्यालय बन गया है।
एनयूएमएल की छात्रा शाहीन जफर हिंदी में एमफिल की डिग्री प्राप्त करने वाली किसी पाकिस्तानी विश्वविद्यालय की पहली छात्रा हैं। डॉन न्यूज की खबर के अनुसार ‘स्वतंत्रयोत्तर हिंदी उपन्यासों में नारी चित्रण (1947-2000)’ विषय पर यह विशेष शोध उन्होंने प्रोफेसर इफ्तिखार हुसैन की देखरेख में किया है और उच्च शिक्षा आयोग ने इसे अपनी मंजूरी दी थी।
विश्वविद्यालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान में हिंदी विशेषज्ञों की कमी होने के कारण भारत के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दो विशेषज्ञों ने जफर के शोध का मूल्यांकन किया।
बहरहाल पाकिस्तानी में किसी को हिंदी में एमफिल देने का यह पहला मामला भले हो, पर हिंदी फिल्मों, हिंदी गानों और हिंदी टीवी सीरियलों की आलमी शोहरत से पाकिस्तान भी अछूता नहीं है। यही वजह है कि घरों की बोलियों में भी हिंदी ने जगह बना ली है। खासतौर पर पाकिस्तान में बोली जाने वाली उर्दू में भी हिंदी बोली और मसलें रचती- बसती जा रही हैं। हालांकि उर्दू के कथित परंपरावादी कई अवसरों पर हिंदी शब्दों-लोकोक्तियों की घुसपैठ पर चिंता जता चुके हैं।
वैसे यहां के कुछ कलमकारों का मानना है कि लिपि की दीवार हटा ली जाए तो पाकिस्तान की उर्दू और नए रूप में शिनाख्त बना रही हिंदी में खास फर्क नहीं रह जाएगा। 1973 में पाकिस्तानी संविधान ने उर्दू को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे रखा है। इसके बावजूद वहां पंजाबी, सिंधी और दूसरी भाषाओं के हिमायती मुखालफत का झंडा उठाए रहते हैं। फिर भी मुल्क में उर्दू बोलचालकी जुबान के तौर पर हावी है, ठीक उसी तरह जैसे भारत में भाषाई आपत्तियों के बावजूद हिंदी प्रचारित और प्रसारित हो रही है।
हालांकि प्रख्यात भाषाविद् और लेखक तारिक हुसेन का मानना है कि पाकिस्तान में उर्दू को लेकर सरकार की स्पष्ट नीति नहीं है। हुकूमत ने उर्दू को राजकीय भाषा बना दिया है, पर अंग्रेजी और उर्दू की खाई ने समाज को बांट दिया है। सरकारी हुक्मरान अब भी अंग्रेजी के पैरोकार बने हुए हैं।
इस बीच नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि पाकिस्तान में हिंदी प्रेमियों की तादाद को देखते हुए आगामी विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए वहां सूचना भेज दी गई है। इस बार का विश्व हिंदी सम्मेलन दस सितंबर से भोपाल में होगा। इस सम्मेलन में पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित 27 देशों 2000 लोगों के आने की उम्मीद है।