वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) की बैठक में निगरानी सूची (ग्रे सूची) से बाहर होने के लिए परेशान पाकिस्तान इस मुद्दे पर समर्थन नहीं जुटा सका। वह अलग-थलग पड़ गया। उसे सिर्फ तुर्की का समर्थन मिला, जबकि 38 देशों ने पाकिस्तान को निगरानी सूची में बनाए रखने के मुद्दे पर एफएटीएफ के प्रस्ताव का समर्थन किया।

सिर्फ तुर्की ही ऐसा एक देश रहा, जिसने पाकिस्तान को निगरानी सूची से बाहर निकाले जाने की वकालत की। पेरिस में चली तीन दिन की बैठक शुक्रवार को खत्म हुई। इस बैठक में तुर्की, चीन और सऊदी अरब ने तकनीकी आधार पर पाकिस्तान को निगरानी सूची से निकाले जाने की वकालत की, लेकिन एफएटीएफ की प्लेनरी बैठक में सिर्फ तुर्की का ही समर्थन उसे मिल सका। लगभग सभी देशों ने बैठक में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान की निंदा की।

एफएटीएफ ने पाकिस्तान को जून 2018 में निगरानी सूची में डाला था और उसे धनशोधन और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने की 27 बिंदुओं की कार्ययोजना को वर्ष 2019 के अंत तक लागू करने को कहा था। कोविड महामारी की वजह से इस मियाद में वृद्धि कर दी गई। एफटीएफ की ताजा बैठक में पाकिस्तान द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा की गई, जिसमें पाया गया कि पाकिस्तान ने 27 में से सिर्फ 21 बिंदुओं पर काम किया है।

एफएटीएफ की बैठक में भारत ने पाकिस्तान की सच्चाई से दुनिया के सामने पर्दा उठाया और बताया कि उसने 27 में से सिर्फ 21 बिंदुओं पर काम किया है और अभी भी वहां आतंकियों को पनाह दी जा रही है। भारत ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र की सूची में शामिल जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया और दाऊद इब्राहीम जैसे आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा है।

भारत ने आरोप लगाया है कि पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की कई इकाइयों और लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा है कि एफएटीएफ के छह ऐसे अहम बिंदु हैं, जिन पर पाकिस्तान ने कोई काम नहीं किया है।