अफगानिस्तान और अमेरिका के बीच में बगराम एयरबेस को लेकर तनाव बढ़ चुका है। राष्ट्रपति ट्रंप हर कीमत पर इस बेस पर अमेरिका का कंट्रोल एक बार फिर चाहते हैं। तालिबान की सरकार तो साफ कर चुकी है कि वो एक इंच जमीन भी अपनी अमेरिका को नहीं देने वाली। इसी वजह से राष्ट्रपति ट्रंप को भी तल्ख तेवर अपनाने पड़े हैं, उन्होंने सोशल मीडिया पर धमकी तक दी है। इस बगराम एयरबेस को लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं। आखिर इस बेस का इतिहास क्या है, अमेरिका को इसकी क्या जरूरत है और तालिबान क्यों इसका विरोध कर रहा है।
यहां सरल शब्दों में सवाल-जवाब के अंदाज में इस विवाद को समझने की कोशिश करते हैं-
क्या है बगराम एयरबेस, इसका इतिहास?
बगराम एयरबेस का निर्माण 1950 में सोवियत संघ ने किया था। कई सालों बाद यही मध्य और दक्षिण एशिया में अमेरिका का एक जरूरी ठिकाना बन गया। अफगान युद्ध के दौरान अमेरिका और उसके दूसरे सहयोगियों के लिए रणीतिक रूप से इस बेस की कीमत काफी बढ़ गई थी। यहां रनवे, लॉजिस्टिक्स सपोर्ट, विमान संचालन और खुफिया सुविधाएं थीं। बगराम एयरबेस पर दो बड़े रनवे भी हैं- एक लगभग 11,800 फीट लंबा और दूसरा करीब 9,700 फीट लंबा। इन रनवे की वजह से अमेरिका के बड़े ट्रांसपोर्ट और फाइटर जेट यहां आसानी से उतर सकते हैं।
जब यह एयरबेस अमेरिका के कब्जे में था, यहां पर हजारों सैनिक रहते थे, उनके लिए 50 बेड वाला अस्पताल था और जरूरतों को पूरा करने के लिए पश्चिमी दुकानें। अमेरिका इस बेस को तालिबान और अलकायदा के कैदियों को हिरासत में लेने के लिए इस्तेमाल करता था।
ट्रंप को बगराम एयरबेस क्यों चाहिए?
रायटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बगराम एयरबेस इसलिए चाहिए क्योंकि वे मानते हैं कि यह बेस चीन के न्यूक्लियर हथियारों के काफी करीब है। इसके ऊपर अमेरिका इस बेस को अपने सभी खुफिया अभियानों के लिए उपयुक्त मानता है। पेंटागन की एक रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि चीन ने काफी कम समय में परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ा लिया है। 2030 तक यह आंकड़ा 1000 भी पहुंच सकता है। ऐसे में यहां पर अमेरिका अपनी उपस्थिति वापस चाहता है। खबर तो यह भी है कि इस क्षेत्र आतंकी फिर सिर उठा रहे हैं, अमेरिका इसे अपने लिए भी एक खतरा मानता है, वो फिर कोई अप्रिय घटना नहीं देख सकता है, ऐसे में ट्रंप इस बेस को अपने कब्जे में चाहते हैं।
क्या बगराम एयरबेस मिलना आसान होगा?
नहीं, राष्ट्रपति ट्रंप के लिए बगराम एयरबेस को वापस अमेरिकी कंट्रोल में लेना काफी मुश्किल होगा। असल में अमेरिका को तालिबान को भी राजी करना होगा, उसे मनाना पड़ेगा कि वो अपने उस एयरबेस को अमेरिका को सौंप दे। अब तालिबान की प्रतिक्रिया तो दिखाती है कि वो किसी भी कीमत पर इस बेस को अमेरिका को नहीं सौंपने वाला है। इसके अलावा जानकार मानते हैं कि अमेरिका को एक बार फिर बड़ी संख्या में अपने सैनिकों को वहां भेजना पड़ेगा, फिर उनके खर्चे अलग रहेंगे। कई सालों तक तो अमेरिकी सैनिकों की उपस्थिति को लेकर अमेरिका में ही जानकार एकमत नहीं थे।
अमेरिका ने पहले क्यों छोड़ा था बगराम एयरबेस?
राष्ट्रपति ट्रंप के ही पहले कार्यकाल के दौरान 2020 में अमेरिका और अफगानिस्तान के बीच में दोहा समझौता हुआ था। उस समझौते के तहत अमेरिका अफगानिस्तान में मौजूद अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने जा रहा था। फिर एक जुलाई 2021 को अचानक से रातोंरात अमेरिकी सैनिकों ने बगराम एयरबेस को खाली कर दिया था। उसके थोड़ी देर बाद ही अफगान के तालिबानी लड़ाकों ने उस पर अपना कब्जा जमाया और देखते ही देखते पूरे अफगानिस्तान में एक बार फिर तालिबान राज स्थापित हो गया।
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