India-USA Relations 2025: अमेरिका में सत्ता का स्थानांतरण हो गया है और एक बार फिर रिपब्लिकन पार्टी के नेता डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए हैं। ट्रंप दूसरे ऐसे नेता हैं, जो कि राष्ट्रपति रहते हुए एक चुनाव हारने के बाद फिर राष्ट्रपति बने हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी चुनावों के दौरान भारतीय मूल के लोगों को लुभाने के लिए कई मुद्दे उठाए थे लेकिन ट्रंप शासन में भारत-अमेरिका के रिलेशन को समझने के लिए हमें ये ध्यान देना होगा कि ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका के रिश्ते कैसे थे।

साल 2017 से 2021 के बीच राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान भारत और अमेरिका के रिश्ते काफी अहम रहे थे। इस कार्यकाल के दौरान ही भारत-अमेरिका के लिए एक रणनीतिक साझेदार से एक अपरिहार्य साझेदार बन गया। इस अवधि के दौरान भारत और अमेरिका पहले से कहीं अधिक करीब आ गए थे।

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मोदी ट्रंप के बीच अच्छी थी बॉन्डिंग

डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में लौटने के साथ पुराने कार्यकाल की चर्चा भी हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2017 में, यानी ट्रंप के व्हाइट हाउस जाने के 6 महीने बाद अमेरिका का दौरा किया था। इस मुलाक़ात के दौरान ट्रंप ने मोदी से वादा किया था कि वे अपने कार्यकाल के दौरान भारत आएंगे। यह वादा उन्होंने तीन साल बाद पूरा किया, जब उन्होंने अहमदाबाद के नवनिर्मित नरेंद्र मोदी स्टेडियम में हज़ारों लोगों को संबोधित किया।

2017 से 2020 के बीच डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी की कई बार मुलाकात हुई। इस उच्चस्तरीय द्विपक्षीय बातचीत का नतीजा ये रहा कि आतंकवाद के मुद्दे पर ट्रंप प्रशासन ने भारत को मजबूत समर्थन दिया था। अमेरिका ने 2019 में पुलवामा हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित किए जाने का समर्थन किया था, साथ ही 2018 में FATF द्वारा पाकिस्तान को ग्रे-लिस्टिंग में डालने का भी समर्थन किया था।

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डिफेंस सेक्टर में बढ़ी थी साझेदारी

2019 में अमेरिका से भारत की रक्षा खरीद सालाना 18 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई थी, क्योंकि अमेरिकी प्रशासन द्वारा भारत को रणनीतिक व्यापार प्राधिकरण (एसटीए) लाइसेंस अपवाद के टियर I में प्रमोट किया गया था। इसने भारत के लिए उच्च स्तरीय अमेरिकी रक्षा प्रौद्योगिकियों को महत्वपूर्ण रूप से खोल दिया है।

इसके अलावा ऊर्जा क्षेत्र में भी ट्रंप प्रशासन के दौरान भारत-अमेरिका संबंध मजबूत हुए थे। ट्रंप प्रेसीडेंसी ने अप्रैल 2018 में द्विपक्षीय रणनीतिक ऊर्जा साझेदारी की शुरुआत की, जिसके तहत भारत ने अमेरिका से कच्चे तेल और एलएनजी का आयात करना शुरू किया। केवल दो साल में इस आयात का मूल्य शून्य से बढ़कर 6.7 बिलियन डॉलर हो गया, जिससे अमेरिका भारत का हाइड्रोकार्बन आयात का छठा सबसे बड़ा स्रोत बन गया।

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चुनौतियां और विवाद

ऐसा कहा जाता है कि भारत-अमेरिका के बीच चीजें पूरी तरह से ठीक नहीं थीं। ऊर्जा साझेदारी पर हस्ताक्षर इसलिए किए गए क्योंकि ट्रंप ने भारत को ईरान से तेल खरीदना बंद करने के लिए प्रभावी रूप से मजबूर किया था। भारत के साथ ट्रंप की एक और नाराज़गी टैरिफ़ व्यवस्था थी।

अमेरिका के भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनने और 2016-18 के बीच वस्तुओं और सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार में 10% से अधिक की वृद्धि के साथ 142 बिलियन डॉलर तक पहुंचने के बावजूद, ट्रंप हमेशा भारत से बेहतर टैरिफ़ और व्यापार करने के लिए अधिक पूर्वानुमानित व्यवस्था चाहते थे।

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कश्मीर पर मध्यस्थता के बयान से बढ़ा था विवाद

अमेरिका जाने वाले भारतीयों के प्रति ट्रंप का रवैया सवालों के घेरे में था। यहां तक ​​कि कुशल एच1-बी वीजा धारकों की आवाजाही भी- दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में एक विवाद देखने को मिलता था।डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत और अमेरिका के बीच सबसे बड़ा विवाद तब हुआ जब राष्ट्रपति ने कश्मीर मुद्दे पर नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच मध्यस्थता की पेशकश की, जो भारतीयों के लिए लंबे समय से अस्वीकार थी। डोनाल्ड ट्रंप का सबसे महत्वपूर्ण योगदान चीन को रणनीतिक खतरे और प्रतिद्वंद्वी के रूप में मजबूती से स्थापित करना था। यह उनके कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों के लिए रणनीतिक बंधन बना था।

ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान चीन पर दबाव बनाने के लिए न केवल भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के क्वाड समूह को पुनर्जीवित किया था, बल्कि ट्रंप ने इंडो-पैसिफिक में चीन के आक्रामक व्यवहार का सामना करने की रणनीति भी बनाई थी। अब यह देखना होगा कि अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान ट्रंप का रुख क्या रहता है। डोनाल्ड ट्रंप से जुड़ी अन्य सभी खबरें देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।